Sunday, March 1, 2009

विचार मिलें या न मिलें - विचार जारी रहे

कल एक बहुत पुराने मित्र से मुलाकात हो गयी, दरअसल ये मुझसे लगभग 08 सालों बाद मिला है, तब ये कुंवारा था, और इसके विचारों और सोच को देखकर लगता था की जो भी लड़की इससे शादी करेगी हमेशा परेशानरहेगी. इतने सालों में उसने खासी प्रगति की थी, औपचारिक बात के बाद उसके पारिवारिक जिन्दगी के बारे में जानने की इक्छा हो गयी। ठीक ही है कहकर उसने टालने का प्रयास किया। जब कुछ भी खास नही निकल पाया तो उससे पुछा की इतने समय में तुमने जो प्रगति की है उसका क्या राज है। इसपर वो सहज लगा और उसने अपनी बात कही - उसका कहना था की इस प्रश्न के जवाब में में तुम्हारे पहले प्रश्न का जवाब भी दे सकता हूँ, इसका जवाब है की मेरे और पत्नी के विचार बिल्कुल भी नही मिलते हैं और मैं मानता हूँ की मेरी सफलता में सबसे बड़ा योगदान इसी बात का है. मैं आश्चर्य चकित रह गया, मेरा चेहरा देखकर वो प्रतिक्रिया भांप कर बोला - जब मेरे शादी हुई थी तब बहुत समय तक इस बात से परेशान रहा की मेरी पत्निऔर मेरे विचार नही मिलते हैं। ये हमारे बीच विवाद का कारण होता था। समस्या की विवेचना करने पर समझ आया की वो कई जगह सही होती थी या की वो अलग तरह से सोचती थी। कुछ समय तक हमारे बीच का माहौल ठीक नही रहा, एक दिन मैंने उससे चर्चा की में ये सोच कर हैरान रह गया की वो भी ऐसा ही सोचती थी, हमने तय किया की हम इसी को अपनी शक्ति बनायेंगे और तब से हम हर छोटे बड़े निर्णय मिलकर और पूरी चर्चा करने के बाद ही लेते हैं और हमारे निर्णय हमेशा सही होते हैं।
सार ये है की हम सभी इस समस्या से ग्रस्त हैं, लेकिन इसका धनात्मक पहलू देखने की बजाये हम अपने विचार थोपने को आमादा हो जाते हैं जो की समस्त समस्याओं की जड़ बन जाती है। अगर हम हमेशा अपनी बात पर अटकने की मानसिकता छोड़ देन तो आधी समस्या कम हो जाए. हमेशा ये सोचना ठीक नही है की जो हमारे बात से सहमत नही है या अलग विचार रखता है वो ग़लत है.

2 comments:

डॉ .अनुराग said...

दिक्कत तो ये है दोस्त जानते सभी है पर व्यवहार में उतारते नहीं है

Shikha Deepak said...

अनुराग जी ने सही कहा, अहं जो आड़े आजाता है।