Friday, January 6, 2017

बदलाव,तेल-साबुन और सोशल मीडिया

(संजीव परसाई) कभी कभी आपको देश के बदलाव की दिशा किराने की दुकान पर भी मिल सकती है। एक जागरूक नागरिक के तौर पर आपको हर रेहड़ी पर नजर रखने की जरूरत है। पता नहीं किस चाय की दुकान या नुक्कड़ पर बदलाव का मसीहा मिल जाए। इसके लिए आपको सोशल मीडिया पर भी हर एैरे-गैरे को न सिर्फ अपनी फ्रेंड लिस्ट  में रखना चाहिए बल्कि उनकी पोस्ट को नियमित तौर पर लाइक भी करना चाहिए। मैं इस नियम को हमेशा फॉलो करता हूँ। एक दिन बबलू आर्ची नाम की फ्रेंड रिक्वेस्ट प्राप्त हुई। नाम किसी ग्रीटिंग की दुकान का सा लगा, लेकिन सोचा कि हो सकता है कि बदलाव का रास्ता इसी दुकान से भी होकर जाता हो, और न भी जाएगा तो मेरा क्या है। सो उन्हें ओके कर दिया। लाइक, कमेंट, शेयरिंग का सिलसिला चल निकला। आभासी दोस्ती, प्रगाढ़ होने लगी। उन्होंने एक दिन देश के बारे में चिंता जाहिर की, उनकी पोस्ट में उनकी चिंतित सेल्फी नजर आ रही थी। सो हमने लिख मारा कि देश बदलाव के दौर से गुजर रहा है और आप बैठकर तेल-साबुन बेच रहे हो।

उन्होंने चार-पाँच दिन तो उसे लाइक करने में लगा दिए। उसके बाद रोज पिंग और पोक का सिलसिला चल निकला। रोज वह देश के हालात पर दो चार सवाल दाग देता। उसके सवालों में सीमा, कश्मीर, महंगाई, आर्थिक हालात, समाज, धर्म से लेकर राज्यों के चुनाव तक शामिल होते। जब भी ऑनलाइन पाता वही सवाल चिपका देता। वह नियमित रूप से देश की चिंता करता और मुझसे भी करवाता। उसने कॉमन फ्रेंड से मेरा फोन नंबर ले लिया और रोज गुडमार्निंग से लेकर गुडनाइट तक ज्ञान और बदलाव की पोस्ट के बडे़ बडे़ पत्थर मुझपर निर्दयता से बरसाने लगा। वाट्स एप पर उसने बदलाव की आंधी के नाम से एक ग्रुप भी बनाया. उसने फोन भी लगाया, लेकिन जो कईयों को शिकायत थी वह उसे भी हो गई। कहता था जब फोन उठाना ही नहीं है तो फिर रखते क्यों हो। सो वह घर आने जाने लगा, पहले मौके पर फिर बाद में बेमौके पर भी।
एक दिन चाय हाथ में लेकर सैलरी जैसे राष्ट्रीय महत्व के मुददे पर विचार कर रहा था। मैं विचारमग्न था कि अगर मेरी सैलरी बढ़ जाए तो देश काफी प्रगति कर सकता है। हो सकता है कि देश की कार का एसी सुधर जाए, या नई कार ही आ जाए, हो सकता है कि देश बड़े टीवी में विकास देखे, देश की जनता हिल स्टेशन पर अपनी छुटिटयाँ बिताने जा सकें। क्योंकि मेरा मानना है कि मैं और देश का विकास दोनों एक दूसरे के सापेक्ष हैं। यदि मेरा विकास होगा तो देश का स्वयं ही हो जाएगा। तभी उसने प्रवेश किया और आते ही बरस पड़ा क्या तमाशा मचा रखा है आप लोगों ने।
मैं अंदर तक हिल गया, क्या हुआ आर्ची जी, उसका गुस्सा सातवें आसमान पर देखकर मैंने उनके नाम के आगे जी लगाना तक स्वीकार कर लिया। उनके नाम के साथ जी जमता नहीं था लेकिन फिर भी मैंने सौम्यता पूर्वक कहा - चाय लेंगे क्या?
झपटकर चाय का कप हाथ से लेते हुए बोला- अजी चाय वाय को मारिये गोली, आप बताईये कि बात तो कश्मीर में धारा 370 के हटाने की हुई थी। अब क्या हुआ हटाते क्यों नहीं, अब क्या सांप सूंध गया, अजी जब हिम्मत ही नहीं थी तो ये बड़े बड़े वादे करने की क्या जरूरत थी। उसके प्रभाव के आगे मैं अपने को अपराधी मान बैठा। मुझपर उसका गुस्सा जायज था। असल में नयी सरकार से मेरी उम्मीद को उसने समर्थन मान लिया था।
अपराध बोध से ग्रस्त होकर धीरे से बोला - अजी वादा कहां किया था, सोचेंगे...ऐसा कहा था। वो फट पड़ा - तो कब सोचेंगे, पब्लिक को क्या समझ रखा है..... मैंने कहा अजी काम बड़ा है तो सोचना भी अधिक पड़ता है न, धीरज रखिए सब ठीक होगा।
अजी क्या खाक ठीक होगा, कह तो यह रहे थे कि देश बदलाव के दौर से गुजर रहा है और तुम साबुन तेल बेच रहे हो। धीरज आप जैसे निकम्मे बुद्धिजीवियों के लिए है, हम इंकलाब के लिये हैं, सो वही करेंगे। अभी भ्रष्टाचार हटाने में लगे हैं लेकिन जिस घड़ी हमने यह काम कर लिया बस फिर देखना हम क्या करेंगे, अजी जीना मुष्किल कर देंगे, समझे कि नहीं।
मैंने कहा अभी नोटबंदी की है सरकार ने बड़ा काम था। इससे निजात मिले तो आगे भी सोचेगी शायद.........अरे, आप लोगों ने मजाक बना रखा है, उसी गुस्से में कप लगभग पटकते हुए बोला - कैसे आदमी हो, चाय में चीनी भी ढंग से नहीं डाल सकते, पियो अपनी चाय। मैं अवाक और सुकून मिश्रित मुखाकृति बनाकर उसे जाते देखता रहा। यह मेरे लिये रोज का विषय हो चला था। वो कभी भी चला आता और मुझे किसी न किसी विचारधारा का बताकर मेरी क्लास लेता। कभी नहीं आ पाता तो सोशल मीडिया पर मुझे निपटा देता। मैं उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ पाता। वह बेरहमी से पेश आता, रोज पांच-सात फोटो से मुझे टैग करता, मुझे फ्रेंड सजेशन भेजता। स्वीकार नहीं करने की दशा में घर आकर बात करने की धमकी भी देता। उसने मुझे अब तक चार दफे कम्युनिस्ट, बीस दफे राष्ट्रवादी और दो चार दफे कांग्रेसी बनाकर भोगा था। उसे लगता था कि मैं और मेरे जैसे लोग सिर्फ इसिलिए बने हैं।
दो दिन बाद वो फिर आ गया इस बार अकेला नहीं था। इस बार उसके साथ एक और सज्जन थे। वे हाव-भाव से ऐसे नजर आ रहे थे, जैसे अभी अभी कोई महान काम खत्म किया हो। ऐसे चेहरे कम ही मिलते हैं वे चकित नजर आ रहे थे । पहले मैंने सोचा शायद 2000 के छुट्टे मिल गए हों, लेकिन बाद में पता चला कि उनकी मुखाकृति ही ऐसी है। उसने हाथ मिलाकर मुझे उसका और उसे मेरा परिचय दिया। उसके साथी की चमत्कृत मुद्रा में हल्का सा परिवर्तन हुआ जिससे मुझे यह पता लगा कि वह मेरे बारे में जान ही नहीं समझ चुका है। इस बार वह बदले अंदाज में था बैठते ही बोला - देखिये हमें देश के लिए बदलाव लाना है, अभी दो नंबर की कमाई वालों की ऐसी तैसी तो कर दी सरकार ने, अब अगला नंबर उनका है जो सोना चांदी और जमीन जायदाद बनाकर बैठे हैं। ये मेरे दोस्त बंटी प्रेरणास्त्रोत हैं इनके पास कुछ नेताओं और अधिकारियों की जायदाद की लिस्ट है। आप थोड़ी मदद करो तो ये सूची प्रधानमंत्री कार्यालय भेज देते हैं। मैंने दबी जबान में कहा - जरूर भेजो। सो हत्थे से उखड़कर बोला - यार आपसे अनुमति मांगने नहीं आए, मदद मांगने आए हैं। एक अच्छी सी मेल लिखो प्रधानमंत्री जी को। मैंने जान छुड़ाने के लिए कहा कि कहां मेल के चक्कर में लगे हो, सीधे टविटर पर ठेल दो प्रधानमंत्री जी खुद देख लेंगे। सो कहने लगा यार वो ही तो कह रहा था मैं, पहले बताना चाहिए था खामखां समय बरबाद कर दिया। फिर भी मैंने अपनी तरफ से सलाह दे मारी, पहले लिस्ट चैक कर लो कहीं अपने नाते-रिश्तेदार ही तो नहीं हैं। हां, ये ही तो मैं बोल रहा था, कि चैक कर लो। चलो अभी  चलते हैं...वैसे एक बात तो मान लो भाई कि राहुल, अरविंद, अखिलेश की सियासत अब खतरे में है, अपना भाई भारी पड़ रहा है। ये भी आपको फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजेंगे, स्वीकार कर लेना। हमें सोशल मीडिया पर गतिविधियों में तेजी लाना है।  हमारे अपडेट पर कमेंट भले ही न दो, लाइक का बटन दबाने में क्या जाता है। हमने “ओके” कहकर जान बचाई।

मै तो पहले ही कह रहा था कि ये आदमी किसी काम का नहीं है, कहता हुआ वह अपने बदलाव के सिद्धांत के साथ बड़बड़ करता निकल गया। अचानक सड़कों पर धूल उड़ने लगी सो मैंने सोचा कि शायद बदलाव की आंधी आ गई है। लेकिन बाहर जाकर देखा तो नगर निगम के कर्मी स्वच्छ भारत अभियान के तहत झाड़ू फेर रहे थे। 
(व्यंग्य फोटो -साभार)

2 comments:

Unknown said...

संजीव भाई अब तुम कान में पुंगी ही नही बजा रहे हो , उंगुली करने लगे हो , बहुत से लोगों को दर्द हो सकता हे , पार-साई गिरी में महारत हासिल होती नजर आ रही हे भाई , इसके नफे कम नुकसान बहुत जयादा हें , भय्ये अपनी तो जा राय हे की पुंगी खुब बज्जाऊओ करो पर लोगों हे जयादा दर्द नही होन चहेये / वैसे एक बात तो हे भाइ , कलम बडी धारदार होत जा रही है /

sanjeev persai said...

धन्यवाद, भट्ट साहिब...आपको पसंद आया और हमें लिखने का इनाम मिल गया...बाकी जो भी मिले सब स्वीकार्य है....