Thursday, March 16, 2017

घुइयाँ छीलने का काम...

(संजीव परसाई) हमारा लोकतंत्र कितना समृद्ध है यह इस बात से पता चलता है की हम हर नेता को कम से कम 5 साल का समय देते हैं। सत्ता की मौज लूटने वाले चुनाव हारने के बाद स्वयं को लोकतंत्र की रक्षा में खपाने के बजाए घर बैठकर घुइयाँ छीलना पसंद करते हैं। हालाँकि लोकतंत्र एक सक्षम विपक्ष की अपेक्षा से इनके सिर्फ एक बार जीतने पर आजीवन  उनका बोझा ढोने की गारंटी देता है, पर उन्हें सिर्फ सत्ता का सुर ही सुहाता है। जो विचारधारा सत्ता काल में पींगें भर रही होती है वह चुनाव हारने के बाद बेसहारा हो जाती है.
चुनाव में नकारे जाने पर अपनी विचारधारा को दोषी ठहराकर घुइयाँ छीलने का बहाना बनाते हैं।

एक - वो चुनाव हारता है तो वो अपने घुइयाँ मंदिरों के आगे या अपनी गद्दी पर बैठकर छीलता है. मातृ परिवार सत्ताकाल में उसे अड़चन महसूस होता है, सत्ता न होने पर वह उसके नजदीक दिखाई देने की कोशिश करता है। इस दौरान अपेक्षाकृत नरम स्वर व सौहाद्रपूर्ण रवैये से पेश आता है। भगवान् की बात करता है, गली नुक्कड़ चौराहों धार्मिक आयोजन कराता है. इस दौरान उसे हिन्दू धर्म कुछ अधिक मुश्किल में लगता है। वो अपनी घुइयाँ लेकर अन्य छोटे दलों के दरवाजे पर भी जाता है. अगर उन्होंने इजाजत दे दी तो वे कुछ समय वहीँ बैठकर छीलते हैं. घुइयाँ छीलते वह अपने बंधू बांधवों को भी साथ ले जाते हैं. सब मिलकर घुइयाँ छीलते समय जोर जोर से चिल्लाते हैं, जिससे भय का वातावरण निर्मित होता है।  इससे तंग आकर अन्य राजनीतिक दल इनको अपने साथ घुइयाँ छीलने की इजाजत नहीं देते हैं.

दो- इनका घुइयाँ छीलने का काम बड़ी तेजी से चल रहा है, अगर ऐसा ही रहा तो अगले कुछ सालों में उनके पास इसके अलावा और कोई काम नहीं बचेगा. ये इस दौर में भी लोगों से मालिक की तरह ही व्यवहार करते हैं. उनकी ठसक कभी कम नहीं होती यही इनका अंदाज है. ये अपने काम में इतने प्रवीण हैं की सत्ताकाल में भी घुइयाँ छील सकते हैं. सत्ता जाने के बाद भी इनके ठाठ कम नहीं होते है, वे हमेशा अपने एसी चेंबर में बैठकर ही घुइयाँ छीलना पसंद करते हैं. इस दौरान वे अपनी कथित प्रजा को पर्ची भेजने के आधा घंटा बाद ही छीलन कक्ष में प्रवेश देते हैं. इनका हमेशा प्रयास यह होता है कि अन्य छोटे दल अपनी घुइयाँ लेकर इनके पास बैठकर ही छीलें, इक्का दुक्का दल एसी और चायपानी के लालच में इनके पास गए भी लेकिन बाद में पता चला की उन्होंने इस बहाने अपनी घुइयाँ छीलने के काम में ही लगा दिया, उनकी घुइयाँ तो पड़ी रह गई, सो वे खीझकर भाग निकले. वे प्रायः अपने साथियों से भी खीझे खीझे रहते हैं, उन्हें हमेशा यह लगता रहता है कि सत्ता काल के मजे उनके साथियों ने अधिक लिए हैं, सो वे मौके बे मौके उनसे रूठकर घुइयाँ छीलने का बहाना ढूंढते हैं. 

तीन- सबसे अनूठी दुनिया इन्ही की है, उन्होंने यह मान लिया है की उन्हें अधिकांश समय घुइयाँ ही छीलना है, सो वे अपने खर्चे सीमित रखते है, उन्हें चिंता तो उस समय की होती है जब वे सत्ता में होते हैं. इन्होने घुइयाँ छीलने के लिए मुफीद जगहों की स्थाई जुगाड़ कर रखी है . सामान्यतौर पर वे पार्टी दफ्तर  में ही इस काम को अंजाम देते है, या फिर देर सबेर वे शहरों के मजदूर संघों के दफ्तरों में, विश्वविद्यालयों के केन्टीन या कॉफ़ी हॉउस में घुइयाँ छीलते पाए जाते है. इनको काम में तल्लीनता  के लिए कॉफी के साथ तम्बाखू के धुंए की दरकार होती है, खाने की कोई खास चिंता नहीं. घुइयाँ छीलने के दौर में ये अपने सगे भाइयों की विचारधारा से सहमत हो जाते हैं, बाकी वे दुनिया में हर एक को दुश्मन मानने के लिए बाध्य हैं.

चार- ये सबसे उलट हैं, वे घुइयाँ छीलते जरुर हैं लेकिन किसी को महसूस नहीं होने देते, वे छिपकर घुइयाँ छिलते हैं. सत्ता से बाहर रहने का समय इनके लिए विपत्ति काल होता है,  इस दौरान उनको अपने समर्थकों को संभालना खासा मुश्किल होता है. अतः वे इस दौरान घुइयाँ छीलने के छोटे छोटे ठेके अपने समर्थकों को दे देते हैं, ताकि वे व्यस्त रहें और किसी तरह से विपदा काल कट जाए। इन दलों में आज भी सुप्रीमो परंपरा जारी है। इसके अनुसार सुप्रीमो खुद बीच में बैठकर अपने चारों ओर बचे-खुचे समर्थकों को बिठाकर उनसे घुइयाँ छिलवाता है और वे यहाँ वहाँ भागते हैं। हालाँकि राष्ट्रीय दल इनको घुइयाँ छीलने का काम स्थाई तौर पर आवंटित करना चाहते हैं।

लोकतंत्र में सत्ता के साथ विपक्ष को भी जिम्मेदार भूमिका दी गई है, लेकिन विपक्ष के पहले चार साल घुइयाँ छीलने में और बाकी का एक साल अगले चुनाव की तैयारी में निकल जाता है. इस दौरान उन्हें अपने धंधे ठेके भी सही करने होते हैं। विचारधाराओं के लिए घुइयाँ छीलना एक अनिवार्य परिघटना है, इससे उसे आत्मबल मिलता है. कभी कभी परिपक्वता के अभाव में भी विचारधाराएँ घुइयाँ छीलने को मजबूर होती है। बेंजामिन फ्रेंकलिन ने कहा था की घटिया सरकार और नदी दोनों में हल्की चीजें ऊपर होती हैं. राजनीतिज्ञ अपनी हार के दिनों को अवसर के रूप में लेकर अधिक से अधिक हल्का होने की कोशिश करते हैं, क्योंकि वे जानते हैं की भार उन्हें और नीचे ही ले जायेगा. हर दल अपने इन दिनों की तैयारी हमेशा रखते हैं, जैसे हम साल भर का किराना बारिश के पहले भर लेते हैं, ठीक वैसे ही।

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