Tuesday, August 11, 2015

पाखंड उन्मूलन व्हाया सत्ता का संतुलन

सत्ता या राजनीति एक चक्की की मानिंद व्यव्हार करता है. जिसमें कुछ या कोई पिसता है तब लोकतंत्र का आटा मिलता है.
लेकिन राजनीति और चक्की में एक समानता भी है. दोनों में अगर आप केंद्र  के नजदीक रहो तो आपके जीवन की सम्भावना अधिक होती है. इस खूबी को कमाल ने भांप लिया था उन्होंने कहा –
चलती चाकी देख के, हंसा कमाल ठठाय
जो खूंटे से लग रहा, कबहूँ न पिसा जाए
सत्ता की धुरी से चिपक कर रहना असल में एक कला है. जो हर किसी को नहीं आती. सत्ता आपको अपने आगोश में आने को पुकारे तो तत्काल चले जाना चाहिए.
सो हुआ कुछ यूँ की मेरे मन में पाखंड के प्रति बितृष्णा का भाव परखकर मुझे पाखंड उन्मूलन विभाग का मंत्री नियुक्त करने का प्रस्ताव आया। आपको यह  विभाग अजीब सा नहीं लगा। भला कोई सरकार ऐसा विभाग बनाती है भला। भले ही कहावत कही गयी हो लेकिन हकीकत में कोई भी अपना पैर कुल्हाड़ी पर नहों मारता है। लेकिन अगर बड़ी अदालत कहे तो मारना पड़ता है। सो पाखंड उन्मूलन विभाग के मंत्री के लिए नाम फाइनल होते ही हम उन पाखंडियों की सूची बनाने लगे जो हमारी नजर में प्रथम दृष्टया थे। बड़े बड़े नाम याद आये, एक बाबा नुमा आदमी याद आया जब एक पत्रकार के तौर पर देखा था तभी मन वितृष्णा से भर गया था. वह अपने भक्तों से अपने पैर धुलवाता था. जिसे उसके पगले भगत पैर पूजा कहते थे. पैर धोने के बाद वो गन्दा पानी सभी उपस्थित लोगों में चरणामृत कहकर बांटा जाता था. वैसे वो आजकल जेल में है पर मैंने उसे सबसे ऊपर रख लिया. इसके बाद तो पाखंडियों की सूची बढती चली गयी. केसरिया, हरा हो या सफ़ेद कोई रंग नहीं बचा.
सुबह सुबह हम कम दूध की चाय के साथ लिस्ट को पूरा करने का प्रयास कर रहे थे, कि अचानक बाहर हलचल हुई। खिड़की से झाँककर देखा तो पाया की हमारे होने वाले विभाग के प्रमुख सचिव आये हैं।
मैंने बिना औपचारिकता के उन्हें दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार किया। वे शायद इसके अभ्यस्थ न होंगे इसीलिए खिसिया से गए। साथ आये मातहत के हाथ से गुलदस्ता लेकर मुझे सौंपते हुए शुभकामनाये और बधाई देने लगे। अब हम खिसिया गए, हमें भी इतने बड़े आदमी से बधाई और शुभकामनायें लेने की आदत नहीं थी।
बैठकर कहने लगे सर, दो दिन बाद शपथ ग्रहण है, आपके लिए ऑफिस तैयार करवाता हूँ। आपकी कुछ विशेष ख्वाहिश हो तो बताइये वो भी लगे हाथ हो जायेगी। मैंने सुन रखा था की बड़े लोग अपनी टेबल के नीचे पैर रखने के लिए एक टिकोना रखते है, सो मैंने हिम्मत करके कह दिया, टिकोना मिल सकता है क्या...
वे मुस्कुराकर बोले – सर हो जायेगा। मैंने कहा चलो ठीक है आप  आ गए. जरा इस लिस्ट को देखिये और सुझाव दीजिये. कुछ और नाम इसमें जोड़ने में मदद कीजिये.  बेमन से लिस्ट हाथ में लेकर वे बोले – सर आप चिंता क्यों करते है, हमारे पास पहले से ही 250 लोगों की एक अधिकृत सूची है. वो हम आपको देंगे.
सर आप जब ऑफिस आयेंगे तब हम आपको विस्तार से बताएँगे. अभी फिलहाल में चलता हूँ. कोई और काम हो तो बताइयेगा. वैसे आपके  सरकारी आवास को तैयार करने का काम तेजी से चल रहा है, आप चाहें तो देख सकते हैं. सर कल से आपकी सेक्युरिटी और गाडी पहुँच जाएगी.  
हम लिस्ट थामे उनके चेहरे को देखते रहे, हमें तो अपनी लिस्ट में एक और पाखंडी जुड़ते दिख रहा था. पत्नी से कहा की कोई तो मदद करता नहीं तुम ही मदद करो पाखंडियों की सूचि बनाने में. छूटते ही कहने लगी तुमने अपना नाम लिखा की नहीं...वो भी तीसरे या चौथे नंबर पर. बच्चे ने भी ही ही करके सहमती जताई. हम अवाक रह गए.
बात सही थी असल में हर कोई पाखंड में जी रहा है. जनता भोली-भाली होने का पाखण्ड कर रही है, नेता समाज सेवक होने का पाखण्ड कर रहे हैं, व्यापारी घाटे में होने का, अधिकारी लोक सेवक होने का पाखण्ड कर रहे हैं, पत्रकार चौथे खम्बे होने का और साहित्यकार आइना होने का पाखण्ड ही तो कर रहे हैं.   

पुरानी लिस्ट अब बड़ी हो चली थी, उसमें तेजी से नाम जुड़ते चले गए. कोई भी न बचा, दिल में असरानी जी रह रह कर ख़याल आए “पूरे घर के बदल डालूँगा”...मीडिया में इस अनोखे मंत्रालय के अनोखे मंत्री का इंटरव्यू लेने की होड़ मच गयी. क्या करते एक प्रेस कांफ्रेंस करके अपने मंसूबे जाहिर कर दिए. पता नहीं क्या हुआ सरकार ने हमारा शपथ ग्रहण टाल दिया. अब सुनने में आया है की उन्हें कोई सुलझा हुआ आदमी इस मंत्रालय के लिए चाहिए जो संतुलन के साथ काम कर सके.

संजीव परसाई 

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