Tuesday, September 25, 2018

तुम्हें पितरों का वास्ता....

(संजीव परसाई) बिहार के मुख्यमंत्री हत्यारों और अपराधियों से हाथ जोड़कर विनती कर रहे हैं कि -भैया कम से कम पितृपक्ष में  तो अपने धंधे को विराम दो और लोगों को मत मारो। सुनकर दिल भर आया, पितरों के लिए इतना संवेदनशील और समर्पित आदमी पहली बार दिखाई और सुनाई दिया।
औरंगजेब ने अपने बाप को जेल में डाल दिया और उसे पानी तक के लिए तरसाया तो, उसने कहा तू हिंदुओं से कुछ सीख जो अपने मरे हुए पूर्वजों को भी पानी देते हैं, एक तू है जो मुझे जिन्दे में पानी के लिए तरसा रहा है। अगर शाहजहाँ को ये अंदाज होता कि 21 वीं सदी में एक अथक पितृ भक्त और हिन्दू हृदय सम्राट का अवतार बिहार के उपमुख्यमंत्री के रूप में होंने वाला है तो उसका जिक्र भी वो तभी कर डालता।
सचमुच बिहार की मूर्ख जनता के लिए आज का दिन हमेशा याद रखने वाला है। जनता को मूर्ख इसीलिए कहना चाहिए कि वो अब तक अपने मसीहा और पितृ भक्त को समझ नहीं पा रही है और उनके बयान के लिए उन्हें ट्रोल कर रही है।
ये देश में अपराध, भ्रष्टाचार को खत्म करने का एक रेवोल्यूशनरी आइडिया साबित हो सकता है।
सरकार को भी इस प्रकार की सार्वजनिक अपील जारी करना चाहिए कि सभी भ्रष्टाचारियों से करबद्ध अपील है कि वे पितृपक्ष में भ्रष्टाचार न करें। बैंकों को भी अपने डिफॉल्टर्स से कहना चाहिये कि वे बैंकों का पैसा लेकर पितृपक्ष में न भागें, हमारे पूर्वजों को तकलीफ होती है। हालांकि रमजान के समय कश्मीर में सीज फायर लागू करके सरकार ये फार्मूला टेस्ट कर चुकी है। कश्मीर में गृहमंत्री हाथ जोड़कर गिड़गिड़ा रहे थे, कि भाईजान इस पाक महीने में तो कम से कम लोगों को मत मारो, उन्होंने अल्लाह के वास्ते इस अपील को मान लिया और सिर्फ 10-20 को ही मारा, जबकि उनके प्लान 40-50 को मारने का था।
वैसे हमारे धर्म में हमें ऐसे बहुत से मौके दिए हैं कि हम साल में कम से कम 150 दिन देश को अपराध मुक्त रख सकते हैं। सरकार को दीवाली, दशहरा, नवदुर्गा, गणपति, रक्षाबंधन, पोला, पोंगल, गुरूपरब, ईद, ईस्टर आदि विभिन्न अवसरों पर ऐसी अपील जारी करना चाहिए। ताकि कम से कम इस देश की जनता तो चैन से जी सके। सरकार एक कानून भी इस बाबत बना सकती है कि इस दौरान जो भी अपराध होंगे उसके लिए सरकार जवाबदार नहीं होगी। उनपर न पुलिस कार्यवाही करेगी, न अदालत केस सुनेगी। बस पीड़ित और अपराधी को खुद को ही इस मामले को निपटाना होगा। हो सकता है इसी बहाने अपराध काम हो जाएं और पुलिस महकमा राहत की सांस ले।
काश कि रोज रोज बढ़ते जा रहे पेट्रोल के रेट और निरंतर गिरते रुपए के लिए भी कोई अपील जारी कर दे कि कम से कम पितृपक्ष में तो थम जाओ। वैसे प्रधानमंत्री को तो ये अपील विपक्ष के लिए तुरंत जारी कर देना चाहिए कि कम से कम पितृपक्ष में तो राफाल से हमले मत करो। सारे मंत्री रोज सुबह अपने पितरों को पानी देते हैं और तुरंत पानी पीकर कांग्रेस के आरोपों का जवाब देने भागते हैं। सबसे ज्यादा सोशल मीडिया टीम परेशान है उनको व्हाट्सएप पर एक मैसेज मिला है कि अगर पितृपक्ष में किसी को गालियां लिखो तो वो गालियां सीधे उनके पूर्वजों को लगती हैं, सो बेचारे इस दौरान धार्मिक बातें कर रहे हैं, मसलन भगवान पर भरोसा रखिए सब ठीक होगा, प्रभु अब तो तेरा ही सहारा है आदि आदि। बहरहाल इस रेवोल्यूशनरी आइडिया के लिए बिहार के उपमुख्यमंत्री को शाल श्रीफल से सम्मानित करना चाहिए, लेकिन पितृपक्ष के बाद।

2 comments:

Unknown said...

सॅजीव भाई , व्यबस्था पर सटीक टिपपणी के लिए साधूवाद । वैसे विगत कई दशकों से हालत बद से बद्तर होते जा रहे हैं । कोई भी समस्या किसी भी स्तर पर ले जाइए , किसी के पास समाधान नहीं है । पिछ्ले दिनों कुछ ऐसा ही अनुभव हुआ । पार्षद , महापौर , विधायक , सांसद , मंत्री तक एक सामाजिक समस्या के समाधान हेतु आग्रह किया गया । सभी असहाय थे । कनिष्ठ अभियंता , कार्यकारी अभियंता और फिर निगम आयुक्त सभी व्यवस्था के आगे असहाय थे । तो फिर बचा कौन , जिसने सम्स्या उत्पन्न की अथवा जो समस्या से जूझ रहा हे । समस्याओं क हल किसी के पास नहीं है , सभी व्यवस्था की दुहाई देते नजर आते हैं । नेताओं की चोर - डाकुओं से अपील और आतंवादियों से शांति की अपील , पितृपक्ष , पर्यूषण पर्व या रमजान के बहाने भावनात्मक अपीलें , कोरे लफ्फाजियों के अलावा कुछ नहीं , ना कुछ बदलना हे ना कुछ बदलेगा । 70 साल बाद भी चुनाव पास आते ही राजनीति , जाति , सम्प्रदाय , सबसीडि और आरक्षण के चोराहे पर ही अटकी पडी हैं । ढांचागत व नीतिगत बदलावों की बात ही कौन करता है । चुनाव और नजदीक आने दीजिए और कुछ नये शगूफे सामने आयेंगे । बाकी जनता की व्यस्तत्तता के लिए भजन , बिग बास , किर्केट और बहुत कुछ है ।

sanjeev persai said...

सत्य है...भट्ट साहब