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Sunday, May 4, 2025

पुस्तक समीक्षा - भोपाल टॉकीज

भोपाल जिंदाबाद!
वाह परसाई जी वाह!!!
'भोपाल टॉकीज' पढ़ ली ।
भोपाल के बारे में फुल पैकेज है!
कमलापति और बेगमों के किस्से!
सोचता था कि बेगमें ही क्यों राज चलाती रहीं? उनके ख़सम क्या करते थे? आपने बता दिया।

भोपाल के विलीनीकरण के बारे में पढ़ा था, पर इतने डिटेल में नहीं। 1 जून 1949 को हुआ था। पता चला कि 'बर्रुकाट भोपाली' क्योंकर कहा जाने लगा? बर्रूकाट का मतलब भी समझ में आया पर IIFM और IIHM का नहीं!

यह किस्सा भी जोरदार है कि जब सर्किट हाउस चूहों से भरा था और खानसामा शराब से !भोपाल की छात्र राजनीति पर पढ़ना अच्छा लगा! 

शंकरदयाल शर्मा के बारे में पढ़ना दिलचस्प लगा उनके कई किस्से छापनीय नहीं हैं, वो आपने नहीं लिखे!

क्या गोंड राजा मुसलमान होते थे?
क्या राजा भोज के नाम पर भोपाल नाम नहीं पड़ा था? भोपाल की हॉकी, बॉलीवुड में भोपाली लोगों की दास्तानें भी हैं l लेकिन अब जो भोपाल है वह अरविंद जोशी, टीनू जोशी, सौरभ शर्मा जैसों और ए बी सी और डी कंपनी का ही है! दिलचस्प, ज्ञानवर्धक दस्तावेज़ है क़िताब!

भोपाल देश के सुंदरतम शहरों में है! यह 'झीलों की नगरी' है।  यहाँ कई प्राकृतिक और कृत्रिम झीलें हैं। ऊपरी झील (बड़ा तालाब) और निचली झील (छोटा तालाब) शहर की पहचान हैं। यहां का समृद्ध इतिहास है। यह कभी भोपाल रियासत की राजधानी भी थी, जिस पर बेगमों का शासन रहा। कई ऐतिहासिक इमारतें और महल हैं, जो मुगल और भारतीय वास्तुकला का अद्भुत मिश्रण हैं, जैसे कि गौहर महल और शौकत महल। ताज-उल-मस्जिद शानदार वास्तुकला और ऐतिहासिक महत्व के लिए जानी जाती है। हिंदू और मुस्लिम कला शैलियों का संगम है यहाँ!

इस किताब में भोपाल का इतिहास भी है और बनते बिगड़ते भोपाल के किस्से भी हैं।राजधानी की किलकारियां भी हैं और भोपालियों के लिए गुप्त रोगों की डिस्पेंसरी और खटारा जवानी पर चिंता भी है। भोपाल के सूअर, भारत भवन, नवरत्न, जर्दा, पर्दा, नामर्दा और नामुराद गैसकांड, कबूतरबाजी, बतोलेबाजी, मुजरा, भोपाल टॉकीज, भोपाल के मिनी इन्दौर, बैरागढ़, ढाई मिनिस्टर, ढाई सरकार, तांगों, भेंकड़ों और कजाने क्या-क्या है भाईजान!

इस किताब में भोपाल टॉकीज ही नहीं, भोपाल का पूरा पैकेज है। लेकिन लगता है कि अभी और भी भोपाल बाकी है परसाई जी!

अब एक किस्सा छोटे परसाई जी का सुनिए :
मैंने और परसाई जी ने एक साथ माखनलाल विश्वविद्यालय से एमजे किया था। जब पहली बार मिले तब परिचय में कहा - मैं संजीव परसाई।

मैने जीवन में दूसरी बार किसी से परसाई सरनेम सुना था। कहा - एक हरिशंकर जी थे परसाई, एक आप हैं। उन्होंने शादी नहीं कि थी, वरना आप फेंक सकते थे कि मैं उनका रिश्तेदार हूं। अब भी इत्ता तो फेंक ही सकते हो कि मैं हरिशंकर परसाई जी का भतीजा हूँ।

संजीव ने कहा - मैं क्यों फेंकूँ? सच बोलूंगा! हरिशंकर परसाई मेरे सगे ताऊ जी ही थे! मैं सचमुच उनका भतीजा ही हूँ।

यानी संजीव सचमुच के छोटे परसाई जी ही हैं। 

-प्रकाश हिन्दुस्तानी

#bhopaltalkies
#भोपालटॉकीज़

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