Monday, April 2, 2018

दंगो के अर्थशास्त्री

(संजीव परसाई) रामस्वरूप भागता हुआ आया, जो रामस्वरूप को जानते हैं वो समझते हैं कि वो हमेशा भागता ही रहता है. वो जब पैदा हुआ था तब से भाग रहा है. भाग रहा है, इसका मतलब ये नहीं कि वो कहीं पहुँच गया है, वो आज भी वहीँ है जहाँ से चला था. दरबज्जे से ही चिल्लाया – अरे भैया आज तो गजब हो गया, हम अन्दर से चिल्लाये – वत्स वो तो रोज की ही बात है, तुम फ़िलहाल पानी पिओ, हम अभी व्हाट्सएप पर व्यस्त हैं.
मेरी बात सुनकर वो बिफर गया....तुम जैसे लोगों ने ही देश को बर्बाद कर रखा है बस लगे रहो इसी में, शहर में आग लगी पड़ी है, कुछ पता भी है. हम रन आउट से उसे देखते रहे, उसे तरस आ गया, सो थोडा नरम होकर बोला – भैया, आज तो मरते-मरते बचा. चौराहे से सब्जी लेकर चला आ रहा था, अचानक दस-बीस लौंडे आ गए और दुकानों में तोड़फोड़ करने लगे...आने जाने वाली गाड़ियों को तोड़ने लगे और लोगों को मारने लगे....मैं एक कोने में दुबक गया..पीछे से तीन लौंडों ने आकर मेरी गर्दन पकड़ ली...एक बोला – कौन जात है बे....मैंने जनेऊ दिखाई तो बोला – साला बाम्हन है, भक यहाँ से और भैया मुझे चार गालियों और दो झापड़ का आचमन करके भगा दिया..अभी सुना है वहां दूसरी पार्टी के लोग भी पहुँच गए और दोनों तोड़फोड़ में लगे हैं....बाजार बंद हो गया है.
पानी पीकर बोला – भैया ये क्या हो रहा है, समझ में नहीं आता? अब लाल बुझक्कड़ की बारी थी... अबे इसे दंगा कहते हैं, समझे हो कि नहीं, दं.....गा...जो एक वैज्ञानिक घटना है. उसमें काहे को इतना चिचियाना. अबे इससे विकास होता है.....समझे कि नहीं. डार्विन का सिद्धांत पढ़े हो कि नहीं – “सर्वाइवल ऑफ़ थे फिटेस्ट” वाला...जो शक्तिशाली है, वही बचेगा...और उसका ही तो हक़ है कि वो जिन्दा रहे. तू फिटेस्ट है सो तू जिन्दा है..लड्डू बाँट.
भैया, सुबह-सुबह भांग चढ़ा लिए हो, दंगों में लोगों का नुक्सान हो रहा है, मर रहे हैं और आप उसे भला बता रहे हो.
अबे,  तुम बताओ क्या टूटा, दूकान-गाड़ी न..........तो गाड़ी का तो इंश्योरेंस होता है, दूकान का भी होता है और नहीं होगा तो अगली बार जरुर करवाएगा...इससे इन्सुरेंस का धंधा बढेगा..बता हुआ की नहीं विकास. अब दूकान वाले अपनी दुकानों में हथियार जरुर रखेंगे तलवार, कट्टा बगैरह, सो हथियारों की बिक्री बढेगा, अब ये कट्टा, तलवार क्या अमेरिका से बनकर आता है? ....वो तो यहीं के लोग बनाते हैं, सो उनका रोजगार-व्यापार बढेगा.
असल में ये जो दंगा हैं न, एक तरह का रोजगार मेला है....अब उसने हमें घूर के देखा...
पर हम नहीं रुके – असल में ये जो लौंडे जो तुझे दो हाथ जमा दिए, सो बता इनकी औकात दो कौड़ी की थी कि नहीं, ये अपनी जिन्दगी में क्या उखाड़ेंगे...दंगों में भाग लेंगे तो किसी लाल-नीली-पीली पार्टी की नजर इन पर पड़ जायेगी तो ये कल के नेता होंगे. इनका अगुआ नेता होगा वो बड़ा नेता बनेगा, ये छोटे नेता. इनपर मुकदमे होंगे, अब, मुक़दमे क्या मुफ्त में हो जायेंगे?? अबे, ये मुक़दमे भी तो कोई वकील लडेगा..सो उसे भी काम मिलेगा...ये लौंडे एक बार मुक़दमे में जेल गए तो फिर ये परमानेंट नेता होकर रह जायेंगे. अबे ये सरकार से नौकरी भी नहीं मांगेंगे, क्योंकि सजायाफ्ता लफड़ेबाजों को सरकारी नौकरी तो मिलती नहीं है न. सरकार भी खुश, लौंडे भी खुश सोच देश को नए नेता मिलने वाले हैं और तू दो लप्पड़ खाकर रो रहा है, स्वार्थी कहीं के.
भैया, सुना है गोली खाकर मर गए चार-छः...... अबे तुम अभी भी समझे नहीं...तू बता वहां था कौन गुप्ता का लड़का था क्या...रामस्वरूप बोला नहीं भैया वो तो नौकरी पे होगा. अच्छा अग्रवाल का था क्या – नहीं भैया वो तो दूकान पे होगा. अच्छा दुबे की लड़की थी क्या – कैसी बात कर रहे हो भैया. वो तो पढने लिखने वाली है, वो कहाँ....
अबे, जब सारे पढ़े लिखे वहां नहीं थे तो वहां वो लौंडे थे, जो अपने परिवार पर बोझ हैं, सो उनके मरने पर परिवार को कोई दुःख भी नहीं होगा, हाँ लाख-दो लाख मुआवजा मिलेगा तो खुश जरुर होंगे. हो सकता है उनके माँ-बाप ने ही उन्हें मरने भेजा हो.
अबे, ये जो दंगे होते हैं न, इनसे सरकारें बनती-गिरती हैं, ये वैज्ञानिक तरीके से होते हैं. हर कहीं न तो होते हैं न किये जाते हैं, तू तो बस ये बता – कि दंगे मीडिया के कैमरों के सामने क्यों होते हैं. टायर ही क्यों जलाए जाते हैं, नेता इसकी कड़ी निंदा ही क्यों करते है, दंगाइयों को सजा क्यों नहीं होती, उलटे सरकार इनके केस वापस क्यों ले लेती है, साल दो साल में ये दंगाई पार्षद-विधायक कैसे बन जाते हैं, इनके पास बिना काम किये इतना पैसा कैसे आ जाता है??
बोल – बोल
अब भैया मैं क्या बताऊँ...
अबे तो क्या इसके लिए भी सी.बी.आई. लगाऊं....रो मत तू बस ये सोच, कि देश विकास पथ पे आगे बढ़ रहा है.....चल चोराहे पे चाय पीकर आते हैं, इससे पहले कि नेता पहुंचें, कुछ दंगा टूरिज्म हो जाए.

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