Tuesday, August 31, 2010

एक पत्रकार, जो आज बड़ा हो गया है.....



जब मैं छोटा था...
विचलित होता था गरीबी पर,
लुटती लाज पर, बुझती आंच पर,
मरते जमीर पर, यकायक बनते अमीर पर,
खोते ईमान पर, और हर बेईमान पर,
जब मैं छोटा था........

थोडा बड़ा हुआ तो लगने लगा

सब कुछ आम सा,
हर रोज आने वाली शाम सा
रोज के उबाऊ काम सा,
जब मैं छोटा था........

अब मैं बड़ा हुआ हूँ,
बदलते वक्त के साथ परिपक्व भी,
प्राथमिकताएं बदलीं, सोच भी
मायने भी, अच्छे बुरे के माप दंड भी
जब मैं छोटा था.....

आज मैं बड़ा हूँ
छोटा फ़्लैट अब बंगला है,
सोचता हूँ विदेश नीति पर
गरीबी पर अब और नहीं,
ये उबाऊ है, और मेरी बीट भी तो नहीं,
और ये काम नए पत्रकारों का है,

जब मैं छोटा था....


संजीव परसाई

1 comment:

Prakash Hindustani said...

Wah Sanjeev Bhai,
bahut hi achchha shabd chitra ukera hai.
Prakash hindustan