Monday, February 16, 2009

समाज सेवा से स्वर्ग तक

किसी ने मुझसे कहा था की समाज सेवा का मतलब है समाज का सेवन करने वाला तो किसी और ने कहा की समाज सेवा का मतलब है समाज को सेवन करने योग्य बनने वाला। दोनों ही अपने जगह सही हैं, समाज सेवक थोडी सी समाजसेवा से दम्भी हो जाता है, उसे लगने लगता है की वह जो कुछ कर या कह रहा है केवल वही सही है। इस दृष्टि से समाजसेवक अल्पग्यों की चरम और परम श्रेणी में शामिल करने योग्य हो जाता है।
आजकल समाज सेवियों के वर्ग बन गए हैं कुछ शहरी क्षेत्रों में काम कर रहे हैं, कुछ महिला अधिकारवादी हो गए हैं, कुछ दलित अधिकार वादी होकर दलितों का बेडा पार लगाने को आतुर हैं, आदि आदि। ये सभी मान बैठे हैं की उनके वर्ग के वे अकेले ही पैराकोर हैं। इसी आस में उन्होंने अपने जिला, प्रदेश, देश और विश्व स्तर के संगठन बना रखे हैं, वे चाहते हैं की समाजसेवा में भी आरक्षण हो जाए, समाजसेवक का मूल्यांकन कोई भी न करे। अगर करना भी है तो ध्यान रखे उस मूल्यांकन का आधार उनके काम न होकर उनके संगठन का स्तर हो।
आज समाजसेवा पीछे है समाजसेवक आगे। हमेशा इसी ताक़ में की कहाँ से कौन से समाजसेवा का काम लपक लिया जाए। इसके लिए बाकायदा एक गिरोह के रूप में काम कर सफलता सुनिश्चित की जाती है। कोई नेता, बड़ा अफसर, नामी समाजसेवी, कई एक जुगाडू, और कुछ एक वे लोग और तत्त्व जो इन सबको बांधे रख सकें जैसे पैसा, शराब, आराम, सम्बन्ध, आदि आदि इत्यादि। अपने दलों की बैठक में चीत्कार की जाती है की देखो महिलाओं का जीना दूभर हो रहा है, दलितों का अस्तित्व ख़तम करने की चाले चली जा रही है, शहरों में निरंतर अराजकता फैलती जा रही है और तो और सरकार नाम की तो कोई चीज ही नही बची है। हम ये सब नही होने देंगे सरकार भ्रष्ट है, सरकार निकम्मी है, सरकार इस लायक नही है की वो बनी रहे, सारा तंत्र गरीबों मजलूमों का शोषण करने में लगा है, इनकी बातें सुनकर लगता है की सारे दुनिया का दर्द इन्हीं के दिल में उतर आया है, शायद इसी तरह का आलाप सुनकर फ्रायेद ने आदिपस कोम्प्लेक्स थ्योरी की रचना की होगी।
अंत में वाही ढाक के तीन पात। सबसे महत्त्वपूर्ण बात तो बताना ही भूल गया वो ये अगले हफ्ते शहर की फाइव स्टार होटल में डिनर विथ कोकटेल है, इस पर चर्चा की जायेगी की गरीबों की गरीबी कैसे दूर की जाए और इसके लिए सरकार से अनुदान कैसे लिया जाए। सभी चिन्तक और समाज सेवक आमंत्रित हैं

No comments: