Tuesday, October 17, 2017

अथ श्री नरक चौदस कथा !!!

(संजीव परसाई) एक राजा था, वो अपने नागरिकों से तरह तरह के कर वसूल करता था। उसने विकास के नाम पर लोगों का जीना मुहाल कर रखा था। पुल, सड़कें, बाज़ार, आमदनी, बच्चे, कपडे लत्ते, खाना-पीना, चिकित्सा आदि सब कुछ पर कर वसूलता था। 
एक बार वो नगर भ्रमण पर निकला, वो मर्सडीज में बैठा  शहर पर कर थोपने के नए आइडिया सोच रहा था, अचानक उसकी नजर कार के सीसे पर बैठी मक्खी पर पड़ी। वो गुस्से से मक्खी से बोला-मक्खी तेरी ये हिम्मत जो मेरी कार पर बैठे। मैं तुझे सजा ए मौत देता हूँ। और अपने सिपाहियों से बोला- जाओ इस मक्खी को मौत के घाट उतार दो. सिपाही- जी सरकार कहकर, राजा का हुकम बजाने निकल पड़े.
वो दौड़ते भागते रहे,लेकिन बदमाश मक्खी एक मक्खियों के झुण्ड में जाकर मिल गई. अप सिपाही परेशान की किस तरह उस मक्खी को तलाशें.  किसी दूसरी मक्खी को भी नहीं मार सकते.
मंत्री ने राजा को सलाह दी, कि राजन. उस मक्खी को तलाशना असंभव है, लेकिन एक आइडिया मेरे दिमाग में आया है, इजाजत हो तो कहूँ!!!
राजन की हाँ होने पर – मंत्री ने कहा, राजन मैंने पता लगाया है, कि इस मक्खी का पैदा होना प्रजा की जिम्मेदारी है, क्योंकि वो ध्यान नहीं रखती और गंदगी करती है. सो क्यों न उनकर एक टैक्स लगा दिया जाए जो पुरे नगर के नागरिकों से वसूल किया जायेगा.
राजा को आइडिया जमा, उसने अपने सिपाहियों को वापस बुलाया और मंत्री को नगर में नई टैक्सयोजना का ड्राफ्ट करने का आदेश दिया. मंत्री दो- चार कंसल्टेंट के साथ बैठा और एक महीने बाद एक बड़ी योजना लेकर हाजिर हुआ, जिसमें नागरिकों पर 35 तरह के विभिन्न कर थे. राजा हैरत में पड़ गया, उसने कहा – मैंने तो तुम्हें एक कर का बोला था लेकिन तुम तो 35 करों का जुगाड़ कर लाए, तुम्हें  इसका इनाम मिलेगा, कंसल्टेंट का कांट्रेक्ट दो साल के लिए और  बढ़ा दो.
राजा ने प्रस्ताव के अनुसार अपने शहर में एक नगर विभाग बनवाया, जिसका काम सिर्फ कर वसूल करना था, साल भर उसके कर्मचारी शहर में घूम घूमकर लोगों से अड़ीडाल कर कर वसूला करते थे. जो भी कुछ काम करने की कहता वो उसे धमकाते और उसपर दोगुना टैक्स लगा देते.प्रजा को तो इस सब की आदत थी. लेकिन एक बार प्रजा ने आवाज उठाई, कि जब इतने कर लेते हो तो सफाई भी तो करो. प्रजा के इस प्रकार सवाल खड़े करने पर राजा को गुस्सा आया लेकिन थोड़ी लज्जा भी आई, सो उसने मंत्री से कुछ इस प्रकार को जुगाड़ तलाशने को कहा जिसमें यह भी न लगे की हम प्रजा के सामने झुक गए हैं और नगर में सफाई भी हो जाए.  सो  मंत्री फिर कंसल्टेंट के साथ बैठा, और राजा को आइडिया दिया – राजन ऐसा करते हैं कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष  की तिथि चौदस को हमारे शहर में नगर विभाग बना था. सो इस दिन को हमें सेलिब्रेट करना चाहिए. इस दिन को हम शहर में “नगर चौदस” के रूप में मनाएंगे. इस दिन सभी नागरिक मिलकर अपने घरों और शहर की सफाई करेंगे. इसका फायदा यह होगा की हम इस झंझट से बच जायेंगे और दीवाली के दिन पूरा शहर साफ़ हो जाएगा. इसका क्रेडिट हमें मिलेगा और आप अच्छे से दीवाली मना सकेंगे.
राजा ने खुश और गदगदायमान होकर इसके लिए सहमती दे दी और खुश होकर कंसल्टेंट का पेमेंट रिलीज करने पर सहमती दे दी. तभी से नगर चौदस का त्यौहार धीरे धीरे पूरे देश में प्रचलित हो गया. कालान्तर में नागरिकों के गुस्से और कुछ भाषा के धिसाव ने इसको नरक चौदस कर दिया….

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