गडकरी ने लालू और मुलायम को कुत्ता कहा है सबसे अनोखी बात ये है की उन्हें बहुत बुरा भी लगा है और वो बुरा मानकर लखनऊ ,पटना से लेकर दिल्ली तक धरना, प्रदर्शन, बंद और हड़ताल जैसे हथकंडों पर उतर आये हैं . ये अच्छा मौका दिया है गडकरी ने मक्खी मार रहे लगभग खतम नेताओं को अपनी धुल झड़ाने का, वे साफ़ सुथरे होकर उठ खड़े हो गए है इस मौके का राजनीतिक फायदा उठाने के लिए. उनकी इस बेकरारी का खामियाज़ा आम आदमी को भुगतना होगा (अप्रत्यक्ष रूप से वे गडकरी की बात को साबित ही करेंगे) लेकिन उन्हें इससे क्या ?
याद कीजिये ये वही लोग हैं जो लोकसभा और विधान सभा के चुनावों के वक्त अपनी सभ्यता और संस्कृति को रसातल में छोड़ आये थे, चुनावों के दौरान इनकी घटिया सोच का मुजाहिरा पूरी दुनिया ने देखा है और वो भूल गए क्या महिला आरक्षण बिल आदि जैसे कई मौकों पर हमने देखा है की इनके मुंह से क्या क्या नहीं निकला है .
मुझे ये समझ नहीं आया की इन्हें क्या बुरा लगा है कुत्ता कहना या कुत्ते की तरह तलुवे चाटने वाला कहना . दरअसल वो नहीं हम ही कुत्ते हैं और ये हमें स्वीकार है, हम भ्रष्टाचार की ख़बरें सुनकर भी चुप रह जाते हैं, बिहार और उत्तरप्रदेश जैसे दो सामाजिक आर्थिक और बौद्धिक संपदा से भरे राज्य सिर्फ इन दोनों की वजह से ही आज मोहताज हो रहे है लेकिन हम चुप रह तमाशा देखते हैं , समाजवादी का चोला ओढ़ मौका परास्त राजनीति करने में इनका कोई सानी नहीं लेकिन ये फिर भी हमसे वोट ले जाते हैं , मुद्दे और गंभीर बात दरकिनार कर ये हमारी गरीबी और तंगहाली का मजाक बनाते है पर हम सर झुकाते हैं, असीमित भ्रष्टाचार और अपराधियों को पूरा संरक्षण देते हैं पर हम ही भूल जाते है और इनके साथ हो लेते है (तलुवे चाटते हुए)
आपको याद हो इनके एक पैराकोर थे प्रातः स्मरणीय अमर सिंग जी जो कह रहे है उन्हें मालूम है की राजनीती में असली का कुत्ता कौन है, स्वाभाविक है उन्होंने ये वक्तव्य खुद के अलावा के लिए ही दिया होगा. (अमरसिंग एक अलग प्रकार के समाजवादी रहे हैं इन्होने भी राजनीती में कई कुत्ते पाले भी और कई मौकों पर इसका रूप रखा अत्यधिक सफल भी हुए. )
आज समाजवाद किलप रहा है इस अजीब तरह के समाजवाद पर, जो नाकारा है, भ्रष्ट है, अवसर आधारित है, जिसकी कोई परिभाषा नहीं है, जिसमें गरीबों और वंचितों का उपयोग सिर्फ राजनैतिक फायदा लेने के लिए ही किया जाता है. दरअसल राज करने की नीति को राज हथियाने की नीति बनाकर ये सभी नेता कुत्ता संस्कृति को प्रचारित और प्रसारित कर रहे है, तो ठीक है आइये अपनी कुत्ता संस्कृति पर गर्व करें, कुत्तागिरी को सूत्र वाक्य बनायें और लग जाएँ असली कुत्ते की पहचान करने में. वैसे मुझे लगता है दिशाहीन और तर्कहीन वफादारी के चलते सबसे बड़ा कुत्ता आम आदमी है .
क्या इसके लिए एक रिअलिटी शो किया जा सकता है?
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4 comments:
Raajniti mein kuch bhi asambhav nahi!!
भाई हालात वाकई बहुत बुरे है संभालना हमें ही होगा अच्छा व्यंग्य
शिखर
लाल्लू जी को कुत्ता कहा और वे बुरा मान गए -अरे बुरा तो कुत्तों को मानना चाहिए जिन्हें जब चाहे जहाँ चाहे कोई भी किसी भी ऐरे गैरे बे गैरत के साथ मिला देता है।
क्या लिखते हो परसाई जी छा गये देश के तथाकथित कर्णधारों को आईना दिखा गये। आज राजनैतिक गलियारे में कोई ईमान धरम नाम की चीज नहीं बची नहीं तो यह एक दूसरे को संसार के सबसे वफादार जन्तु का संबोधन करके उस वफादारी की बेइज्जती कर रहे हैं। लगे रहो
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