गर्मियों में बाबूजी के साथ जब भी बाजार जाते, उनकी निगाहें बाजार के कोने में बेलफल तलाश रहीं होती। #पिपरिया के मंगलवारा बाजार और साप्ताहिक इतवारा बाजार में आसपास के आदिवासी ग्रामीण अंचलों के लोग बेल आदि जंगली फल लेकर आते। इनकी जमापूंजी बस ये बेलफल ही होते।
ये गर्मियों का हमारा स्थाई पेय था। हम सभी भाई बहनों को बाबूजी खुद शरबत बनाकर पिलाते। साथ में इसके गुण भी समझाते। इससे इम्यूनिटी बढ़ती है, गर्मियों में लू नहीं लगती है, हार्ट के लिए बढ़िया होता है, पेट ठीक रहता है, साल में एक बार जो पी लेता है, वो सालभर बीमार नहीं पड़ता...आदि आदि।
वो बेलफल की इतनी वकालत हमें शरबत पिलाने के लिए करते थे। हमें जंगलों से आने वाले सब फल जिनमें तेंदू, कविट, कचरी, बेल, सीताफल, कच्चा हर्रा, जंगली आंवला, अचार, निंबोली, पीढ़ी सब खिलाते। किस मौसम में कौन सा जंगली फल आता है, उनको सब मालूम था। खरीदने खुद जाते। हम इसमें एक खास बात देखते। कम तनख्वाह में घर चलाने वाले बाबूजी, बाकी दूसरी चीजों को खरीदते समय खासा मोलभाव करते, और हमें सिखाते भी। लेकिन इन फलों को खरीदने के समय कभी भी मोलभाव नहीं करते। यहां बेल की कीमत उसने 20 रुपए, बताई तो सीधे दे दी। हमें ये समझ नहीं आता कि जो फल जंगल से सिर्फ बीन कर, उठा कर लाते हैं। इन्होंने कोई उसे उगाया थोड़ी है। इनको मनमांगी कीमत लेकिन पैसा लगाकर लाने वाले से मोलभाव आखिर क्यों?
एक बार पूछा तो मुस्कुराते हुए बोले, बात व्यापार की नहीं है। बात सिर्फ यह है कि ये सब जंगल से आने वाले वनवासी हैं, इनके पास इसके अलावा कुछ नहीं। ये पैसा ही है, जो इनको मिल रहा है। सो उनसे कैसा मोलभाव। इनका जीवन सिर्फ इसी से चलता है। चार पैसे ज्यादा दें तो भी कोई बात नहीं, क्योंकि हमें जंगल और प्रकृति से जोड़कर हम पर एक तरह से अहसान कर रहे हैं। अगर ये न लाएं तो, ये सब तुम्हें कहां से मिलेगा।
एक वो समय था साल अस्सी के आसपास। पीछे मुड़कर देखते हैं, तो कितना कुछ बदल गया। अब इन चीजों पर भी बाजार के पिस्सुओं ने कब्जा कर लिया है। मेरी कोशिश रहती है कि साल के हर जंगली फल कम से कम एक बार घर में जरूर आएं, हम खाए और सबको खिलाएं। इसी सिलसिले को जारी रखते हुए हमने बेल का शरबत बनाया।
आप भी ट्राय कीजिए, इस समय बाजार में बहुत आ रहे हैं। प्रकृति से जुड़े रहने के लिए इतना जरूरी है। पैक भी मिल रहे हैं, लेकिन उनके चक्कर में न पड़ें। ताजा लाएं, खुद बनाएं, सबको पिलाएं!!
जय जय ...
Sanjeev Persai
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