Monday, December 24, 2018

एक था टाइगर..

(संजीव परसाई) वो धार्मिक प्रवृत्ति का था, लेकिन था तो टाइगर। जंगल में पांव-पांव घूमा करता। सतपुड़ा के जंगलों में दूसरे शेरों, टाइगरों, भेड़ियों, शिकारियों से मुलाकात होती, उनको नमस्कार करते, पर कभी किसी से पंगा न लेता। शिकारियों से यारी टाइगर की यूएसपी थी।
जंगल में प्राणियों से घुलमिल कर उनके हाल चाल लेता और बिना भनक के शिकार चलता रहता। सब उसकी सौम्यता पर फिदा थे, वन में हिरण, खरगोश, वानर आदि जानवर चिरौरी करते- भैया राजा तो तुमई बनियो, टाइगर मुस्कुरा देता, कहता जब नर्मदा मैया चाहेंगी, तो बन जाऊंगा। दिन गुजरे, रातें गुजरीं, नर्मदा मैया बहती रहीं, उनकी रेत और वन कटते, बढ़ते रहे।
एक दिन टाइगर राजा बना, वन जानवर संपर्क विभाग के खर्चे से उसकी सौम्यता की ब्रांडिंग की गई। लेकिन सलाहकार भेड़ियों ने उसका टाइगर का ड्रेस खूंटी पर टंगवा कर गाय का ड्रेस पहना दिया।
उसने जंगल का खजाना खोल दिया सब कुछ मुफ्त में बांटने लगा, भूखे जानवरों को खिलाने के वाद करता, उनको इलाज का पेंशन का वादा करता। सब खुश थे। उसने अपने आसपास तैनात भेड़िये उसे बताते कि शिकार कहाँ है, कभी कोई पकड़ लाता, कभी कोई। कुछ भेड़िये ठेके पर शिकार लेने देने लगे। जंगल में इंफ्रास्ट्रक्चर, आईटी का काम निकाले जाने लगे। पंछियों के घोंसले, बाघों की गुफाएं, साँपों की वामियाँ, चमगादड़ों को लटकने के लिए डैने बांटे जाने लगे। धड़ाधड़ टेंडर होते भेड़िये मलाई खाते और दूर बैठे शिकारी उनसे शिकार न करने की कीमत वसूलते। बीच बीच में उन शिकारियों की नजर टाइगर पर भी तिरछी होती, लेकिन अब तक टाइगर ने मैनेज करने सीख लिया था। टाइगर के बंधु बांधवों की जंगलों के पेड़, खनिज और नदियों की रेत और पानी पर नजर रहती। वे इनका व्यापार करते और अपने लिए मांस जमा करते। मांस सड़ता तो कृषि विभाग की योजनाओं का लाभ लेकर कोल्ड स्टोरेज बनाते नए दड़बे बनाते। नर्मदा किनारे के जंगल काटकर पौधे लगाते मैया से माफी मांगते। जानवर अब भी टाइगर की बातों को गंभीरता से लेते। लेकिन शिकारियों और साथी भेड़ियों की चालों के साथ धीरे धीरे टाइगर का मायाजाल फीका हुआ, अब टाइगर भेड़ियों और शिकारियों के साथ खड़ा दिखाई देने लगा। शिकारियों के बढ़ते प्रभाव ने जानवरों में असंतुष्टि का भाव जगा दिया। सो टाइगर को राजा पद से हटना पड़ा। टाइगर ने बहुत हाथ पैर मारे लेकिन मामला जमा नहीं। टाइगर ने खूंटी पर 13 साल से टंगा टाइगर का ड्रेस उतारा, भेड़ियों, शिकारियों को घूरकर देखा और अपने परिवार सहित घने जंगल में विचरण करने चला गया।
घने जंगल के शांत वातावरण में बस गहरी गहरी साँसों की आवाजें ही गूंज रहीं थीं। सर्दी का मौसम था सो टाइगर और उसकी धर्मपत्नी आग जला कर हवाओं के थपेड़ों को कमजोर करने की कोशिश कर रहे थे। धीरे से धर्मपत्नी बोली - सुनिए जी, अब तो इस जंगल पर हमारा राज भी नहीं रहा, अब क्या होगा? टाइगर उसाँस लेकर बोला - अभी तो इस जलती आग का आनंद लो प्रिये, देखना कुछ देर बाद हमें इसकी दोगुनी जरूरत महसूस होगी। जब यह नहीं रहेगी, तब हमें इसकी कमी खलेगी।  टाइगर धर्मपत्नी से कहने लगा -तुमने ब्लड प्रेशर की गोली खा ली?
धर्मपत्नी ने मुँह बिचकाकर पूछा - पूछ तो ऐसे रहे हो जैसे कि तुमने डायबिटीज की गोली खा ली हो। चलो कुछ खा लेते हैं, फिर दवाइयाँ लेंगे। और दोनों जंगल में शिकार की खोज में चले गए।
उधर जंगल का माहौल बदल गया था, लोग नए वनराज के नजदीकी होने के लिए कुछ भी करने को तैयार थे। जो भेड़िये  टाइगर के खास थे उन्होंने दो चार नरम भेड़ें नए वनराज को पेश कर दीं, नए वनराज ने दुत्कार दिया सो दुबक गए। दूसरे गायें, बैल, हाथी, खरगोश, हिरण, बारहसिंघा, चीतल, भैसे लाइन में खड़े होकर हुकुम का इंतजार कर रहे थे। अचानक दो बिल्ली दौड़ते हुए आईं और चिचियाते हुए कहने लगीं - टाइगर फिर से शिकार पर निकला है। भेड़िये कहने लगे - सर क्या करें आप आदेश कीजिए।
वनराज शांत रहे कहा - इसमें कैसी चिंता। उसे भी पेट भरने का हक है। छोड़ो तुम काम में मन लगाओ, भेड़िये दुखी हो गए कि वनराज ने सेवा का अवसर ही नहीं दिया।
उधर टाइगर गायों, हिरणों, बैलों, हिरणों आदि की सभा करता और उनसे अनदेखी की माफी मांगता, कहता अब कोई माई का लाल तुम्हें परेशान नहीं करेगा, तुम्हारा टाइगर अभी जिंदा है। गायें, उसे देखतीं, फिर नीचे मुंह करके घास का पूला लपक लेतीं, जुगाली करतीं। टाइगर अपनी एक ही बात को कई बार दोहराता। गाय दूसरे जानवरों को बतातीं वो टाइगर आया था, जो 13 साल गाय का ड्रेस पहनकर घूमता था।

2 comments:

Prakashhindustani@bloggspot.com said...

मामा देख रहा है सब

Vikas Singh said...

Ek dam sahi kah rahe hai Sanjeev Ji...