Wednesday, January 25, 2017

खुले में शौच करते नेतागण

(संजीव परसाई) आमतौर पर हम सब देश में स्वच्छता का पेरोकार हैं। देश स्वच्छ होना चाहिए, और निर्मल भी। सरकार अरबों रुपया बहाकर देश के गरीब-गुरबों को शौचालय का प्रयोग करना सिखा रही है। पेट की गंदगी बाहर खुले में निकालने से बीमारी फैलती है। हो सकता है कि एक दिन ऐसा आए, जब देश का हर गरीब शौचालय का प्रयोग करेगा।

ये तो जो गयी गरीब-गुरबों की बात, लेकिन आजकल उन अमीरों का भी ख़ासा बोलबाला है, जो खुले में शौच करके समाज में गंदगी फैला रहे हैं। वैसे तो इनके खुले में शौच करने का कोई विशेष मौसम नहीं होता है, पर देश-प्रदेश में राजनीतिक गतिविधियां तेज होने के दौरान अधिक होता है।

यह समस्या प्रायः वैचारिक हाज़मा खराब होने की वजह से अधिक उभर कर आती है। वैचारिक हाज़मा बिगड़ने की प्रायः दो वजह होती हैं। पहली तो घटिया सोच और निम्नस्तरीय परवरिश होती है। जिसकी वजह से नेता अपने दिमाग की शौच को सरे बाजार विसर्जित करते हैं। दूसरे वे होते हैं जो पहचान के संकट से गुजर रहे हों। ये प्रायः वे लोग होते हैं को राजनीति में अपनी पारी ख़त्म होने का इंतजार कर रहे होते हैं। राजनीतिक दल इस प्रकार के लोगों को किसी सुअवसर पर धक्के मारकर बाहर करने का सोच रहे होते हैं। क्योंकि ये अंदर बैठकर भी विषैली गैसों का निस्सरण कर रहे होते हैं। यदा-कदा टीवी का कैमरा देखकर भी इनका प्रेशर बन जाता है। दबाव अधिक होने की वजह से इनका कैमरे के सामने ही शौच निकल जाता है। जो जगहँसाई का कारण बनता है।

किसी ने पटना के चौराहे पर बैठकर शौच कर दी और उल्टा ताव दिखाने लगा। दूसरे ने लखनऊ के चौराहे पर शौच कर दी, ये भी उल्टा आँखें तरेर रहा है। अब तीसरा आजमगढ़ में मंच पर जानवर की तरह खड़ा होकर मल त्याग कर रहा है। सब ने अपनी गंदगी का फव्वारा देश की महिलाओं की ओर ही उछाला। शौच के बाद पार्टियों ने इनका मुंह धुलाने की बजाय अपना मुँह धोया।

अब समय आ गया है, कि देश को पूरी तरह खुले में शौच से मुक्त किया जाए। खुले में शौच करने वाले नेताओं का सार्वजनिक बहिष्कार किया जाए। चुनाव आयोग को खुले में शौच करने वाले नेताओं का कम से कम एक महीने समस्त प्रकार के मलों का त्याग करने पर रोक लगानी चाहिए। इनको प्रेरित किया जाए कि अगर इनके घरों में शौचालय कम पड़ रहे हों तो ये सरकारी बंगलों के शौचालयों या फिर भी कम पड़ें तो विधानसभा और लोकसभा के शौचालयों उपयोग कर लें, लेकिन खुले में वैचारिक शौच करने से बाज आएं।

जनता को भी चाहिए कि इस प्रकार की गंभीर बीमारी से पीड़ित नेताओं की पहचान कर उन्हें उनके घर में पटकने का पक्का इंतजाम करे। शुभ गणतंत्र!!!

4 comments:

कबीर कुटी - कमलेश कुमार दीवान said...

अच्छा है बधाई

sanjeev persai said...

आभार, आपका
आशीष बनाए रखें

Unknown said...

Wow. .Mansik pradushan aur mera Neta Mahan. .

Unknown said...

Sanjeev Badhai. ..Dil ki baat canvas per bahut Khoob