Thursday, June 7, 2018

ये चाटने वाले....

(संजीव परसाई) पुलिया पर बैठकर बड़े और छोटे, सस्ती आइसक्रीम चाट रहे थे। छोटे ने कहा भाईसाब, आपने तो सबसे पहले चाट के बराबर कर दी, हमारी तो देखो अभी आधी से ज्यादा धरी है। बड़ा कहने लगा – यार वो तो मैंने लिहाज में धीरे धीरे चाटी है वरना मैं तो सेकंडों में चाट लेता हूँ। छोटा कहने लगा वाह भाईसाब ये ही तो आपकी अदा है, जिसपर दुनिया मरती है। अपनी चाटने की कला का गुणगान सुनकर बड़ा फूल कर कुप्पा हो गया। आत्ममुग्ध होकर बोला – अरे, न न... हम भी पहले तुम्हारी तरह हौले हौले ही चाटते थे, पर हमने देखा कि हमारे सामने के लिए चिरकुट तेजी से चाट के आगे निकल गए तब हमने अपनी चाटने की स्पीड बढ़ाई। भैया आपकी तो बलिहारी है, कहकर छोटा, बड़े के लिए पान लेने निकल गया।
बड़ा सोचने लगा – वो भी क्या दिन थे जब हमारे पास भी स्वाभिमान हुआ करता था, तब हम चाटने वालों से नफरत करते थे। और तो और चाटने वालों की मैयत में भी नहीं जाते थे। लेकिन समय ने पल्टा खाया और हम सबसे बड़े चाटू करार दिए गए। स्वाभिमान से चाटू तक की इस यात्रा में जो खोया वो अभिमान था और जो पाया उसकी लिस्ट बहुत लम्बी है। सब कुछ तो मिला घर-बार, गाड़ी, रुपया। इज्जत-विज्जत से होता क्या है।
तभी  छोटा पान लेकर आ गया, उन्होंने पान दबा, ऊपर से रवाल के घिस्से की पुरनी करके गाडी को गियर में डाल दिया और पुलिया से चल पड़े। उन्हें गंभीर देख छोटा बोला – भैया, किस सोच में पड़ गए। कोई पांसा आड़ा-तिरछा पड़ गया क्या? बड़ा खिड़की के बाहर पिचकारी छोड़ते हुए बोला – न रे, हम तो ये सोच रहे हैं, आजकल चाटने के धंधे में भी बड़ा काम्पटिशन हो गया है। अभी पिछले हफ्ते की ही बात ले लो, मैं नेता जी के तलवे चाटने के लिए तैयार खड़ा था, अचानक मुझे पेशाब आ गया। जब मैं लौटा तब तक एक जूनियर नेता चाट चुका था, और उसे नेता जी ने मंडल अध्यक्ष घोषित भी कर दिया। आजकल चाटने की इतनी कलाएं विकसित हो गयी हैं कि रोज अपना तरीका बदलना पड़ता है। ओहदे पर जमकर बैठा हर कोई चटवाने के लिए अपने जूते खोल कर बैठा है। नेताजी, या उनके परिवार में किसी बर्थडे, शादी की सालगिरह ऐसे अवसर हैं जब चाटने के लिए कोई भूमिका नहीं बनाना पड़ती, कहते हुए बड़े ने गाडी अपने घर की ओर मोड़ दी। छोटा कोने में उतर कर ओझल हो लिया।

बड़ा चाय की दूकान पर बैठकर सोचने लगा - वल्लभ भवन में जो भीड़ है, उसमें से बाद एक दो प्रतिशत ही काम के लिए आते हैं, बाकी तो सिर्फ चाटने का ही मनोरथ लेकर चलते हैं। यूँ तो सरकार के पास काम करने के लिए समय नहीं है, पर चाटने-चटवाने के लिए इफरात भरा पड़ा है।  सिद्धहस्त नेता, भली-भांति जानता है, कि किस्में कितनी काबिलियत है। अधिकारी के चेहरे पर ही लिखा होता है कि ये आला दर्जे का चाटुकार है। जिसके चेहरे से साफ़ नहीं होता उसे अपनी काबिलियत सिद्ध करना होती है। कुछ समय समय पर चाटते है, असल में ये आत्मसंतोषी होते हैं, इनका कोटा फिक्स होता है, एक बार कोटा भर जाने पर ये कुछ दिनों के लिए शांत हो जाते हैं और अगले अवसर की प्रतीक्षा करते हैं। लेकिन कुछ का भण्डार कुबेर की तरह, पर बिलकुल उल्टा, उसमें आशाओं के अनंत दीप जलते रहते हैं, उनका कोटा हमेशा खाली रहता है, हमेशा कुछ नए की जुगाड़ में अपना जीवन झोंक देते हैं। आजकल लोग सोशल मीडिया पर चाटने वाले भी रखते हैं, क्षणिक ख़ुशी के प्रसाद के रूप में वो भी उनकी फोटो को लाइक कर देते हैं। चमचे अपने-तलवे के लिए डिजिटल वाल बनाते हैं, दूसरों को चाटने के लिए प्रेरित करते हैं। तलवे के कुत्ते को घुमाते हुए फोटो डालकर लिखते हैं दोनों भाई साथ साथ। उनके लिए परम पूज्य, प्रतापी, विनोदी, गरीबों के मसीहा जैसे उपमान गढ़के चाटुकारिता के आसमान में छेद करने की कोशिश की जाती है। चाटने में कोई कम नहीं है। नेता आश्वासन देकर, पत्रकार लिखकर, ठेकेदार ले-दे कर, अधिकारी मन मुताबिक काम करके, दलाल साष्टांग होकर, आम आदमी जयजयकार करके, चमचा वक्त के हिसाब से रंग बदलकर चाटता है। भाई साब की बुश्शट, भाई साब का कुर्ता, कुर्ते का रंग, कुर्ते का वर्ल्ड क्लास दर्जी, कुर्ते की प्रेस, उनके बाप का उजड्ड स्वभाव, रे-बन का चश्मा, भाई साब का डील-डौल, भाई साहब की पहुँच कितनी चीजें हैं जिनपर चाटू प्रवृत्ति उड़ेली जा सकती है। सड़क का नया ठेका आ रहा है – कोई नई तरकीब भिड़ानी पड़ेगी, इस बार भाई साहब के हाथों में सलमान जैसा ब्रेसलेट तो जरुर डलवा दूंगा, न मानेंगे तो उनके सामने ही धरने पर बैठ जाऊंगा, उनके पैर पकड़ लूँगा, आखिर सलमान खान से कोई कम थोड़े हैं, मेरे भाइसाब।

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