Saturday, June 3, 2017

कुत्ते की पिटाई और चैनल चिंता

(संजीव परसाई)  पुत्तन सरे राह धोबी के कुत्ते को रपारप डंडा कुदाये जा रहा था। एक-एक करके कोई बीस-पचीस दर्शक जुड़ गए। यूँ तो कस्बे की फितरत ही है कि जोंर से छींकने पर भी जय हो का हाँका लगाने वाले दस से कम  नहीं होते। ये तो फिर पुत्तन के हाथों कुत्ते की धुलाई (धुलाई को पिटाई का पर्यायवाची के रूप में पढ़ा जाये) का प्रसंग था। सो पुत्तन अपनी परंपरागत इस्टाइल में कुत्ते पर हाथों से और डेढ़ गज लंबी जुबान से वार किये जा रहा था। कुत्ता भी अपनी रेडियोजेनिक आवाज से पुत्तन का क्रोध कम करने की कोशिश में कांय-कांय का स्वर सृजित कर रहा था।


दूसरी ओर भीड़ इस इंतजार में बेजार हो रही थी कि पुत्तन का मुंह और हाथ रुके तो पूछे कि दादा ये क्या कर रहे हो, आखिर इस बेजुबान जानवर ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है, क्या काट-वाट लिया, क्या तुम्हारे दरवाजे पर हग-वग दिया, क्या मुहल्ले में तुम्हारे रसूख को चुनौती दे डाली, क्या तुम्हारी धोती खींच दी या जूता ले भागा, भीड़ में मौजूद हर एक दर्शक के मन में ऐसे सवाल बेकरारी मचा रहे थे। बात पुत्तन की थी सो हर व्यक्ति इस बात की तस्दीक करना चाहता था कि कोई गंभीर बात तो नहीं है। पुत्तन की हैसियत का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि उसने जीवन भर ढाई सौ ग्राम के पैसे लेकर दो सौ ग्राम ही जलेबी तौली लेकिन किसी में उफ करने तक का साहस न हुआ। अचानक पुत्तन की रौबीली आवाज गूंजी - अब बोल हरामखोर ^&^&%^$$^^&&@@%#@...(यहां अपर केस प्रतीकों का अर्थ आप आगे पढ़ने के बाद समझेंगे, क्योंकि लेखक की अपनी साहित्यिक सीमा है, जिससे बाहर जाने की इजाजत अभी तक प्राप्त नहीं हुई है सो डॉटस का अर्थ स्वयं समझें )...अब बोल, ऐसा करेगा... लोग सांसे रोके अब तक खडे़ थे क्योंकि एक गंभीर रहस्योदघाटन श्री पुत्तन करने वाले थे। लेकिन पुत्तन, कुत्ते के खानदान और उससे जुड़े बिदुओं की व्याख्या करने में अधिक इच्छुक लग रहा था । सो अपनी आवाज में प्रभावी उतार-चढ़ाव लाते हुए अपने कार्य को जारी रखे रहा ।....लेकिन अब तो लोगों का सब्र भी टूट रहा था। भीड़ में पीछे की ओर खड़े हुये इक्का-दुक्का तो दुखी होकर ही चले गये। बाकियों ने भी उन्हें भरे दिल से रवाना किया और आंखों ही आंखों में यह वादा भी किया कि तुम्हारी कुर्बानी बेकार नहीं जायेगी, जब भी पता चलेगा तुम्हें जरूर जानकारी दी जायेगी।

दरअसल भीड़ का एक सिद्धांत होता है, भीड़ अपना मजमा वहीं लगाती है जहां विरोधी सुरों के साथ मनोरंजक सामग्री भी परोसी जा रही हो। यह हुजूम अपनी प्रतिक्रिया तब तक व्यक्त नहीं करता, जब तक कि वह पूरी तरह से आश्वस्त न हो जाये कि कुछ भी बकने या करने पर उनके साथ इस कुत्ते जैसा वर्ताव नहीं होगा। वैसे मजाक ही मजाक में एक अनूठे सिद्धांत की रचना हो गयी है, अगर आप पाठकों ने इस सिद्धांत की सही जगह चर्चा की तो मैं भी समाजशास्त्री का दर्जा पाकर सम्मानयोग्य हो जाउँगा। कई बार यह भीड़ कम या बिल्कुल भी जानकारी नहीं होने पर भी पूरी गंभीरता का प्रदर्शन करती है। भीड़ के पास खोने को समय और जागरूक भारतीयों की सूची में अपना नाम लिखाने के लिये उत्सुकता के अलावा कुछ नहीं होता है। जिसे जागरूकता का नाम देकर महिमामंडित किया जाता है। भीड़ अपने लिए भगवान् भी चुनकर नियुक्त करती है, समय आने पर उन्हें ही गालियों से लथपथ कर देती है।

बौद्धिकता में यही एक खामी है कि वह आपको मूल मुद्दे से इस कदर भटका सकती है कि आप अपने घर लौटने का रास्ता भी भूल जायें। लेकिन मैं ऐसा नहीं हूं.... तो मुददा यह था कि - पुत्तन कुत्ते को क्यों मार रहा था, लेकिन लोग सोच रहे थे कि पुत्तन अपना काम पूरा कर चुका होगा सो अब उवाचेगा। पुत्तन तो इस मेहनत के दौरान आये पसीने को पौंछने और लगातार बलबलाने से बाहर निकल आयी नाक को छिनकने के लिये रूका था। सो गमछे को निष्णात पवित्र करके पुनः गंभीरता पूर्वक अपने काम में लग गया। अचानक एक बिजली सी कोंधी तो एक पवित्र आत्मा सामने आई। उसने बिना किसी लाग-लपेट के पुत्तन से पूछा - का हुआ रे, इतना काहे बिफर रहा है, अब सभी की नजर पुत्तन पर टिक गयीं कि अब तो पुत्तन बोलेगा ही बोलेगा। पुत्तन ने एक गहरी सांस ली और माथे पर हाथ फिराया, उस आत्मा की तरफ देखा और एक हाथ के इशारे से उस महान आत्मा को जाने को कहा। (इशारे से स्पष्ट था वह कह रहा था - तू निकल बे... इसे भीड़ और पवित्र आत्मा समझ गयी थी)

अब तक तो इस घटना की जानकारी देश के हर टीवी चैनल को लग गयी थी। पुत्तन की खबरें सोशल मीडिया पर धड़ाधड़ ट्रेंड कर रही थी। कुछ अतिउत्साही युवाओं ने इस घटना को व्हाट्स एप चला दिया..अब तक इस महान घटना की सूचना देश के खास-ओ-आम तक पहुँच रही थी.
....भीड़ और मीडिया के जमावड़े को पुत्तन अपनी जीत के रूप में देखकर मन ही मन खुश हो रहा था। मीडिया लाइव फुटेज दिखाने में लगा था लेकिन बाइट नहीं मिलने से चैनलों  का रिपोर्टरों पर दबाव बढ़ता जा रहा था और पुत्तन भाव खा रहा था। एक पत्रकार ने हिम्मत करके कहा कि - आप इस बेजुबान प्राणी पर इतना जुल्म क्यों कर रहे हो। आपको यह अधिकार किसने दिया, पुत्तन तैश में आकर उस पत्रकार की ओर बढा, लेकिन पत्रकार किसी बड़े खतरे को भांपकर चार कदम पीछे हट गया। सो पुत्तन भी मूल लक्ष्य से भटक गये.. कुत्ता हाथ से सटककर भाग-खड़ा हुआ। भीड़ तो जैसे इंतजार ही कर रही थी, कुछ छिछोरे ठठाकर हंस पडे़, यह तो सरासर दबंगई पर चोट थी। पत्रकार को इशारे और आंखों से समझाया कि तुझे देख लूँगा। भीड़ को भी आंखों ही आँखों से देखकर कहा कि ^$$^^&&@@% और दौड़ लगा दी कुत्ते के पीछे। लेकिन अब तक तो देर हो चुकी थी कुत्ता अपने लिये एक सुरक्षित कोने की तलाश कर चुका था।
मीडिया ने पुत्तन के फुटेज दिखा-दिखा कर माहौल में आग लगा दी। सब पुत्तन के इस कृत्य को अमानवीय व अकुत्तनीय बताने में बढ़-चढ़ कर लग गये। राजनीतिक दलों ने कठोर शब्दों में इसकी निंदा की। उन्होंने इसके खिलाफ सरकार से कठोर से कठोर कार्यवाही और जानवरों के विभाग के मंत्री से इस्तीफे की मांग की। उधर मीडिया अभी भी खबर को अधूरी ही मानकर चल रहा था। पुत्तन तो खा खुजाकर लंबलेट हो गये लेकिन मीडिया लगा उन्हें रगड़ने। चैनल वाले अपने रिपोर्टरों को दिल्ली से गरियाने लगे कि उन्हें हर हाल में पुत्तन की बाइट चाहिए। बाइट मिले तो खबर आगे बढे़, दिनभर में वे कुत्ते से लेकर, हर खास-ओ-आम की बाइट चला चुके थे। लेकिन खबर को प्राइम-टाइम तक जिंदा रखने के लिये जरूरी था कि पुत्तन की बाइट हो। सहसा दो दो कौड़ी की प्रेस विज्ञप्ति बनाकर बाँटने वाले और एक सिंगल कॉलम खबर छपने पर हफ्ते भर अखबार कांख में दबाकर घूमने वाले पुत्तन मीडिया की आँख के तारे हो गये, सो लगे डील करने। अब तक वे समझ चुके थे कि मीडिया को उनकी जरूरत है। वे इस जरूरत को अपने लिये अवसर बनाने में अपने रणनीतिकारों से सलाह मांगने लगे। टीवी चैनलों के आउटपुट एडीटरों ने रिपोर्टरों पर दबाव बनाया। वे रिरियाने लगे कि भाई मान जाओ प्राइम-टाइम में हम राष्ट्रीय स्तर के प्रवक्ताओं के साथ बैठा रहे हैं। तुम्हारा कुछ लोकल जुगाड़ भी बनवा देंगे । पुत्तन के सलाहकारों ने सलाह दी कि अगर इस घटना की निंदा मेनका गांधी करें, तो छा जाओगे गुरु। सो प्रस्ताव दिया गया कि पहले इस घटना की निंदा मेनका गांधी से करवाओ। पत्रकार समझ गया कि उसका सामना एक कमीने से हो गया है। ये बात चैनल को समझाना तो मुश्किल था। सो उसने मेनका गांधी के दक्षिणपंथी रूझान की ओर भी ध्यान दिलाया। लेकिन पुत्तन टस से मस न हुए, सो भागम-भाग मची । किच-किच चैनल ने आखिर यह कारनामा कर दिया। मेनका जी ने इस घटना की कठोर शब्दों में निंदा की और कार्यवाही की मांग की।
उधर भीड़ में आए हर-एक का हाजमा खराब था। पुत्तन ने आखिर ऐसा क्यों किया शहर में चर्चा का विषय था। आखिर अपने घर पर ओवी बुलाकर किच-किच न्यूज चैनल पर पुत्तन आये और अपने कृत्य की सफाई पेश की। उन्होंने बताया कि किस तरह वे आज सुबह सफेद झक्क कुर्ता पाजामा पहनकर घर से निकले थे और किस तरह से इस कुत्ते ने उनके बगल वाले गडढे़ में छलांग लगा दी जब वे ठीक गडढे़ के पास थे। उनकी सफाई को चैनल ने 14 ब्रेक लेकर दिखाया और आगे दूसरा भाग भी अगले दिन चलाया।
चार सदस्यीय पैनल ने इस घटना की पुत्तन की मुँह पर ही निंदा की। एक पैनलिस्ट ने प्रति प्रश्न पूछा कि - उस गडढे़ को बनाने में कुत्ते की कोई भूमिका नहीं थी, इसिलिए कुत्ते का इसमें कोई दोष ही नहीं है। दरअसल दोष तो नगर निगम का है, जहाँ सत्ता पक्ष पसरा हुआ है।
दूसरे ने पुत्तन के बहाने सरकार को घेरने का सुझाव दिया। तीसरे ने इस मुददे पर सरकार की तीखी आलोचना करते हुए प्रधानमंत्री से स्पष्टीकरण की माँग की।
चौथा पैनलिस्ट पढ़ा-लिखा था सो उसने कुत्तों के साथ समाज का व्यवहार और गड्ढों की सामाजिक उपयोगिता पर विस्तृत चर्चा की।
इस  बीच टी.वी. पर टिकर चलने लगा कि पुत्तन के विरोधी दल से संबंध हैं। इसी बीच पत्रकार उस गडढे के जन्म की कहानी भी खोज लाए। उन्होंने गुप्ता जी की बाइट अरेंज की जिनकी लड़की की शादी में उस गडढे़ को भट्टी के रूप में बनाया गया था। गुप्ताजी ने भी उस भट्टी पर बनी गुलाब जामुन व नुक्ती के कसीदे पढे़। सोशल मीडिया पर पक्ष और विपक्ष की मिलीजुली प्रतिक्रियाएं ट्रेल करने लगीं।

मात्र दो दिन में पुत्तन राष्ट्रीय व्यक्तित्व है। जिसे पार्टियां चुनावों अपना प्रत्याशी बनाना चाहेंगी। उसने तय कर लिया कि वह राष्ट्रीय गडढ़ा पार्टी की स्थायी सदस्यता लेगा और गडढ़ों की भलाई के लिए काम करेगा।

2 comments:

Unknown said...

क्या बात है। सर...... बड़ी ही पैनी कलम से पुत्तन की कुत्तन के साथ जुत्तन पैजार ......बिल्कुल मंझे हुए और एकता कपूर के सीरियल की तरह .....सस्पेंस 15 जून को।।।। जय हो।। बेजोड़ व्यंग। बधाई।।।।


sanjeev persai said...

धन्यवाद बन्धु!!!