Thursday, August 9, 2018

अभूतपूर्व,अभिनव, क्रांतिकारी...


(संजीव परसाई) प्रशासनिक भवन की लिफ्ट में घुसते हुए मंत्री जी सोच रहे थे कि आखिर ये चुनाव की वैतरणी कैसे पर होगी। इतने काम किये लेकिन लोगों की भिखमंगाई में कुछ खास बदलाव नहीं आया। जब देखो कुछ न कुछ मांगते रहते हैं। रोजगार तो मिला नहीं उल्टे लोग निकम्मे हों गये और सरकार को गालियां देने लगे। न सड़कें बनीं न गड्ढे भरे गए, एन चुनावी सीजन में सड़कों में बने क्यूट से छोटे बड़े गड्ढे मुंह चिढा रहे हैं। लाला कमान अलग दबाव बना रहा है।
चिन्ता में मगन होकर लिफ्ट से सीधे धड़धड़ाते हुए अपने 5 स्टार ऑफिस में समा गए। पीए को निर्देश दिया कि किसी को अंदर न आने दिया जाए, उसने बिना कॉमा फुलस्टॉप विस्मयादि बोधक के जी सर कहकर निर्देश को अंगीकृत कर लिया।
लेकिन समस्या अब भी वही थी, बैचेन जनता, सिर पे सवार लाला कमान, अहसान फरामोश पार्टी कार्यकर्ता, अविश्वसनीय अधिकारी कर्मचारी, और धैर्य विहीन मीडिया से कैसे निपटा जाए। उनका मंथन खत्म ही नहीं हो रहा था। चुनावी साल में उनको अपनी कुर्सी हिलती दिख रही थी। सहारे के नाम पर दूर दूर तक कोई नहीं दिख रहा था। जिन अधिकारियों के इशारे पर वे फाइलों पर दस्तखत किया करते थे, वे अब उनसे कन्नी काटने लगे। चुपचाप निर्देशों का पालन करने वाले अब कायदों और नियमों का हवाला देकर फाइलें अटका रहे थे। कायदों के जाल में फंसे मंत्री अपने आप को हताश पा रहे। भारत के राजनीतिज्ञों को दुनिया में सबसे अनोखा माना जाता है। क्योंकि वे एक तो सफेद झूठ बोलने में माहिर हैं वहीं दूसरी ओर पूरी तरह से कीचड़ में सराबोर होने पर भी सफेद झक्क होने का ढोंग कर सकते हैं। अब जब लत्ते लगे पड़े हों तो बेफिक्र दिखाई देना भी एक चुनोती है। सो मंत्री जी ने घंटी बजाके पीए को बुलाया और उसे किसी अनकहे काम के लिए जोरदार डाँट लगाई। टुकड़ों पर पल रहे चाकर को हड़काने से उनका आत्मविश्वास वापस लौटा। एक गिलास पानी, एक चाय और चार इंच लंबी सिगरेट के साथ वे मैदान में वापसी के तरीके सोचने लगे। अब जैसे ही उनका खुद पर विश्वास स्थापित हुआ, सो फिर घंटी दबा दी। ओएसडी  साहब को बुलाओ, और दरवाजा जी सर की आवाज से बंद हो गया।
हाथ में एक दस पन्ने का राइटिंग पेड दबाए, मुंह से हैं हैं करते ओएसडी ने प्रवेश किया। आते ही रिंगटोन की तरह बजने लगे। सर वो उनको फोन करके सब कुछ समझा दिया है, आदमी निकल चुका है, आता ही होगा। पर सर वो दूसरा वाला थोड़ा मुश्किल कर रहा है, लेकिन मैं उसे मैनेज कर लूंगा। सर आपने बुलाया था, कोई आदेश।
मंत्री जी हाथों की उंगलियों को एक दूसरे में फंसा के बोले - चुनाव सिर पर हैं, क्या उपलब्धियां है, जो इस बावली जनता को दिखानी हैं। सर वो ही है सब आप तो जानते हैं, सड़क बनाई थी सो टूट गयी, पुल पुलिया बनाये थे, वो बर्बाद हो रहे हैं, बिजली कभी आती है कभी जाती है। लोगों की नॉकरियाँ छूट रही हैं, सो नए रोजगार की बात किसी काम की नहीं है। सर, ऐसा करते हैं अब जनता को आईटी दिखा देंगे सर। किसी को कुछ पल्ले ही न पड़ेगा। फिर जैसा आप कहें। आप कहें तो खेती किसानी में विकास के आंकड़े दिख दें । ओएसडी को घूरते हुए मंत्री जी ने कुर्सी पर शरीर को हल्का सा तिरछा किया, सो एक अजीब सी दुर्गंध पूरे कमरे में फैल गई।
हालांकि इस दुर्गंध की ओएसडी को आदत पड़ चुकी थी, पर ये पहले से अधिक भयानक थी, उसे बेहोशी छाने लगी। असहज स्थिति को भांपकर मंत्री ने बात बदल दी। कुछ अनोखा, अभिनव और क्रांतिकारी होना चाहिए, लोगों और मीडिया को अपील करता है।
सर ऐसा करते हैं, कि जो भी भला बुरा किया है, उन सभी कामों में अभूतपूर्व, अविस्मरणीय और ऐतिहासिक शब्द जोड़े देते है। अब कुछ नया तो हो नहीं सकता है, आप भी जानते है। एक यात्रा निकालकर ये बात जनता को बताएंगे, कि को भी हुआ था वो असल में अभूतपूर्व और क्रांतिकारी था। हल्की सी मुस्कान के साथ मंत्री जी फिर तिरछे होने लगे। ओएसडी मौका देखकर निकल गया। अब चुनाव तक हर काम ऐतिहासिक होगा, हर निर्णय क्रांतिकारी, अभूतपूर्व और सरकार अविस्मरणीय होगी।

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