Monday, October 1, 2018

बताने वाली बात ये है कि.....

(संजीव परसाई) रामसिंग आज कहने लगा, भैया अगले महीने में 15 दिन के लिए अमेरिका दौरे पर जा रहा हूँ, कोई काम हो तो उसके पहले ही बता देना। हमने उसको ऊपर से नीचे तक दो बार देखा और फिर काम में लग गए। लेकिन उसे ठीक नहीं लगा, क्योंकि उसने बड़े दिल से कहा था। आप मुझे जलकुकड़ा कह सकते हैं। जिसके पास पासपोर्ट तक न हो उसे कोई विदेश दौरे की खबर सुनाएगा तो वो सटक ही जायेगा। लेकिन रामसिंग को छोड़ो उसकी बात को पकड़ो, असल में बताने वाली बात ये थी कि वो विदेश जा रहा है। जिसे उसने मेरे काम की चिंता की फॉयल में लपेट कर प्रस्तुत कर दिया था।
आजकल ये हवा में है, कहने वाली बात कुछ और होती है, बताने वाली कुछ और। एक पार्टी बताती है कि दूसरी पार्टी मुसलमानों की पार्टी है, असल में वो ये दिखाना चाहती है कि हम हिंदुओं की पार्टी हैं। ये कहना कुछ और बताना कुछ की परंपरा आदि काल से चली आ रही है। इसी चक्कर में राम को वनवास जाना पड़ा। माता कैकेयी तो बस इतना चाहती थीं, कि उनका बेटा भरत अयोध्या पर राज करे, लेकिन राम के वनवास में लपेटकर अपनी बात रखी सो मामला गंभीर और यादगार हो गया। अगर सीधे सीधे कहा होता तो बात वहीं खत्म हो जाती और हम आज राम को न भज रहे होते न उनके नाम पर सरकारें बन रहीं होतीं।
अम्मा कहती थीं, बेटा पढ़ ले भविष्य बन जायेगा। असल में वो कहना चाह रही है कि कुछ खाने कमाने लायक बन जा नालायक, कब तक हमारी छाती पर मूंग दलेगा। पर वो संकोच में कह नहीं पा रही है। पति अपनी पत्नी से कहता है जानू आज तुम बहुत सुंदर लग रही हो। तो वो असल में ये बताना चाह रहा है कि बाकी दिनों में तुम चुड़ैल लगती हो। लेकिन जान के डर से सही बात को घुमा रहा है।
हमारे देश और प्रदेश दोनों में एक ही सरकार है, लेकिन सारी समस्याओं के लिए वे उस पार्टी को जिम्मेदार ठहराते हैं, जो न अभी सरकार में है न उनके आने की कोई खास संभावना है। असल में वो हमें ये बताना चाह रहे हैं कि हमसे भी कुछ खास उम्मीद मत रखना।
सरकार ने कहा है हम काशी को क्योटो बनाएंगे। दिल्ली को वाशिंगटन, लखनऊ को लंदन, भोपाल को बीजिंग, कोलकाता को न जाने क्या बनाएंगे। असल में बताने वाली बात ये है कि हम कभी भी कुछ भी नहीं बनाने वाले काशी को क्योटो बाने के पहले हमें देश को जापान और देशवासियों को जापानी बनाना पड़ेगा। इसी तरह देश को अमेरिका, इंग्लैंड, चीन, सब बनाएंगे लेकिन भारत को भारत कभी नहीं बनाएंगे। हम ऐसी हालत कर देंगे की आपको भविष्य के सपने आने ही बंद हो जाएंगे। बुद्धिजीवी देश पर चिंता जताता है उसे सबमें खोट नजर आता है, वो कहता है गरीबों का जीना मुहाल हो गया है। असल में वो देश में सिगरेट, कॉफी और व्हिस्की पर छाई महंगाई की मार से व्यथित है। जो उसके बुद्धि पर पत्थर मारने जैसा है।
बात सिर्फ इतनी है कि बात दो तरह की होती है एक कहने वाली दूसरी बताने वाली। जरूरी नहीं कि कहने वाली बात ही बताने वाली हो। वैसे भी बातों के निहितार्थ निकालने में हम अव्वल नंबर हैं। कभी कभी जो कहीं न गई हो हम उस बात के भी गूढार्थ निकाल ही लेते हैं। एक संभावित राजा ने अपनी प्रजा से कहा मैं जब गद्दी पर बैठूंगा में आपकी सेवा करूँगा, किसी को गलत काम नहीं करने दूंगा, कोई दुश्मन हमारे राज्य पर तिरछी नजर भी न डाल सकेगा, हर एक के पास उसका घर होगा, हर बच्चे को शिक्षा मिलेगी, हर हाथ को काम मिलेगा, हर घर खुशहाली होगी आदि आदि। लेकिन बताने वाली बात सिर्फ इतनी थी कि मैं गद्दी पर बैठूंगा। जनता ने जयजयकार की, उसे आदत है, अब वो बुरा भी नहीं मानती।

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