Tuesday, January 20, 2009

मैं और ब्लॉगर


मैं - ब्लॉगर की समस्या है की वो प्रतिभा का अधिकाधिक प्रदर्शन करने लगा है। वह बुद्धिहीन की तरह व्यवहार करने लगा है। प्रतिभाविहीनता ने उसे अत्यधिक विस्तार दिया है जो घातक है। ब्लॉगर तुम ये तो समझ ही नही पा रहे हो की तुम्हारा औचित्य क्या है, कभी ब्लॉग की आड़ लेकर कूड़ा कचरा उलट जाते हो, कभी मनोवैज्ञानिक होने का नाटक करके नंगे खड़े हो जाते हो, कभी ज्यादा जागरूकता दिखाने की खुजली चलती है तो पत्रकारिता पर आमादा हो जाते हो, आख़िर ये सब क्या है।
यार तुम निठल्ली मानसिकता से उबार ही नही पा रहे हो, सड़क छाप से सड़क छाप भाषा को अपना अपनाते हो, अश्लीलता और छिछोरेपन से भरपूर रचनाएं रचते हो , अपने ब्लॉग में ऐसे आदमी की चिरौरी करते हो जिसे ठीक से जानना तो दूर देखा भी नही है, मार्क्स फ्रायेड के नामपर छूट लेकर पत्रकार कम साहित्यकार बन का प्रयास करते हो
लिखते रहे रहो ऐसे ही, स्वांतः सुखाय के लिए, गाते रहो ऐसे ही गाथाएं, भटको ऐसे ही निर्लक्ष्य, ब्लॉगर की ओट में सब ढांकते चलो, पाखंडी.

ब्लॉगर - चिंता मत करो बौखला गया है।
संजीव परसाई

1 comment:

सुशील दीक्षित said...

आप ने सही कहा है । कुछ ब्लॉगर वाकई चौराहे पर खड़े पागल की तरह दिखाई देते है, उनको ख़ुद नही पता वह क्या कर रहे हैं । खैर ख़ुद समझ में आ जायेगा ऐसे लोगों को ।
सुशील दीक्षित