Friday, April 27, 2018

नक्टे की नाक - कटना या नहीं कटना



(संजीव परसाई) हरिवंशराय बच्चन देश के कवि हैं, उनकी रचनाएं गाना गुनगुनाना हर एक का अधिकार है। लेकिन ये हिमाकत एक सेलिब्रिटी कवि ने कर दी तो बड़े बच्चन साहब गुस्सा हो गए। नोटिस थमा दिया, सहमे कवि  ने 32 रू. लौटा दिए और इसरार किया। असल में यह सब सवाल नाक का है, बड़े बच्चन साहब ने ही कहा था कि आधी जिंदगी मुकाम हासिल करने में गुजर जाती है और आधी मुकाम पर बने रहने में... शायद वो खुद ही भूल गए। खुद का तो ठीक है लेकिन रायल्टी के चक्कर में पिताजी की नाक कटवा दी।
हमारे देश में नाक का बड़ा महत्व है। नाक कट जाए या छुपाने की स्थिति बनी तो बहुत भुगतना पड़ता है। यह समस्या दूसरे देषों में नहीं है, वहां तो सबसे बड़े नक्टे की प्रतियोगिता भी होती है। लोग बड़े उत्साह से भाग भी लेते हैं, जीत जाते हैं तो टीवी पर इंटरव्यू भी देते हैं, युनिवर्सिटी में लैक्चर देने भी जाते हैं, नक्टे होने के फायदे-नुकसान पर बेस्ट सेलर किताब भी लिखते हैं। माल बटोरकर नाक कटवाने-जुड़वाने के प्रोजेक्ट में लग जाते हैं। कुछ अंतर्राष्ट्रीय नक्टे होते हैं, वे अपने यहां तो ठीक है दूसरे देशों में जाकर भी नाक कटवाते हैं।
हमारे यहां नक्टे को अपनी नाक छुपाना पड़ता है। लोग पीढ़ियों तक याद रखते हैं। मोहल्ले के एक परिवार से 50 साल पहले एक लड़की भागी थी, लोग आज तक उनकी नाक बढ़ने नहीं दे रहे हैं। ये बात अलग है कि अब देखने का नजरिया बदल गया है। पहले इसे बुराई के रूप में देखते थे लेकिन अब कहते हैं कि - काकी तब भी आधुनिक विचारों वालीं थीं। चोर-चकार, उचक्के, लफंगे, चरित्रहीन, भ्रष्टाचारी, छुटभैये, मवाली अपनी नाक कटवाने हाथ में लिए घूम रहे हैं। निकम्मी औलादों के पिता नाक को छिपाए घूम रहे हैं, कहीं कोई काट न ले। एक बड़े अधिकारी का लड़का उचक्का निकल गया, दारू पीकर सड़कों पर लोट-पोट होने लगा, उन्होंने अपनी नाक को प्लेटिनम स्टील का बनवा लिया सो नहीं कटी। लोगों ने ही ही करके कहा – सर भैया बिलकुल जमीं से जुड़े हुए हैं. कुछ  दिन बाद उनकी बिटिया ने अपनी मर्जी से विवाह कर लिया तो उनकी नाक टुकड़े-टुकड़े हो गई।
नीरव, माल्या, आसाराम जैसों की नाक पहले से ही कटी पड़ी थी सो पूरे चेहरे पर फैल गई. एक घृणित स्थिति निर्मित हो गई, जो थू-थू का कारण बनी। एक गोदी पत्रकार अपने आप को ब्राम्हणों का अगुआ कहते थे. सो सत्ता से डील करली कि इस बार ब्राम्हणों के वोट आपके नाम होंगे. ये अलग बात है कि खुद दो वोट के लायक भी नहीं थे। ब्राम्हणों को ये पता चला तो बिफर गए उन्होंने उनकी मलम्मत कर दी। नेता जी ने कहा यार पंडित तुम्हारी तो नाक कट गई।
एक प्रखर प्रगतिशील अपनी जात का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने को लालायित था, सो लटठ लेकर निकल पड़ा। अध्यक्ष बन गया, अब वो देश की नाक काटकर जाति की नाक बढ़ा रहा है। इस प्रकार उसने अपने साथ प्रगतिशील आंदोलन की भी नाक काट फेंकी। वो एक फार्चुनर खरीदकर उसकी नाक लगाएगा। 
राजनीतिक नक्टों की भी कमी नहीं है, दलबदलु अपनी नाक कटवाते हैं और कहते हैं हमने तो जनता के भले के लिए कटवाई है। वो अपनी नाक कटवाने के लिए बोली भी लगाते हैं। इस प्रकार वे एक नाक कटने के बाद नई नाक का जुगाड़ पहले ही कर लेते हैं। सरकार से कहते हैं कोई बड़ा पद दे दो, कम से कम जनता नक्टा होने का ताना तो नहीं देगी। उनके पास वैसे भी चार छः अलग अलग प्रकार की नाक होती है, एक कट भी जाए तो भी वे चिंता नहीं करते हैं, वो जानते हैं कि जैसे ही कटेगी तुरंत चायना से दूसरी मंगवा लेंगे। पहले वाली से भी और अच्छी।

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