Wednesday, November 14, 2018

भिया तो गे हैं....

(संजीव परसाई) पत्रकार तो पत्रकार होता है, क्या छोटा क्या बड़ा। लेकिन कैलकुलेशन इतना आसान भी नहीं है। बड़ा पत्रकार अपने लिए बड़ी और महत्त्वपूर्ण बीट मांगता है। बड़े आयोजनों के आमंत्रण दबा लेता है। बड़े लोगो से मिलने के मौके पर जूनियर को सिगरेट लेने भेज देता है। वो अपने लिए हर बड़े और महत्त्वपूर्ण मौके रिजर्व रखता है, जूनियर को अपनी कलम में दम लाने का स्थायी रोजगार देकर बहलाता है।
वो जी भिया, सुनने का इस कदर आदि हो जाता है, कि घर में भी और बीबी के श्रीमुख से जी भिया का उच्चारण होने की राह तकता है। भीड़ में अकेला ही होता है, सामान्य चर्चाओं से बहुत जल्दी ऊब जाता है वो गर्म विषयों पर अपनी आग उगलती और बैडरूम तक से तथ्यों को विस्तार से कहने को आतुर होता है।
वो जानता है कि मुख्यमंत्री किसे डराता है और किससे डरता है। किसे बचाता है किसे छोड़ता है, किसका खाता है किसका गाता है। ऐसे किस्से उसके लिए स्कॉच के पैग होते हैं, जिसमें दूसरा लेने के लिए पहले का खत्म होना जरूरी नहीं होता।
जूनियर, भिया की बातें सुन सुन खांटी पत्रकार बन रहा है। उसके लिए भिया मर्द हैं, जो अपने सवालों और कलम से किसी भी भ्रष्टाचारी को लघुशंका ला सकते हैं। उसे भिया का बिना परमीशन प्रमुख सचिव के कमरे में घुस जाना, एक फोन पर जनसंपर्क से गाड़ी बुला लेना, अपनी वेबसाइट और अखबारों के लिए विज्ञापन लिखवा लेना बहुत आकर्षित करता है। भिया पार्टियों में बड़े लोगों के साथ फोटो खिंचवा उसे फेसबुक पर ठेलते है। इससे भिया का आभामंडल दिखता है।  भिया भरी प्रेस वार्ता में नेता को असहज करने वाले सवाल पूछते हैं तो उसका दिल भिया के लिए अगाध श्रद्धा से भर जाता है। भिया पार्टी से बाहर निकलकर मंत्री से चिपक लिए - कहने लगे भाई साब आपका कुर्ता तो बड़ा गजब है, कहाँ से लिए, बिल्कुल ऐसा ही में भी ढूंढ रहा हूँ। मंत्री जी ने तिरछी नजर से देखा और आगे बढ़ लिए।
भैया भी आगे निकल लिए, जूनियर से बोले - साला चोर है, मैं तो ऐसे लोगों के मुंह भी नहीं लगता। बाहर निकलकर वो भिया के लिए गाड़ी का दरवाजा खोलता है। साथ बैठकर उनको बधाई भी दे देता है। भिया अब अपनी तारीफ खुद कैसे करें सो मुस्कुरा देते हैं। भिया जूनियरों को कलम और कैमरा थमाकर स्टिंगर रिपोर्टर बनाते हैं और उनके सामने अपनी मर्दानगी का प्रदर्शन करते हैं। जूनियर जयजयकार करते हैं और गर्व से बोलते हैं भैया तो असली मर्द हैं।
भैया दीवाली पर गिफ्ट मांगते हैं, न मिले तो फैल जाते हैं, उनकी नजर इस पर भी होती है कि दूसरे पत्रकारों को क्या मिल रहा है, जूनियर इसको प्रक्रिया का हिस्सा मानकर चलता है। अचानक अंदरखाने में ख़बर चल पड़ी कि किसी पार्टी चुनावी फायदे के लिए पत्रकारों को लक्ज़री कार गिफ्ट की है। भिया का नाम आते आते रह गया, भिया का अस्तित्व आफत में आ गया। भिया ने पुरी दम लगाकर कार गिफ्ट में वसूल कर ही ली। देने वाला भी सयाना था, उसने ये खबर चारों ओर फैला दी। अब सब ये बताने में जुट गए कि हमें तो ससुरजी ने गिफ्ट की है। उधर लोग लंबी नाक लेकर घूमने वाले पत्रकारों को नकटा कहने लगे। जूनियर ने डंके की चोट पर ऐलान कर दिया अरे हमारे भिया ऐसे नहीं हैं। वो तो असली मर्द हैं कोई इनकी कलम को खरीद नहीं सकता। सुनने वाला रामसिंग भी कम नहीं था उसने भिया और भिया जैसे पच्चीसों की सारी करतूतें लिखकर थमा दीं कि कैसे प्लाट, लैपटॉप, सरकारी सुविधाएं, कमीशन, ट्रांसफर, पोस्टिंग जैसे कारनामों में भिया अपनी रेहड़ी लगा कर बैठे हैं और उनके शरीर और आत्मा में अब बेचने को कुछ बचा नहीं है। उसने लगे हाथ भिया का रेट भी बता दिया। जूनियर सन्न रह गया, जिस रास्ते चलने वो अपने आप को गला रहा था, असल में वह राह तो दलाली की थी। और उसके लिए पत्रकारिता करने या उसका चोला ओढ़ने की जरूरत ही नहीं थी। रामसिंग ने एक कागज पर कुछ लिखा और जूनियर को थमा दिया। उसपर लिखा था - भिया मर्द हैं। जूनियर ने लिखा - भिया गे हैं, और ये कानूनन गलत नहीं है।

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