Tuesday, January 17, 2017

सूखी टहनियों के फेर में बुद्धिजीवी- आत्मबोध

(संजीव परसाई) बुद्धिजीवी की एक खासियत है कि वो हमेशा कुछ नया करने के फेर में रहता है। वो हमेशा कुछ ऊल जलूल करके अपने दिमाग को सक्रिय रखना चाहता है। उसे लगता है कि इस समाज को, उसके परिवार को और देश को उसके दिमाग की बहुत जरुरत है। वो तरह तरह के उपक्रम आयोजित करके अपने आप को साबित करने की कोशिश करता है। इस कोशिश में अपने आप को और दूसरों को भी नुकसान पहुंचाता है।
एक बुद्धिजीव को सर्दी में अलाव जलाने का अद्भुत ख्याल आया। इस ख्याल की अनुपम अनुभूति से ओतप्रोत होकर वो दीवाल पर चढ़ बैठा। उम्मीद थी कि हाथ बढाकर आम के पेड़ से सूखी टहनियाँ तोड़ लेगा पर हुआ इसका उल्टा। वो अपने आप को तुड़वा बैठा। गिरा तो खासी चोट भी लगी लेकिन दुखी हुआ तो इस बात से कि लोग क्या कहेंगे, कि एक बुद्धिजीवी आम के पेड़ से सूखी टहनियाँ भी नहीं तोड़ सकता। अब सोचने की बात ये है कि इसे कोई चिंतनीय नजरों से कोई नहीं देखता। सबको लगता है इसे बुद्धि का अजीर्ण है, सो खुद ही समझ लेगा।
बुद्धिजीवी दर्द से कराहता घर में घुसा तो बीबी के सवालों की बौछार से कम इस बात से अधिक आहत हुआ कि जो काम बनता नहीं है, क्यों करते हो। जबकि उसे लगता था कि वो हर काम कर सकता है। माँ-बाप ने एक स्वर में कहा ऐसी क्या डूब रही थी, ठण्ड में अकड़ रहा था क्या। वो समझ गया कि सहानुभूति को दरकिनार कर ताना मार रहे हैं। आस - पड़ोस के लोगों ने कहा ऐसी क्या जरुरत थी हमारे यहाँ ढेर लकड़ी पड़ी थी, हमसे मांग ली होती। डॉक्टर कहने लगा कुछ ख़ास नहीं है, बस दो-चार हफ्ते बेड रेस्ट करना होगा। मुस्कुराते हुए आगे बोला हाथ पैर के साथ दिमाग को भी रेस्ट देना, और सुनो तुम अकेले नहीं हो बाजू के कमरे में राष्ट्रवादी बॉटल लगवा रहा है, उसे भी दस्त लग रहे हैं। इस बात से उसे राहत महसूस होती है। लेकिन मिजाजपुर्सी करने वाले अपनी और से कोई कसर नहीं छोड़ते। वो सबको उनके कद, पद, समझ और अकल के हिसाब से समस्या का विवरण प्रस्तुत करता है।
अब वो रेस्ट पर है, समाचार सुनता है, पढता-लिखता है, देश के गरीबों के बारे विचारता है, ये भी सोचता है कि ऐसे तो लाखों लोग होंगे जो पेड़ की सूखी टहनियाँ तोड़ते हुए गिरे होंगे। सरकार को सूखी टहनियों के संग्रह के लिए कोई विशेष योजना लाना चाहिये। वो ये भी सोचता है अब समय आ गया है कि हड्डियों के लिए पृथक से बीमा योजना लाई जाए। ऐसे समय में अस्पतालों में मची लूट पर भी वो लोगों का ध्यान आकृष्ट करना चाहता है। डॉक्टर को शंका की नजर से देखता है और बटुआ दबा के पकड़ता है। अब वो अलाव से तौबा कर चुका है। अब वो मानता है कि दुनिया भर में जल रहे अलाव पर्यावरण के साथ खिलवाड़ है।अब वो भोपाल, मध्यप्रदेश, संपूर्ण भारत और दुनिया में सूखी टहनियाँ तोड़ते हुए टपके लोगों के आंकड़े तलाश रहा है, ताकि आलोचकों को जवाब दे सके।

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