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Friday, February 3, 2017

चिंता मिट्टी मिलाने वालों की भी.....

(संजीव परसाई) एक गाली है, माटी मिला, सामान्यतौर पर इसका प्रयोग महिलाएं तब करती हैं, जब वे किसी पुरुष से बुरी तरह गुस्सा जो जाती हैं। इसका भावार्थ भी बताते चलूँ, ताकि सनद रहे। इसका मतलब होता है किसी के मिट्टी में मिलने की कामना करना।
ये याद यूँ आया की हमारे प्रदेश के किसानों ने सोसायटी के माध्यम से सरकार को गेहूँ बेचा, लेकिन ऊपरी स्तर पर पता चला कि उस गेहूँ के बारदानों में वजन बढ़ाने के लिए मिट्टी मिलाई गई थी। विभाग ने जाँच में पाया कि इसके लिए कोई जिम्मेदार नहीं है।
आजकल ये बहुत हो रहा है, एक नसेड़ी ने सड़क पर सोते लोगों पर गाड़ी चढ़ाकर मार डाला, उसी ने अवैध हथियार से संरक्षित काले हिरण को मार-खाया, 2जी-3जी घोटाले करके लोगों ने अपने घर भर लिए, कोयला का भण्डार चार पैसे में खरीदकर डकार गए, काबिल लोगों के हिस्से की नौकरी अधिकारियों और नेताओं ने बेच खाई, सरकार के एक निर्णय ने पूरा देश लाइन में लगा दिया, लोगों ने अपनी खरी कमाई के पैसे पाने के लिए डंडे खाए और सैकड़ा से ऊपर मर गए आदि आदि, सुकून की बात ये है कि ये सभी और किसानों के गेहूँ में मिट्टी मिलाने वाले तक कोई भी जिम्मेदार नहीं है।
असल में देश के तंत्र में मिट्टी मिलाने वालों का एक देश व्यापी संगठन है। जो न सिर्फ एक दूसरे से संसाधन बांटते है बल्कि वे सरकारी तंत्र के दुरूपयोग करने की विधियां भी एक-दूसरे को सिखाते हैं। ये देश का इतना काबिल तंत्र है जो गरीब बच्चों के पोषण आहार, गरीबों की दवाइयां, राशन का अन्न, मजदूरी, नमक, गरीबों की योजनाओं तक में मिट्टी मिला देता है। देश में इसके लिए कोई भी जिम्मेदार नहीं होता, भले ही देश का बच्चा बच्चा जानता हो कि इस सब के लिए कौन जिम्मेदार है।

मैं भी नेताओं की तरह दूरदर्शी हूँ और देश के विकास के लिए सुझाव दे सकता हूँ। मुझे लगता है कि आने वाली पीढ़ी को इसके लिए बाकायदा प्रशिक्षण दिए जाने की आवश्यकता है। क्योंकि बाप के पैसे से खरीदी हर्ले डेविडसन पर फर्राटे भरने वाली पीढ़ी ने तो गांव, किसान, राशन की दुकानें, सरकारी अस्पताल और ऑफिस देखे ही नहीं हैं, जो कमाई के बड़े स्रोत हैं। आखिर ये भोले नौनिहाल अपने बापों का कमाया हुआ कब तक खाएंगे। बेहतर होगा कि सरकार देश के छटे हुए लोगों के बच्चों को मिट्टी मिलाने की कला सिखाने के लिए एक प्रबंधन कोर्स प्रारम्भ करे, ताकि इनका भी जीवन सुखमय रहे। क्योंकि जीडीपी में योगदान तो इनको ही देना है, बाकी तो देश पर बोझ हैं।

2 comments:

anandbaba said...

राष्ट्र की मिट्टी है और मिट्टी मिलाना राष्ट्रियता अतः आप पर देशद्रोह का आरोपण हो सकता है ।

sanjeev persai said...

आजकल सब संभव है....