पिछले दिनों मेरे एक पत्रकार मित्र ने एक किस्सा सुनाया जो कुछ यूं था -
लोकसभा चुनाव के सिलसिले में मध्य प्रदेश की एक पूर्व मंत्री को वक्तव्य लेने के सिलसिले में फोन लगाया, ये मध्य प्रदेश के एक राज घराने की सदस्य हैं, मित्र ने सीधे ही उन्हें उनके नाम के आगे जी लगा कर संबोधित किया।
सामने से आवाज आई - शायद आप मुझ से पहली बार बात कर रहे हैं ?
पत्रकार ने जवाब दिया - जी ये सही है,
सुनकर उन्होंने बोला - क्या आपने मेरे बारे में कभी सुना या देखा भी नहीं है ?
सो पत्रकार बोला - ऐसा नहीं है , मैं आपके बारे में पूरी जानकारी रखता हूँ,
तो आपको ये भी मालूम होगा की लोग मुझे मेरे नाम से संबोधित नहीं करते है वे मुझे ------------कहते हैं ,क्योंकि में -------------राजघराने से हूँ , उन्होंने कहा।
अब उम्मीद की जा रही थी की माफीनामा प्रेषित हो और चर्चा आगे बढे।
पत्रकार ने कहा - जो कहते होंगे उनकी वे जाने मैं इस स्वतंत्र देश का नागरिक हूँ और मेरी जानकारी के मुताबिक देश में लोकतंत्र है। आप अगर बात नहीं करना चाहती हैं तो कोई बात नहीं।
फ़ोन कट गया, लेकिन एक सवाल छोड़ गया की दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में ये क्या हो रहा है ?
ये घटना सामान्य हो सकती थी यदि लोकसभा के चुनाव नहीं चल रहे होते। पुराने राजशाही घराने अब सिर्फ नाम के ही रह गए हैं लेकिन इन घरानों को सर्वोपरि मानने वाले कम नहीं हुए। प्रायः देखा जाता है की मीडिया खासकर प्रिंट इन भूले बिसरे राजघरानों के लोगो को राजा साहब , महाराज जी , महाराजा, हुजूर या कुछ इसी तरह के संबोधन से लिखता है। अभी ग्वालियर में दो पुराने राजघराने के नेता मिले तो प्रिंट मीडिया में खबर आये की राजा और महाराजा आये एक ही मंच पर इस सोच को हम क्या कहेंगे और हमारे भोले लोग इस के प्रभाव में आकर उन्हें इसी से संबोधित करते है और उनके पैर पूजते हैं, बहुत चिंता होती है।
3 comments:
मेरे पुंगीबाज साथी, आपके प्रयासों के लिये धन्यवाद ,आप जिस तरह से से सबकी पुंगी बजा रहें हैं । उससे लगता है कि जल्दी ही बदलाव की शुरुआत होने वाली हैं। लेखक ,नेता,अधिकारी किसी की पुगीं बजाने से आप बाज नहीं आ रहैं हैं।....लगे रहों.........
Patrkar bhi akdu deekh raha hai thbi to badi baton ka shara lene laga. Sidhe hi kahta ki mein apka name adar se liya bat khatam.
व्यक्तिपूजन रग रग में रच बस गया है जी..ऐसे नहीं छूटने वाला.
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