Wednesday, February 1, 2017

जबर्दस्ती का विकास ...


(संजीव परसाई) नेताजी का नगरागमन लोकतंत्र में एक अनोखी घटना है। ये प्रायः सुविधा, लाभ-हानि या चुनाव की तिथियों पर निर्भर करती है। नेताजी के प्रथम नगरागमन की चहुँ ओर चर्चा थी। नेताजी के उपकृत हुए और उपकृत होने की लालसा पाले लोग दौड़ दौड़ कर तैयारियां कर रहे थे। हरकोई दूसरे से अव्वल आना चाह रहा था। पार्टी कार्यकर्ता नाक भौं सिकोड़े खड़े थे, वे बस अपनी मौजूदगी देकर ही इस स्वागत समारोह को सफल बनाने के पक्षधर थे। चारों तरफ जयकारे के पोस्टर, आदमकद कटआउट, होर्डिंग, बैनर लगे होने से नेताजी के कद का अहसास हो रहा था। इस कद के सामने नगर का आम आदमी खुद को बोना और कमजोर समझ रहा था।

अचानक ही कारों के सायरन बज उठे, जिनसे दुंदभी का सा अहसास हुआ। रास्ते जाम हो गए, निर्दयता से ढोल पीटे जाने लगे, आम आदमी डरकर अपने घर में दुबक गया। चमचे स्वागत स्थल की ओर दौड़े , लोगों से सार्वजनिक अपील की जाने लगी कि वे शीघ्र सभा स्थल पर पहुंचें। नेताजी अपनी पोर्शे गाड़ी में नगर भ्रमण पर थे, उन्हें देखकर भगवान बुद्ध की सिद्धार्थ के रूप में नगर भ्रमण की याद ताजा हो गई। वे गरीबों से उनकी समस्याओं के बारे में पूछते लोग उन्हें अपना हाल बताते, वे चकित होते, अनभिज्ञता दिखाते, नाक पर रुमाल रखते, लोगों को लगता वे दुखी हो रहे हैं।
एक कार्यकर्त्ता ने नेताजी के काफिले को झुग्गी बस्ती की ओर मोड़ दिया। समर्थकों ने अपनी नाक ढंकी, नेताजी ने नाक पर रखा रुमाल जोर से दबा लिया। लोगों ने कहा पानी नहीं आता, सड़क नहीं है, स्कूल नहीं है, अस्पताल नहीं है, राशन नहीं मिलता आदि। नेताजी ने काफिले का रास्ता बदलने वाले को घूर के देखा।

बजबजाती नालियाँ, गंदे चौराहे, जगह जगह कूड़े के ढेर, उनमें खेलते बच्चे, बन्द स्कूल, संवेदनहींन तंत्र देखकर नेताज़ी चिंता में पड़ गए। उनके साले आए और नेताजी के कान में कुछ कहा। उनकी आँखों में चमक आ गई, उन्होंने घोषणा की - अब विकास होकर ही रहेगा। विकास का नाम सुनकर शिकायत करने वालों के चेहरों पर हवाइयां उड़ने लगीं। वे काँपने लगे। जो नेताजी को गंदगी दिखाकर प्रभावित करने वालों की बाँछें खिल गई। लोग नेताजी के सामने साष्टांग हो गए, उनसे विकास न करने की गुहार लगाने और गिड़गिड़ाने लगे। हमें विकास नहीं चाहिए, आप ही रख लो, अपने भाई-भतीजों का कर दो, साले साब का कर दो, किसी रिश्तेदार का कर दो...लेकिन वे टस से मस न हुए। सब समझ रहे थे कि उन्हें जबर्दस्ती बिल्डिंगों, मल्टीप्लेक्स, मॉल, मेट्रो ट्रेन, फ्री वाई-फाई, हाई स्पीड ट्रेन, भरपूर रोजगार, स्वास्थ्य सुविधाएं आदि के सपने दिखाए जाएंगे। क्योंकि नेताजी के लिए यही विकास का खाका है।

आनन -फानन में विकास योजना बनाई गई, जिसमें झुग्गियाँ हटाकर शहर को सुन्दर बनाने, पेड़ और हरियाली हटाकर शॉपिंग मॉल बनाने, खेती की जमीन पर आवासीय प्रोजेक्ट आदि बनाना प्रस्तावित किया गया। प्रोजेक्ट की लागत  निकालने के लिए लोगों पर दोगुना टैक्स थोपा गया। विकास का ठेका नेताजी के परिवारजनों ने लिया। तोड़-फोड़ शुरू हो गई अब अगले आठ-दस सालों तक पूरा शहर अस्तव्यस्त रहेगा, क्योंकि विकास जो हो रहा है।

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