Tuesday, February 17, 2009

महिला मुद्दे

मैं जानता हूँ की में जो कहने जा रहा हूँ अंततः मुझपर ही लौट के आ सकता है, लेकिन मैं फिर भी कह इसीलिए रहा हूँ की मुद्दों की बात हो तो मैं न किसी का दोस्त हूँ न किसी का दुश्मन।
एक बेनाम टिप्पणी के माध्यम से कोई भोपाल के प्रतिष्ठित अखबार के पत्रकार के द्बारा अपनी जूनियर के साथ की गयी हरकत को उकेरा जा रहा है, ये टिप्पडी मैंने कई ब्लोग्स पर देखी, प्रयास अच्छा है समस्या को सार्वजानिक करने का, लेकिन जब मामला महिला मुद्दों का हो तो इनके उठाने में पूरी गंभीरता, बहुत सतर्कता और बहुत सा साहस चाहिए होता है। प्रायः होता ये है की इन मुद्दों को उठाने वाले ही जाने अनजाने में उस वर्ग में शामिल हो जाते हैं जो की समस्या की जड़ है। हमें ये देख लेना चाहिए की सिर्फ़ चिंता जताने या करने से हम चिन्तक नही बन सकते हैं, अतः समस्या की शुरुआत से ही प्रयास ऐसे होना चाहिए की पीड़ित को न्याय मिले। सामान्य तौर से महिलाओं के विषयों पर निरंतर संवाद करने के लायक माहौल नही बनाया जाना ही इस सारी समस्या की जड़ मैं है, इसके लिए नारीवादी, पुरूष मानसिकता को ही दोषदेते आये हैं जो सही है, लेकिन इसमें सबसे बड़ा दोष उस वर्ग का भी है जो की इसकी विवेचना करने से बचता है, जरुरत एक ऐसा वर्ग तैयार करने की है जो की महिला समस्याओं की समस्याओं की विवेचना कर उसे उचित माध्यम से लोगों के सामने रखे । इसमें भावनात्मक और कानूनी पहलुओं का ध्यान रखा जाना चाहिए ।

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