(संजीव परसाई) आला अफसर भरी मीटिंग में अपने मातहतों को गरिया रहे थे. विषय था सरकारी सुविधाओं और संसाधनों का दुरूपयोग. साले तुम बाबू ऑफिस की स्टेशनरी घर ले जाते हो, ऑफिस के प्रिंटर से प्रिंट निकलते हो. और तुम डिप्टीसाब, ऑफिस की चाय इतनी क्यों पीते हो. गुप्ता तुम स्टोर सँभालते हो और ये चपरासी, बाल्टी घर ले गए. मैं कहे देता हूँ ये सब नहीं चलेगा. ऑफिस के कंप्यूटर पर सिर्फ ऑफिस का ही काम होगा. समझ गए....मैं उसे सीधे सस्पेंड कर दूंगा.
घंटी बजा कर चपरासी को बुलाया – अरे तीन बज गया,
दौड़ के देखो बिहारीलाल भैया को लेने स्कूल गया की नहीं...उससे कहना भैया को स्कूल
से लाकर घर पर ही रहे..मैडम को मॉल जाना है.
रामलखन तुम आज शाम को घर आ जाना, सीताराम की खाना
बनाने में मदद कर देना, शाम को कुछ गेस्ट आ रहे हैं. गुप्ता, तुम बंगले पर आज बॉन
फायर का इंतजाम कराओ, याद रखना भूलना नहीं.
....हाँ तो मैं क्या कह रहा था, सब एक साथ बोले –
सस्पेंड कर दूंगा..
हाँ ध्यान रखना...मैं बहुत कड़क अधिकारी हूँ...
सब फिर एक साथ बोले – जी सर....
चलो अब सब अपने काम से लग जाओ, मुझे न तो सरकारी
सामान का दुरूपयोग चाहिए न ही पैसे की बर्बादी...
चलो वो बुढ़िया बाहर दो घंटे से बैठी है उसे भेजो....न
जाने कहाँ से आ जाते हैं, जैसे इनके लिए
ही यहाँ बैठे हैं...
बाहर हाजिरी लगाते हुए लोकतंत्र ने कहा – जी
हुजुर, अभी भेजता हूँ..
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