(संजीव परसाई) देश की चिंता करना इतना आसान नहीं है. हमेशा एक आशंका बनी
रहती है कहीं कोई हमपर कब्ज़ा न कर ले कोई देश पर हमला न कर दे. हफ्ते भर से ये
चिंता और बढ़ी हुई थी. भारत चैम्पियंस ट्राफ़ी के फाइनल में क्या पहुंचा ब्लड प्रेशर
बढ़ने लगा. इलेक्ट्रानिक मीडिया के बाहुबलियों, देवसेनाओं और सोशल मीडिया के कटप्पाओं
ने हलकान कर रखा था. फाइनली हम हार गए और एक पूरी रात और अगला दिन शान्ति से गुजर गया,
तब जाकर संतोष हुआ की कहीं कुछ नहीं होने वाला, हम सुरक्षित है. वरना हालात तो
यहाँ तक हो चले थे कि हम हारे तो नवाज शरीफ मोदी जी से कहेगा कि बंगला खाली करो,
हम रहेंगे अब दिल्ली में या जीत गए तो नवाज शरीफ का बेघर होना तो तय था. लेकिन कुछ
नहीं हुआ अब जाकर चैन की सांस ली.
मैं कल डरा हुआ सा मैच देखने की तैयारी में था. टॉस हुआ ही
था, कि मोहल्ले का रामस्वरूप आ धमका कहने लगा भैया मैच नहीं देख रहे हो क्या...मैंने
इशारे से उसे टीवी की ओर दिखाया जिसपर मैच लगाया था. वो कहने लगा - आवाज खोलो न
भैया – मैंने फुसफुसा कर कहा म्यूट करके ही देखेंगे भैया. भड़क गया, अरे भैया, हम आजाद देश में रह रहे हैं और आप
इतने डरे हुए हो कि मैच भी म्यूट करके देखोगे तो हम कैसे जीतेंगे. मैंने कहा ऐसी
बात नहीं है रामस्वरुप, बात भारत और पाकिस्तान के संबंधों की है. अगर सम्बन्ध सुलझे
होते तो हम इसे मैच मानते. लेकिन दुनिया जानती है कि यह सिर्फ मैच नहीं है ये
महायुद्ध है. महायुद्ध में जोर से बोलना और अपनी रणनीति का खुलासा करने या होने
देने से बचना चाहिए. क्रिकेट हमारे यहाँ धर्म कहा जाता है, और धर्म के लिए लड़ना
धर्मयुद्ध ही होगा. ये वो धर्मयुद्ध है जिसमें लड़ाने वाले और लड़ने वाले मोटी रकम
लेकर युद्ध तय करते हैं. इसे और आसान बनाने के लिए मीडिया भगवानों की रचना करता है.
मजे के बात यह है कि भगवान् भी पैसे लिए बिना न तो मैदान में कूदते हैं न ही आशीर्वाद
देते हैं. भगवान पर बात जाते देखकर रामस्वरूप बिफर गया. कहने लगा आप जैसे लोगों ने
ही देश का विकास नहीं होने दिया. जहाँ देश के सम्मान की बात होती है आप जैसे लोग न
जाने कहाँ से आकर मजा खराब करने में लग जाते हैं. बात बिफरने की हो चली थी सो
मैंने उसके सामने पॉपकार्न का कटोरा सरका दिया और कहा लो चाय भी आ रही है. उसने
मुट्ठी भर पॉपकार्न उठाते हुए टीवी की आवाज खोल दी. पाकिस्तानी योद्धाओं को माँ-बहन
की गालियों और भारतीय योद्धाओं को कोसते हुए रामस्वरूप ने पूरे घर को युद्ध का मैदान
बना दिया. हमें अपने घर में टैंकों, मोर्टार और फाइटर प्लेन की गर्जना सुनाई देने
लगी. हम अपना मुंह बंद किए सहमति देते रहे. उधर विरोधी टीम के रन बनते जा रहे थे, यहाँ
हम रामस्वरूप के सामने से कांच और स्टील के बर्तन उठाते जा रहे थे, चालीस ओवरों तक
आते आते उसके सामने सब प्लास्टिक-प्लास्टिक हो गया था. पचास ओवर होते ही रामस्वरूप
का दिल बैठ गया, कहने लगा भैया इस देश का कुछ नहीं हो सकता, हमारे देश पर कुछ लोगों
की बुरी नजरें लगी हुई हैं. ऐसा करते हुए उसने मुझे घूर कर देखा. उसकी प्रतिक्रिया
से पाकिस्तान के रनों के लिए मैं खुद को जिम्मेदार मानने लगा. फिर सोचा कि अब इसके
जाने का टाइम आ गया है सो चुप रहना ही बेहतर है.
टीवी पर विज्ञापन शुरू हुए तो कहने लगा, भैया ये विज्ञापन क्यों दिखाते हैं, यहाँ रोने को जी कर रहा है और ये लड़की हंस रही है. हमने कहा - हंसने के उस लड़की को लाखों मिले हैं, हंसती लडकी दिखाने के चैनल को करोड़ों मिले हैं. वो फिर बैठ गया बोला – भैया
अभी कुछ नहीं बिगड़ा है हमारे हिन्दुस्तानी शेरों के आगे ये स्कोर कुछ भी नहीं है
कहकर वो फिर जम गया. अब हमें चिंता अपने घर से ज्यादा रामस्वरूप की थी, जिसका ब्लडप्रेशर
हद से बाहर जा रहा था, लेकिन हमारी चिंता निर्मूल साबित हुई, उसे जल्दी ही समझ आ गया बोला भैया चलता हूँ अब, कुछ
नहीं रखा इस सब में, काम धंधा देखूं, मैंने भी सेटमैक्स पर सुर्यवंशम लगा ली.
दूसरी पारी का मैच अभी तीस ओवर का ही हुआ होगा कि ज्ञानियों
के खुले चक्षु मेसेज के रूप में बरसने लगे...क्या लाये थे, क्या ले जाओगे, क्रिकेट
में क्या धरा है, जिन्दगी देखो, खुश रहो, वो तो अपना बेटा है आदि आदि ..उधर इलेक्ट्रोनिक मीडिया भी देश
में किसान आन्दोलन और जीएसटी पर अपनी दूकान खोल ली, अब लाइव स्कोर पट्टी पर चलने
लगा था.
बहरहाल अब सब कुछ शांत है, मीडिया अब नए मुद्दे तलाश रहा
है, सोशल मीडिया पर ज्ञान की बाढ़ आ गयी है, विज्ञापन एजेंसियां नोट गिन कर रहीं
हैं, बीसीसीआई नए सीजन की तैयारी में है, खिलाडी लम्बी छुट्टी के लिए विदेश जा रहे
हैं, बेरोजगार नौकरी तलाश रहा है, किसान पेड़ के नीचे बैठ आसमान की ओर देख रहा है, मजदुर
अपने काम पर चला गया है, बाकी सब म्यूट हैं और आप ये व्यंग्य पढ़ रहे हैं....जय जय
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