Monday, April 26, 2010

सुख की कीमत

एक मूर्तिकार लगातार कई दिनों से जंगल से गुजरने के दौरान एक पेड़ के नीचे पड़े पत्थर पर अपनी थकान मिटाता था. उसे उस पत्थर से जैसे प्यार हो गया था सो उसने सोचा की क्यों इस पत्थर को एक आकार दे दिया जाए जिसे इसका प्रभाव और सम्मान बढ़ जाए, ऐसा विचार करके उसने अपने छैनी और हथोडी उठाकर पहली चोट जैसे ही पत्थर पर मारी पत्थर चीख उठा, ये क्या कर रहे हो मूर्तिकार हतप्रभ रह गया उसने कहा मैं तुम्हें एक ऐसा आकार देना चाहता हूँ जिससे समाज में तुम्हारा सम्मान बढ़ेगा बस थोडा सा कष्ट होगा लेकिन उसके बाद आराम ही आराम होगा . पत्थर ने सोचा की अब समय आया है इस बाजू वाले छोटे पत्थर को मजा चखाने का, बहुत इतराता है .
पत्थर ने कहा - नहीं , मैं इसके लिए तैयार नहीं हूँ अगर तुम्हें ऐसा ही कुछ करना है तो इस बाजू वाले पत्थर पर करो मुझ पर नहीं
मूर्तिकार ने दोबारा पूछा लेकिन वह टस से मस नहीं हुआ आखिरकार उसने छोटे पत्थर को ही काटकर देवता का स्वरुप दे दिया. अब लोग देवता पर तो फूल आदि चढ़ाकर उसे पूजने लगे और बड़े पत्थर पर नारियल फोड़ने लगे
मोस - हर सुख की कीमत चुकानी पड़ती है.

1 comment:

दिलीप said...

bahut sahi kaha sir...achcha prerak prasang...