Monday, February 4, 2019

डॉक साब और सोशल मीडिया

(संजीव परसाई)  डॉक्टर साहब सोशल मीडिया के सहारे देश में समाजवाद लाने का जज्जा रखते थे। सो चले आए कि अब बदलाव की दिशा हम तय करेंगे। इरादा नेक था लेकिन डगर कठिन थी। दो-पाँच-दस से होते हुए उनके हजारों फॉलोअर हो चले। सरकार की कमियाँ निकालकर उन्हें अपने फॉलोअर तक पहुंचाना उनका एक मात्र लक्ष्य बन गया। अखबारों से उड़ाई खबरों को वे इस तरह से प्रस्तुत किया करते जैसे कि यह खबर खुद उन्होंने ही ब्रेक की है। कुछ भी हो लेकिन उनके फॉलोअरों  ने उन्हें कभी निराश नहीं होने दिया। टुच्चे से अपडेट पर भी डॉक साब के तीन-चार सौ लाइक, सवा-डेढ़ सौ कमेंट और अस्सी-नब्बे शेयर कहीं नहीं गए। ये लाइक, शेयर और कमेंट ने डॉक साब के अकादमिक जीवन में नई जान फूंकते रहे। उनका उत्साह बढ़ता गया। वे सरकार से लेकर आम आदमी, नेताओं से लेकर अभिनेताओं, नीतियों से लेकर निर्माताओं तक सोशल मीडिया पर तलवारें भाँजते रहे। डॉक साहब खुद को पत्रकार के बराबर, न्यायाधीश से कुछ कम, बुद्धिजीवी से बहुत बड़ा आंकने लगे.

डॉक साहब को सोशल मीडिया ने बौद्धिक पहचान दी। जिसके लिए वे ताजिंदगी तरसते रहे। उन्होंने सरकार के घोटालों पर एक से एक टिप्पणियाँ कीं, नेताओं की टिप्पणियों पर भी टिप्पणियाँ कीं उन्हें शेयर किया। टिप्पणियों पर आयी टिप्पणियों पर भी खासी टिप्पणियाँ कीं। सोशल मीडिया को हिलाकर रख दिया। लोग कहने लगे कि डॉक साब, अगर इन चुनावों में सरकार हारती है, तो उसका एक बड़ा कारण आप भी होगे। आपने इस भ्रष्टाचारी सरकार की जड़ें हिलाकर रख दीं हैं। डॉक साहब मन ही मन अपने बढ़ते आतंक से  खुश भी होते रहे। साथ ही उन्हें इस बात की भी खुशी थी कि उनकी बौद्धिकता को अब एक पहचान मिल रही है।

असल में हम और राजनीति दोनों ही बुरे हैं। न हमारे बिना राजनीति होगी, न ही राजनीति के बिना हम। अतः हम दोनों एक दूसरे की बुराई सहने के लिए विवश हैं। अति उत्साह में वे कब राजनैतिक विरोध में शामिल हो गए, उन्हें पता ही नहीं चला। सोशल मीडिया पर अतिउत्साह में किया गया समर्थन या विरोध असल में काँटे से काँटा निकालना था। यह डॉक साब को देर से समझ आया। वे समस्या के निदान में बदलाव को इलाज मान रहे थे। लेकिन यह उनकी सोच से भी आगे था।

लोगों ने बदलाव को स्वीकार किया। सभी खुश थे कि चलो कुछ ठीक हुआ। डॉक साब भी प्रसन्न थे। उनकी बौद्धिकता साबित हुई, उनके विचारों की जीत हुई। बुद्धिजीवी बिरादरी के लिए जश्न का वातावरण था। वे अपनी जीत से अधिक सिद्धांतों की जीत का जश्न मना रहे थे। सभी लोग फूले फूले घूम रहे थे, कि उन्होंने अँधेरे की सरकार हटा कर उजाले को जिताया है सोशल मीडिया पर चहुँ ओर जय जयकार हो रही थी। जिन्होंने बदलाव में भूमिका निभाई, उन सभी को जमकर सराहा जा रहा था। डॉक साब के फॅालोअर उन्हें नेता या कहें स्टार की तरह प्रस्तुत कर रहे थे।  यूँ डॉक साब का सपना पूरा हुआ, वे अगड़ों की जमात में शामिल हो गए। विभिन्न विश्वविद्यालय उन्हें भाषण देने के लिए आमंत्रित करने लगे। आयोजनकर्ताओं ने उन्हें एसी-3 से सीधे विमान यात्रा का व्यय देना स्वीकार कर लिया। अब वे मीडिया के अधिकारिक बुद्धिजीवी जो थे, चैनलों से प्राइम टाइम में ज्ञान बाँटने के बुलावे आने लगे। अब वे सोशल मीडिया के वेरीफाईड एकाउंट में भी अपनी बात कहने लगे। अपने एकाउंट पर ब्लू टिक लगा देखकर फुले नहीं समाते.

इस तरह डॉक साब ने समाज के विकास में अपना योगदान जारी रखा। वे गाहे बेगाहे नई सरकार को भी गलतियाँ न दोहराने के लिए चेताते रहे। एक दिन डॉक साब मिले, चेहरे से दुखी प्रतीत हो रहे थे। उनके मुँडेर जैसे मुख पर रखा दुख, थर्माकोल का गिलास दिखाई दे रहा था। जो हल्के से हवा के झोंके के इंतजार में था। कहने लगे-जो हो रहा है उसकी उम्मीद तो नहीं की थी। संवेदनाविहीन भाव से नमस्ते करके मैं चलता बना। मैंने संवेदनहीनता को आदत न बनाकर उसे ताकत के रूप में इस्तेमाल करना भी सीख लिया है, यहाँ मैंने उसका इस्तेमाल किया ।

अगले हफ्ते डॉक साब का सोशल मीडिया पर नया अवतार आया। डॉक साब ने नई सरकार को भी कठघरे में खड़ा करना शुरू  कर दिया। दो तीन लाइक, कमेंट व शेयर नहीं। डॉक साब दुखी मन से सोशल साइट पेज को देखते रहे। उन्हें साफ़ नजर आने लगा कि लोग उनसे कन्नी काट रहे हैं. उन्होंने उम्मीद का दामन थामे रखा, काश कि कोई कमेंट करे, लाइक ही कर ले, पर निराशा हाथ लगी। वे निराश होकर उन लोगों को तलाश कर रहे थे, जो उनके फॉलोअर व प्रशंसक थे। कहाँ गए होंगे वे सब।

कुछ दिन डॉक साब सदमे में रहे। उधर मीडिया में भी एक उनके बागी होने की खबरें आने लगीं। मौका पाकर मीडिया भी सरकार के खिलाफ खबरें पकाने लगा। उनके विरोध के असमंजस को मीडिया ने पुख्ता कर दिया। दो दिन उन्होंने इंतजार किया, कि कुछ खबर बदल कर आए लेकिन उस पर भी नई नई खबरें आने लगीं। सोशल मीडिया भी पक्ष-विपक्ष दोनों तरह से सक्रिय होने लगा। डॉक साहब भी उतर गए रणक्षेत्र में।

एक अपडेट, दो अपडेट, तीन, चार, पांच........लगातार अपडेट ही अपडेट। वहीं दो लाइक, एक लाइक, चार लाइक, दो, छः, सात  लाइक बस। अब उनकी निराशा चरम पर थी। वे अपने हर हथियार को इस्तेमाल करने के विचार से लगे रहे।

खाना खाकर उठे ही थे कि उनके अपडेट पर एक कमेंट प्राप्त हुआ। हाथ धोना छोड़ तत्काल अपडेट बांचने लगे। उनके एक प्रशंसक का ही था। अपडेट पढ़कर उनकी आँखों के सामने अँधेरा छाने लगा....

अबे पागल हो गया है क्या?

उन्हें संसार की असारता पर विचार पुख्ता हो उसके पहले दूसरा भी आ गया।

@##%^&^%%## जूते खाएगा क्या?

विपक्ष के दलाल कहीं के........

सत्ता के लोभी, जुगाडू........

गंजे तेरी@^^$^##^@^@%^#

सुधर जा नहीं तो, चौराहे पर लाकर मारेंगे......

तुम्हें अकल नहीं है, तो हमसे मांग लो....

दो कौड़ी के बुद्धिजीवी.......

ये देशद्रोही है, ऐसे लोगों को सबक सिखाना जरूरी है.

अबे इसकी बीबी का अफेयर किसी और से चल रहा है, सो ये पागल हो गया है..इसे पागलखाने भेजो यार.........हा हा हा 

अपने चाहने वालों से ये सब सुनकर उनका दिल बैठा जा रहा था। अंदर तक हिलने के बाद उन्होंने सोशल मीडिया से रवानगी को ही उपाय समझा। 

अब डॉक साब सोशल मीडिया पर कद्दू, लौकी, गिलकी, टिंडे की खेती किचन गार्डन में कैसे करें, इस विषय पर अपने विचार रखते हैं, आज भी उनकी राय निष्पक्ष और तटस्थ हैं। कहते हैं जल्द ही शाकाहार को प्रमोट करने के लिए सोशल मीडिया पर अभियान चलाएंगे।

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