Thursday, July 31, 2008

पढ़ाई और बरसात
जब भी मेरे मन में पढ़ाई के विचार आते थे
जाने क्यों आकाश में काले बादल छा जाते थे

मेरे थोड़ा-सा पढ़ते ही गगन मगन हो जाता था
पंख फैला नाचते मयूर मैं थककर सो जाता था

पाठयपुस्तक की पंक्तियाँ लोरियाँ मुझे सुनाती थीं
छनन छनन छन छन बारिश की बूँदें आती थीं

टर्र टर्र टर्राते मेंढक ताल तलैया भर जाते थे
रात-रात भर जाग-जाग हम चिठ्ठे खूब बनाते थे

बरखा रानी के आते ही पुष्प सभी खिल जाते थे
कैसे भी नंबर आ जाएँ हरदम जुगत लगाते थे

पूज्यनीय गुरुदेव हमारे जब परिणाम सुनाते थे
आँसुओं की धार से पलकों के बाँध टूट जाते थे

पास होने की आस में हम पुस्तक पुन: उठाते थे
फिर गगन मगन हो जाता फिर नाचने लगते मयूर
फिर से बादल छा जाते थे , नीरज त्रिपाठी