आज चर्चा हालिया प्रकाशित किताब "समय के संग संग" की। यह किताब मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी से चयनित पांडुलिपि है। मनीषा शर्मा जी ने लिखी है। मनीषा जी का लिखा कई सालों से पढ़ रहे है, नियमित ब्लॉगर है। पिछले सालों में उनके ब्लॉग सुरंजिनी पर प्रकाशित ब्लॉग्स का संग्रह है, किताब समय के साथ साथ।
इन आलेखों में एक पैटर्न है। ये सभी परिवार और समाज पर केंद्रित हैं। अंतर्मन की आवाज जान पड़ते हैं और महिलाओं के प्रति एक सशक्त आवाज भी उठाते दिखते हैं। रिश्तों की ऊहापोह, लाड़लियों की चिंता, मोबाइल की बीमारी, महिलाओं की चिंता, मीडिया, से लेकर रंगभेद तक अपनी चिंता इन लेखों में व्यक्त की है। नारी तुम केवल विज्ञापन हो, में वे नारीत्व के बेतरतीब प्रदर्शन पर चिंतित हैं, वहीं मदर्स डे का ढकोसला में उन बच्चों को नसीहत दे रहीं हैं, जो अपने कर्तव्य से विमुख हो रहे हैं। अपने आलेखों में उन्होंने प्रदेश, देश, विदेश के मुद्दों को झांका है, वहीं दूसरी ओर वे देश को लेकर हमारी सोच को भी चुनौती देती हैं। सरहद की असलियत में वे बता रहीं हैं कि नेतागिरी करने वाले अपने बच्चों को फौज में नहीं भेजते। जबकि ऐसा होना चाहिए। ये आज के समय की जरूरत है कि ये लोग अपने बच्चों को बड़े बड़े पदों पर बिठाने के पहले सेना में भेजें।
कुल मिलाकर एक अच्छी किताब बन पड़ी है। लोक प्रकाशन से छापी है। क्वालिटी आला दर्जे की है। अमेजन पर उपलब्ध है, पढ़िएगा जरूर।
जय जय
Manisha Sanjeev Sanjeev Sharma Manoj Kumar Sanjay Saxena रीडर्स क्लब Creative Cross
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