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Friday, May 8, 2009

माँ

मैंने तुम्हारी बांहों के पालने में सोते हुए सपने देखे हैं और पांवों के हिंडोले पर झूलते हुए दुनिया देखी है। जब तुम मेरी बांहों में मनके और गले में चाँद सूरज जड़े-गंडे ताबीज डालती थी, तब मुझे यह कहाँ पता था की तुम्हारा जीवन भी ऐसे ही सूत्रों से बंधा है।
बहन बनकर रक्षा सूत्र बांधना सीखा और फिर पत्नी बनकर मंगल सूत्र पहनना मेरी रक्षा के लिए इतने सूत्र जोड़े की मैं और छोटा होता चला गया । आज तू नही है पर माँ मुझे आज भी तेरे हाथ वही गंडे और ताबीज पहनाते हुए लगते हैं ।
माँ अब मैं जान गया हूँ की ये मन के मनके होते ही इसीलिए हैं की इन्हें भीतर से पिरोकर ऊपर से बाँध दिया जाए पर तू इससे बंध और बिंध गयी तो कभी चिता पर और कभी चूल्हे में यूँ ही जलती रही और मोम बनकर यूँ ही गलती और पिघलती रही ।
माँ तू बहुत याद आती है, अब कुछ कहा नहीं जाता...........

1 comment:

संगीता पुरी said...

मदर्स डे पर भावों की सुंदर अभिव्‍यक्ति !!