Thursday, April 21, 2011

नेट पत्रकारिता - हकीकत समझना जरूरी है

भारत में इन्टरनेट के प्रारंभिक दौर में इसका उपयोग सर्वाधिक अपनी सेक्स सम्बन्धी जिज्ञासाओं और मनोभावों की तृप्ति के लिए किया गया, समय बदला आज सुनते है कि नेट का दर्शक या उपयोगकर्ता परिपक्व हो रहा है. लेकिन इसके विपरीत देखने में यह आ रहा है कि अभी भी घटिया और मसालेदार, अटपटे सेक्स, जघन्य हत्या, हसीनाओं के चालू रोमांस, सेलिब्रिटी के नखरे आदि ख़बरों को ही सबसे अधिक हिट्स प्राप्त होते हैं, जिसके चलते अधिकांश वेब साइटस अपना कंटेंट और शीर्षक उसी तरह से लगा रही हैं. वहीँ दूसरी ऑर बेमिसाल और ज्ञान वर्धक सामग्री से भरी पड़ी वेबसाईटस पर र्लोग झाँकने भी नहीं आ रहे है, समाचारों में भी प्रायः यह देखा जा रहा है कि प्रमुख ख़बरों के बजाय हलकी ख़बरों और सडक छाप शीर्षक से डाली गयी ख़बरों को अधिक पढ़ा जा रहा है. उदाहरण के लिए जब दुनिया भर में टू जी घोटाले की ख़बरें लिखी और पढ़ी जा रही थीं, मीडिया इन ख़बरों को अधिकांश लोगों तक लाने में जी जान एक कर रहा था, ठीक उसी समय एक मनोविकृत व्यक्ति द्वारा अपनी पत्नी के साथ सेक्स के दौरान की गयी हत्या नेट पर सर्वाधिक पढ़ी गयी ख़बरों में रही.

सबसे अधिक दुर्गति के शिकार हिंदी समाचार की वेबसाइट्स हो रहीं हैं, अंग्रेजी साइट्स से मुकाबले के चलते इन्होने अपने मूल स्वरुप को ही बदल डाला और प्रतियोगिता के चलते अंग्रेजी साइट्स से एक कदम आगे भी निकल गये. परिणाम ये हुआ कि इन्हें दर्शक तो मिले लेकिन वो किसी काम के नहीं निकले. न तो उनसे किसी रेवेन्यू की ही आशा थी न ही किसी गंभीरता की. हिंदी समाचारों पर प्रतिदिन आने वाली टिप्पणियों से अंदाजा लगाया जा सकता ही की यह दर्शक किस कदर अगंभीर है. लेकिन लब्बो लुआब यह है की नेट के उपयोगकर्ता को अभी और समझदार होना बाकी है. ताजा उदाहरण एक वरिष्ठ राजनेता के अवसान की खबर से देखने को मिला, इस खबर पर भी असंवेदनशील टिप्पणियाँ की गयीं, जो दर्शकों की अपने आप में व्याख्या करतीं हैं. आखिर ये दर्शक कौन है जिसके लिए इतने बड़े पैमाने पर बदलाव किये जा रहे हैं, कि समाचार चैनलों को अपने कंटेंट बदलने पड़ रहे है और वेब साइट्स उसकी भूख मिटाने को तत्पर हैं? इसी दौरान इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने चौबीसों घंटे चलने वाले प्रसारण के चलते ख़बरों को मनोरंजन से जोड़ना शुरू कर दिया, धीरे धीरे यह रेखा महीन होती चली गयी आज अंतर करना मुश्किल हो जाता है की यह खबर है या कि विशुद्ध मनोरंजन. इसके बाद इसे एक परंपरा के रूप में ग्रहण कर लिया गया. आज नेट ख़बरों में हिट्स एलिमेंट पर जोर दिया जाना इसी परंपरा का हिस्सा है.

दरअसल इसके मूल में नेट कंटेंट पर कोई कानूनी पकड़ का न होना है, हर वेबसाईट की प्राथमिकता होती है की वो सबसे अधिक दर्शकों के द्वारा देखी जाये. जिसके चलते जाने अनजाने में मीडिया सरोकारों की मूल भावना का उल्लंघन हो जाता है. वैसे इसकी शुरुआत इलेक्र्टानिक मीडिया से मानी जा सकती है जब दूरदर्शन के दौर को भुलाने में लगे टीवी चैनलों ने प्रतिस्पर्धा के चलते भूत, पिशाच, सेक्स, अपराध, जादू आदि को बढ़ा चढ़ा कर दर्शकों के सामने पेश किया और खूब टीआरपी बटोरी. उसी दौर में नेट का प्रादुर्भाव हुआ और जाने अनजाने में वो भी उसी राह पर निकल पड़ा.

अब दुनिया, देश और समाज बदल रहे है, शारीरिक आवश्यकताओं के साथ बौद्धिक आवश्यकताओं के लिए पर्याप्त जगह बन रही है. यह दौर नेट पत्रकारिता में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण साबित होने वाला है, क्योंकि इस दौर में इस माध्यम को एक ऐसा दर्शक वर्ग मिल रहा है जो टेक्नोलोजी को बेहतर समझता है और उसके पास विश्लेषण करने की क्षमता कई गुना अधिक है. आज का युवा जिस गति से चीजों पर अपनी पकड़ बना रहा है शायद वो ही नेट पत्रकारिता को भविष्य में स्थापित करेंगी. इस दिशा में सभी को मिलकर प्रयास करना होगा, इस हेतु एक ऐसी रणनीति बनाई जा सकती है जो न सिर्फ उपयोगकर्ता की जरूरतों को ध्यान में रखे वरन सामग्री पर भी पकड़ बनाये रखे. जो वेबसाइट्स इस तथ्य को समझ चुकी हैं वे स्वयं अपने लिए मानदंड तय कर चुकी है और सम्मान प्राप्त कर रही है. बाकी को भी समझना चाहिए.

संजीव परसाई

1 comment:

संजीव शर्मा/Sanjeev Sharma said...

आप सही कह रहे हैं परसाई जी,अधिकतर लोगों के लिए नेट का वही इस्तेमाल है जो आपने लिखा है...अभी हमें समय लगेगा इसकी विशेषताओं को अपनाने में ....सामयिक विश्लेषण