Sunday, March 10, 2019

स्वच्छ भोपाल - शर्मिंदगी की सर्जिकल स्ट्राइक

( संजीव परसाई) दृश्य 1 - लो जी, अपना भोपाल दो से उन्नीस नंबर पर आ गया। नगर निगम इसका जिम्मेदार है, कर्मचारी काम नहीं करते हैं, सरकार ने सुविधाएं नहीं दी, बजट कम पड़ गया था, अधिकारियों ने न तो मेहनत की न ही अपने पूरे प्रयास किये आदि आदि इत्यादि। अखबारों की हेडलाइनस उन्नीस नंबर पर फिसला भोपाल, नगर निगम की नाकामी आई सामने, बरसों से जमे अधिकारियों ने दिखाया भोपाल शहर को नीचा, करोड़ों खर्च करके भी हाथ से निकला नंबर 2 का ताज।
दृश्य 2 - सिटी में केबल स्टे ब्रिज के उद्घाटन के चार दिन बाद उस ब्रिज को पान की पीक से रंग दिया गया, दुःखी होकर महापौर ने खुद वो पान की पीके साफ कीं। शहर में सूखे और गीले कचरे के लिए जगह जगह अंदर ग्राउंड डस्ट बिन लगे हुए है, प्रयास है कि कचरा उनके अंदर ही रहे लेकिन हालत यह है कि लोग कचरा उसके बाहर ही फेंकते हैं, मजे की बात यह है कि ये उन इलाकों की बात है जहाँ तथाकथित पढ़ी लिखी आबादी रहती है।
दृश्य 3- शहर की कालोनियों में सभ्रान्त लोग रहते हैं, लेकिन अधिकांश टाउन शिप के आसपास कूड़े के ढेर लगे हुए है, अब आप सोच रहे होंगे कि ये कचरा कहाँ  से आया, इसका जवाब है उन्हीं पढ़े लिखे धनाढ्य लोगों के घरों से, जो अपने फ्लैट की बालकनी से कचरे की थैली सीधे निशाना लगाकर उछालते हैं, वाह क्या निशाना है। दूसरी बात ये मूर्ख धन्नासेठ अपने घरों में जानवर पालने के शौकीन हैं, स्टेटस सिंबल का सवाल भी तो है। सुबह शहर की सड़कों को खुली आवोहवा को कुत्तों का संडास बनाने में इनका बहुत बड़ा योगदान है। अब इनको कौन समझायेगा।
दृश्य 4 - क्या आप जानते हैं कि प्रदेश में अमानक प्लास्टिक पूरी तरह से बेन है, लेकिन जरा बाजारों में घूमकर आइए। शायद ही कोई ऐसी दुकान हो जहाँ पॉलिथीन न मिले। शायद ही कोई ऐसा ग्राहक हो जो अपने घरों से थैला लेकर चलता हो, और पॉलीथिन न मांगे। इसके साथ प्रदेश में खुले में शौच करने, कचरा फेंकने, नालियों में कचरा डालने, कचरा जलाने, जल स्रोतों को प्रदूषित करने आदि पर पाबंदी है। लेकिन कितना लोगों की समझ में आ रहा है, यह भी देखने की बात है।
दृश्य 5 - अब आप ये भी सोच रहे होंगे कि जब शहर में ये सब चल रहा है तो नगर सरकार क्या कर रही है। क्या ये सब उनकी जिम्मेदारी नहीं है। बिल्कुल है, उन्होंने विशेष अभियान चलाए, इंफ़्रा की व्यवस्था की, नियम कायदे बनाए, उनको लागू किया, अवहेलना करने वालों पर जुर्माना भी किया। नहीं किया तो बस इतना कि अपनी जिम्मेदारी न समझने वालों को डंडे नहीं मारे, उनपर आपराधिक केस न दर्ज करवाये, अमानक प्लास्टिक का उपयोग करने वालों को जेल न भिजवाया। अगर आप ये भी उम्मीद कर रहे थे तो वाकई नगर निगम जिम्मेदार है।
जिस शहर के नागरिक जिम्मेदार न हों, शहर की आत्मा से न जुड़े हों, अपने कर्तव्य को भूलकर सिर्फ अधिकारों और टीका टिप्पड़ी पर फोकस करते हों, उस शहर का 19 नंबर पर आना भी कोई चमत्कार से कम नहीं है। हालांकि भोपाल अब भी देश की स्वच्छ राजधानी है लेकिन नंबर 2 का ताज छिन जाने के लिए इस शहर के सभ्य, पढ़े लिखे शहरी भी उतने ही जिम्मेदार हैं, जिनके ऊपर शर्मिंदगी की सर्जिकल स्ट्राइक होना चाहिए।

1 comment:

Anonymous said...

No. 2 ka Taj bhi vivadspad rahega hamesha.
Parantu iska pratham shrey NN ko ji jayega jisne nagrikon ko apne aas pass kachra na fekne ke liye koi vikalp diya ho.