Thursday, October 26, 2017

सड़कों के गड्ढे और गड्ढों की सरकार

(संजीव परसाई ) गड्ढे अनेक हैं, अनेक का मतलब बहुत सारे। बहुत सारे मतलब हम गिन नहीं सकते उतने। सो हम ने गड्ढों को स्थाई पहचान देने के लिए उनके नाम रख दिए। लोगों ने तो बाकायदा उनके आधार कार्ड तक बनवा लिए हैं, ताकि सनद रहे। वे बहुत खुश थे, हम बात करते कि देखो ये गुप्ता के घर के सामने वाला बिल्लू एक साल में ही कितना बड़ा हो गया। कितना प्यारा है, बिल्लू गड्ढा अपनी तारीफ से फूला नहीं समाता। बारिश का पानी  जब इन प्यारे से छोटे बड़े गड्ढों में समाता तो हम जल बचाओ अभियान का हिस्सा मान लेते, उसके एवज में ये प्यारे गड्ढे बच्चों को अपने पानी में छपाक-छपाक करने देते। हम सब एक दूसरे के साथ बहुत खुश थे।
एक दिन खबर आई कि सरकार ने उन्हें अपनाने से ही इंकार कर दिया. सरकार कहने लगी हमारे यहां तो गड्ढे हैं ही नहीं तो सारे बिफर गए। कुछ बुर्जुग गड्ढों को तो हार्ट अटैक आ गया. फीमेल गडिढयों ने अपनी चूड़ियां तोड़ कर प्रलाप प्रारंभ कर दिया।
आनन फानन में गड्ढा बचाओ महासंघ की उच्च स्तरीय बैठक आयोजित की गई। महासंघ के अध्यक्ष श्री रामू गड्ढा जो एन मंत्रालय के सामने स्थित हैं, ने अपने संघ के हित की जोरदार दलील दी और महासचिव श्यामू गडढ़ा ने गड्ढों के लाभार्थियों की सूची जारी कर दी। जैसे ही सूची  जारी की गई राजनीतिक और प्रशासनिक हल्कों में हाहाकार मच गया। सड़क ठेकेदारों से लेकर टटपुंजिए सप्लायर तक डेमेज कंट्रोल में लग गए। उधर  प्रशासन ने उन गडढों के खिलाफ सख्त कार्यवाही के निर्देश जारी कर दिए। नगर निगम, नगर पालिकाओं, पीडब्ल्यूडी, और केन्द्रीय सरकार के संगठन गड्ढों के खिलाफ सख्त कार्यवाही करने के लिए एकजुट हो गए। व्यापक पैमाने पर गड्ढा संहार की योजना बनाई जाने लगी.
उधर गड्ढा संघ भी अपने खिलाफ की जा रही कार्यवाही से बिफर गया।  साहनी, दास, भाटिया, सभरवाल, गुप्ता, चडढ़ा और चावला गड्ढा के नेतृत्व में वीआईपी इलाकों के गड्ढों सरकार को ज्ञापन दिया. सरकार ने उनको कहा कि तुम लोग इस टंटे से दूर ही रहो तो बेहतर है। वैसे भी तुम तो न संख्या में हो न ही आकार में हो, सो वे मुंह लटकाकर आ गए। दूसरी ओर नील, निरंजन, गडढेष्वर, पाल गड्ढा, शाहरूख, सलमान और हरमीत गड्ढा के साथ होकर शहरों और बाजारों के गड्ढों ने सरकार का मुखर विरोध शुरू कर दिया। सरकार को सबसे अधिक हलाकान समरथ, कालू, युसूफ, आमिर और दशरथ के नेतृत्व में ग्रामीण और कस्बाई इलाकों के गड्ढों ने किया। वे संख्या बल में भी सबसे अधिक जो हैं। सो उनके प्रदर्शन के आगे सरकार की घिग्घी बंध गई।
पूरे प्रदेष में गड्ढा संघ एकजुट होकर प्रदर्शन करने लगा। आज शहर में गड्ढों की हड़ताल है। मुददा है कि यह गड्ढा संहार कितना उचित है, गड्ढे अपना आधार कार्ड लहराकर सरकार को चुनौती दे रहे थे।  कुछ अतिउत्साही गड्ढे तो कहने लगे कि हमने तो वोट भी दिया है, हमारे वोट से तो सरकार तक बनी है। फिर हमारे अस्तित्व को कैसे नकारा जा सकता है। गड्ढों के गडढ़ीय अधिकारों के समर्थन में अधबनी और जीर्ण-शीर्ण पुलियाओं, नालों, पक्का होने की बाट जोह रहे कच्चे रास्तों और हाल ही में पहली बरसात में उधड़ गए रास्तों ने भी अपना समर्थन जारी कर दिया। इसी श्रृंखला में एक सड़क ठेकेदार पर अधिक सीमेंट मिलाने का केस भी दायर कर दिया।
गड्ढों ने अपने चारों ओर रंगोली बना ली और अपने अस्तित्व को  मानने पर सरकार को मजबूर करने लगे। उधर सोशल मीडिया पर गडढ़ा समर्थकों ने मोर्चा संभाल लिया। अबकी बार गड्ढा समर्थक सरकार का नारा बुलंद किया जाने लगा।
छोटे, बड़े, बच्चे, बूढ़े जवान गड्ढे अपने अधिकारों के लिए बिल्डिंगों में आ गए. सरकार के कर्ता-धर्ता अब गड्ढों के क़ानूनी अधिकारों पर विशेषज्ञों से राय मशवरा कर रहे हैं. जल्द ही इस समस्या का हल निकल जाने की उम्मीद है. वैसे राष्ट्रीय गड्ढा पार्टी ने इस मुद्दे को लपक लिया है, सो राजनीतिक तमाशा तो चलेगा ही.

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