Thursday, August 12, 2010

मैं और मेरी आजादी


मैं और मेरी आजादी अक्सर ये बातें करती है कि –

काश मैं और ज्यादा जिम्मेदार होता,

सबका दिल बड़ा, जमीर जिन्दा होता

सब सोचते सभी की न कि सिर्फ अपनी

मुट्ठी भर खुशियों के लिए न कोई सिसकता

और सबको मिल पाता उनका हक

मैं और मेरी आजादी ....


जो जैसा महसूस करता कह पाता

मरते हुओं कि मजबूरियों को भी तो समझ पाता

काश कि भूख किसी को न मारती

हर हाथ को काम तो मिल ही जाता

और हर घर में दोनों वक्त चूल्हा जलता

मैं और मेरी आजादी.......


काश कि आतंकवाद खत्म ही हो जाता

न किसी कि जिंदगी दांव पर होती

हथियारों को छोड़ रोजी-रोटी की सोचते

खेत को एक नए सिरे से जोतते

किसान न मरता बेमौत फिर कभी

और जिंदगी न होती इतनी लाचार

मैं और मेरी आजादी.....


हर बच्चा पढ़ने जा पाता

हर बहन आजाद होती

हर बुरी नजर बेकार ही होती

काश कि महंगाई कम हो जाती

अच्छी तनख्वाह हर रोज सपने में आती

और सिर्फ एक दिन, बस सिर्फ एक दिन हर कोई खुश होता

मैं और मेरी आजादी.......


संजीव परसाई, भोपाल


3 comments:

संजीव शर्मा/Sanjeev Sharma said...

न देश में दहेज़ होता,न भ्रष्टाचार
हर तरफ अमन होता
आम इंसान भी चैन से सोता
मैं और मेरी आज़ादी....

sanjeev persai said...

sharma ji achha joda hai dhanyawaad

sanjay saxena said...

ऐ काश अपने मुल्क में ऐसी फ़ज़ा बने
मंदिर जले तो रंज मुसलमान को भी हो
पामाल होने पाए न मस्जिद की आबरू
ये फ़िक्र मंदिरों के निगेहबान को भी हो"