Sunday, September 4, 2016

मेरा प्यार, सड़कें अधबनी और गड्ढेदार


(संजीव परसाई) सालों से पड़ी मेरे शहर की ये अधबनी-गड्ढेदार सड़कों से मुझे प्यार हो गया है. इनके ऊपर से गुजरने पर जो रूमानी अह्सास होता हो उसका कोई मोल नहीं. इनका एक-एक गड्ढा मुझे अपनी अपने कलेजे का टुकड़ा लगने लगा है. बहुत पुरानी बात है जब ये अच्छी हुआ करती थीं, दादा जी बताते थे की कैसे इनके ऊपर से सरपट निकल जाया करते थे. मुझे इसमें झोल ही दिखाई दिया, जबतक सड़कों पर दस-पचास गड्ढों में आप न कूदें, आपकी गाड़ी का अंजर-पंजर ढीला न हो जाए, तब तक सड़क पर चलने का क्या मजा. भला ये क्या हुआ की आप चले और सर्र से एक जगह से दूसरे जगह पहुँच गए. हम भारतीय हैं हम जीव-निर्जीव कोई भी हो उसके प्रति आत्मीयता का ही भाव रखते हैं, फिर यह सड़क क्यों छूटे.
इन अधबनी, टूटी फूटी, गड्ढेदार सड़कें असल में दिल में रोमेंटिक अहसास जगाती हैं. इन सड़कों पर बाइक पर जा रहे लड़कों से पूछिए, ये सड़कें ही हैं जो उन्हें अपने प्रेमिका विहीन होने के अहसास से बचातीं हैं. हमारे मोहल्ले के लड़कों ने तो इन गड्ढों का नामकरण अपनी प्रेमिकाओं के नाम पर कर दिया है. अब वे बड़े सलीके से इनकी रखवाली करते हैं, कि कहीं कोई नगर निगम का कर्मचारी आकर उन्हें भर न दे. मोहल्ले से जब जब नगर निगम की टोलियाँ गुजरती हैं, उनका कलेजा मुंह को आ जाता है कि कहीं किसी दिन ये लोग इन गड्ढों को भर ही न दें. लेकिन नगर निगम ने भावनाओं का ध्यान रखकर इन्हें पांच-छः सालों से यूँ ही छोड़ा हुआ है. इन गड्ढों का जीवन चक्र प्रायः 5 साल का होता है, एन चुनावों के पहले नगर निगम वालों के सर पर खून सवार हो जाता है, और वे इन प्यारे प्यारे गड्ढों को बेदर्दी से पाट देते हैं, इसके बाद नए गड्ढे बनते हैं जो अगले 5 साल विकास के साक्षी बनते हैं.
हमारे समाज में इन सड़कों और इनके गड्ढों के लिए जिम्मेदार लोगों को कोसने की प्रथा है. दो कौड़ी के वोटर कभी कभी इस मुद्दे पर वोट न देने की धमकी देने लगते हैं. शास्त्र इस प्रकार की परिस्थितियां पैदा करने वालों का सार्वजनिक अभिनन्दन करने का मत देते है. ये अधबनी और गड्ढेदार सड़कें हमारे विकास की संभावनाओं को हमेशा बनाये रखतीं हैं. हमें ये अहसास बना रहता है कि आज नहीं तो, कभी न कभी तो विकास होगा ही. विकास को हलुआ-पूरी मानने वालों को एक पीढ़ी को झोंकने के लिए तैयार रहना चाहिए. कुछ दुराग्रही सड़कों में गड्ढे और गड्ढों में सड़क के फार्मूले पर काम करने लग जाते हैं. वे इस बात को नहीं समझते की इन गड्ढेदार सड़कों की वजह से ही न जाने कितनी लक्जरी गाड़ियों में तेल पड़ रहा है, न जाने कितने अधिकारियों के बंगले बने और वे विदेशों की सैर कर आए. अभी भी कई अपनी बारी का इन्तजार कर रहे हैं. इन्हीं की वजह से ठेकेदारों के घर झाड़-फानूस से रोशन हैं और उनकी शामें रंगीन हैं. ये गड्ढे हमारी अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते है. ये अधिकारी, ठेकेदार, व्यापारी, नेता सब हमारे समाज का एक बड़ा वर्ग है, इनका ध्यान रखना भी हमारा ही काम है. इनका ध्यान क्या अमेरिका रखेगा. हमें आलोचना के बीच इन सबका लाभ नहीं भूलना चाहिए.
मैं चाहता हूँ की ये गड्ढेदार सड़कें यूँ ही फलें फूलें, इनके गड्ढे अपने आकार को बढाकर इनमें अधिक से अधिक जलभराव करें ताकि देश में पानी की किल्लत से जूझने के लिए एक समानांतर व्यवस्था बनाई जा सके. इनका भविष्य उज्जवल है इन गड्ढेदार सड़कों पर ओलम्पिक की बाधादौड़ में जाने वाले खिलाडियों की प्रेक्टिस कराई जा सकती है, हो सकता है की हम अगले ओलम्पिक में दो चार पदक जीत लें. इनके माध्यम से हम पर्यावरण की रक्षा भी कर सकते है, जब ये गाड़ियों के चलने के लायक ही नहीं रहेंगी तो हमें शुद्ध हवा मिलेगी. असल में ये सड़कें प्राकृतिक योग चिकित्सा का प्रचार करके हमें संतुलित जीवन जीने के लिए भी प्रेरित करती हैं.
देश में गड्ढेदार सड़कों के संरक्षण के लिए एक आयोग बनाना चाहिए, जो देश की समस्त सड़कों को खड्डेदार बनाने के लिए अपने सुझाव दे. एक जांच समिति गठित करना चाहिए जो यह देखे की शहर के वीआईपी इलाकों की सड़कों में खड्डे क्यों नहीं होते, मुझे तो इसमें किसी विदेश षड्यंत्र की बू आती है, जो हमारे वीआईपीज को खड्डा सुख से वंचित रखना चाहते है. हम सभी खड्डा लवर ये मांग करते हैं कि विधान सभा में एक कानून पास करके गड्ढा हित में कानून बने और एक गड्ढा आयोग का गठन किया जाए.


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