अभी कोई पन्द्रह सोलह साल पुरानी बात है। संकट का समय था। किसी ने एक ज्योतिष का बताया, उनसे मिलो कोई न कोई रास्ता निकलेगा। कुंडली थी नहीं। नाम और तारीख पूछा सो बता दिया। पूरा नाम पूछा, परसाई सुनकर अचकचा गए। हिचकते हुए पूछे - वो तो ठीक है, कौन जात हो बेटा?
ब्राह्मण सुनकर उनको आश्चर्य हुआ, फिर बात हरिशंकर परसाई जी की भी आई। क्या वो भी ब्राह्मण थे, हमने हां कहा तो। सीधे सीधे हमको पढ़ने लिखने के काम में हाथ आजमाने की सलाह दे दी। कुल मिलाकर एक सौ एक रुपए में हमें वो बात पता चली, जो हमें मालूम थी। लेकिन उसे ये बात पता चली कि परसाई, जात के ब्राह्मण होते हैं। बात ये भी है, कि ये सौभाग्य किसी जोशी को प्राप्त नहीं है। कोई जोशी को देख ज्योतिष ये नहीं कहता जोशी जी, क्या आप शरद जोशी के परिवार से हैं या पढ़ने लिखने से वास्ता होगा। उस सुभीता सिर्फ परसाईयों को ही प्राप्त है। मैने कई जोशी ऐसे ऐसे काम करते भी देखे हैं, जो उनको क्या किसी को नहीं करना चाहिए।
ये अब भी जारी है। जात या सरनेम सुनकर, उसको किसी से पहचान से जोड़ना हमारी परंपरा है। ब्राह्मण ज्ञानी भीरू, लाला कंजूस, बनिया मक्खीचूस, ठाकुर गुस्सैल, राजपूत ताकतवर जैसे कई उपमाएं हमारे समय ने जोड़ रखी हैं। सरकार जाति जनगणना करवा रही है। हो सकता है, सरकार वहीं तय कर दे कि कंजूसों को आय का अधिकार नहीं देना है। जो पहले से ज्ञानी हैं उनको शिक्षा से दूर कर समाज का भला हो जाए। ठाकुर, राजपूत को सीधे सेना और पुलिस में घुसा दें। बचे दलित और आदिवासी उनको सरकारी नौकरी करवाओ। लो हो गया सामाजिक न्याय।
जात पांत पूछना वैसे तो बड़ा घटिया काम है, लेकिन एक समय था जब ये खुल के होता था। हमारी बुआ थीं, बहुत धार्मिक और सिद्धांतवादी। कोई अंजान घर आता, तो वे बड़े प्यार से पूछतीं, कौन जात हो बेटा?? घर हो, बस हो, ट्रेन हो। वे जात पूछकर तस्दीक कर लेती। दिल की बुरी नहीं थीं, कोई ब्राह्मण भी मिल जाता तो उससे भी पूछतीं कौन से ब्राह्मण हो? फिर वो कान्यकुब्ज, सनाढ्य या जो भी बताए, उससे कहतीं आजकल तुम औरों के मोड़ा मांस मच्छी खा रहे, दारू पी रहे। वो बगलें झांकते।
अब ये सब सरकार पूछेगी। सो बुरा मानने की बात नहीं है। अब सरकार आपकी और आपकी जात के लोगों की कुंडली खंगालेगी। बाह्मण, बनिया, ठाकुर, कायस्थ, कुमावत, दलित आदि अपनी गिनती जान सकेंगे। सबसे बड़ी उपलब्धि मुस्लिम, ईसाई, सिख धर्मों की जातियां होंगी। जात के नाम पर हिंदुओं को बहुत सुनाया गया। अब पता चलेगा, कि अंतिम पंक्ति के लोगों से सब धर्मों का सलूक एक सा है। भारत के इतिहास में अब तक सिर्फ धर्म बदले जाते हैं। मुसलमान हिन्दू बन जाता है, हिंदू भी मुसलमान बन सकता है। जाटव दस सिर का भी हो जाए तो वो लाला, मिश्रा या ठाकुर नहीं बन सकता। इसी तरह पिंजारा, जुलाहा, शेख या सैयद बनने की जिद पकड़ ले तो कोई मौलवी उसकी मदद नहीं करेगा।
जातिगत के आधार पर भेदभाव का एक जमाने में सामान्यीकरण हो गया था, अब समाज ने उसपर फ़लालेन का आवरण डाल रखा है। बहरहाल अब सरकार जात की गिनती करेगी, सो हो सकता है सालों से अंदर ही अंदर घुमड़ रहा मवाद बाहर आए, और समाज का अंतर शुद्धिकरण हो।
जय जय..
Sanjeev Persai
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