Thursday, May 10, 2018

ये परियाँ भी न ...

(संजीव परसाई) रामसिंग शक्ल और अकल से भले ही बदमाश हो, पर आजकल उसका धंधा ठीक ठाक चल रहा है। जिस दौर में लोगों के धंधे पर ताले लग रहे हैं रामसिंग उन्हीं धंधों में नोट छाप रहा है। उसकी ख्वाहिशें और वो दोनों आसमान में उड़ रही हैं।
जब भी कुछ बड़ा करता या हो जाता तो जताने जरूर आता। उसे लगता है, कि इतने मोटे आसामी की हमारी नजरों में दो कौड़ी की इज्जत है। कल उसी प्रक्रिया के तहत आकर जम गया। बिना पूछे ही बताने लगा, भैया अभी सिंगापुर से लौटा हूँ, वहां से आपके लिए ये सिंगापुरी घंटी लाया हूँ। आपके काम आएगी। अब घंटी देने तक तो ठीक था, उसके काम आएगी वाले तंज को झेलते हुए कहा - पुंगी ले आता।
अगली बार लाकर देने के आस्वासन के साथ बोला - भैया
जे बताओ ये हवाई जहाज में सुंदर सुंदर लड़कियां ही क्यों नॉकरी करती हैं । मैने कहा कभी कभी इंडियन एयर लाइंस से भी सफर करो। गलत फहमी दूर हो जाएगी। कमीना खी-खी करके हंसने लगा। न भैया, असल में इतनी फूल सी कोमल और सुंदर लड़कियां फ्लाइट में चाय पानी बांटती और जूठी प्लेटें समेटती हैं, तो दिल भर आता है। ऐसी परी जैसी सुंदर लड़कियों से तो कोई काम ही नहीं करना चाहिए। पर ये लड़कियां पैसे के चक्कर में करती होंगी, वरना ऐसी क्या बन पड़ी है। मेरा तो मन भी न होता भैया, इनसे अपनी जूठी प्लेटें उठवाने का, मैंने कहा मैडम में ही रख देता हूँ, सो गुस्सा हो गई।
रामसिंग उनके बारे में बात करने को खासा उत्साहित था। उसके चेहरे की चमक बढ़ती जा रही थी। असल में वो ये भांप गया था कि ये परियाँ भी निम्न मध्यम वर्ग से ही आती हैं, वर्ना कोई बड़ा सेठ अपनी औलादों से ये काम करवायेगा क्या। ये इसी वर्ग के बस का है कि इस पेशे पर गर्व करे।
पर भैया, एक बार का हुआ फ्लाइट में एक मैडम आई और अंग्रेजी में गिटर पिटर करने लगी, हम भी सुनते रहे। ओके थैंक्यू करते रहे जब न रहा गया तो कह दिया मैडम इंग्लैंड से हो का, हिंदी न आती। सो शर्मा गई फिर हिंदी में बताया कि हम आपातकालीन द्वार पे बैठे थे, सो जरूरत पड़ने पर मदद करना होगा, हम ने कहा जरूर करेंगे भाई।हम तो बचपन से समाजसेवी हैं, क्यों भैया आप तो देख ही रहे हैं। इस विषय पर उसे हमारे विचार मालूम थे सो उसने जवाब या प्रतिक्रिया का इंतजार किए बिना आगे बढ़ना उचित समझा...पर भैया ये अंग्रेजी ही क्यों बोलती है। ऐसा क्या सरकार ने कोई नियम बनाया है। हमने कहा न रामसिंग, सरकार इन सब पचड़ों में नहीं पड़ती। असल में ये हमारी टुच्ची सोच का प्रतीक है कि अंग्रेजी बोलने वाले को अपने आप श्रेष्ठ मान लिया जाता है और हिंदी वाले को कमजोर। ये जूठी प्लेटें उठाने वाली परियाँ भी उसी सिंड्रोम की शिकार हैं। अब जूठी प्लेट समेटते समय हिंदी में बातें करेंगी तो राम भरोसे होटल के छोटू और उनमें क्या अंतर रह जायेगा। सोचना है तो ये सोचो कि स्वतंत्रता के इतने साल बाद और नारी उत्थान के तमाम प्रपंचों के बाद भी इस पेशे में आने की आवश्यकता सिर्फ  सुंदर और सुडौल लड़कियां ही हैं। सोचना है तो ये सोचो कि सुंदर और सजीधजी लड़कियां एयर लाइंस में सफर करने वालों को आकर्षित करने के लिए क्यों जरूरी हैं। सोचना है तो ये सोचो कि क्या जरूरी है कि एयरलाईंस व्यवसाय करने वाले और सफर करने वाले इन परियों के बारे में क्या सोचते है....
मैं कुछ और बोलता उसके पहले रामसिंग नमस्कार करके निकल लिया। हम भी मोबाइल के स्क्रीन पर हाथ फिराने लगे

1 comment:

प्रतिभा सक्सेना said...

बड़े मज़ेदार ढंग से असली बात कह डाली है!