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Friday, July 25, 2025

सामूहिकता और सशक्तिकरण के सच

अभी पिछले दिनों एक जनप्रतिनिधि से मुलाकात हुई, वे अब तक कई नेताओं और अधिकारियों के चक्कर लगा चुके थे। उनके क्षेत्र में कुछ विकास कार्य लंबित थे, जो पैसों की कमी से पूरे नहीं हो रहे थे। उनके पास कामों की जो सूची थी, उनमें अधिकांश काम ऐसे थे, जो सामूहिक भागीदारी से संभव थे। लेकिन उनका तर्क था, अब वो दौर नहीं जब लोग आगे आकर इन कामों में सहयोग करते थे। ये बहुत हद तक सही है, लेकिन इसका जिम्मेदार कौन? 
तेजी से भागते भागते हम समाज के रूप कमजोर हो रहे हैं। ये आरोप नहीं चिंता है, और यह अकारण भी नहीं। इस आत्मकेंद्रित समाज में अब कितने लोग है, जो सामाजिक सरोकार और लोगों के हित की बात कर रहे हैं? इसके मूल में वे योजनाकार हैं, जो विकास योजनाओं में समाज की भूमिका को या तो नगण्य मानते हैं या उनको इसपर भरोसा ही नहीं। हम अपने समाज को प्रतिपल दुत्कार रहे हैं और अब यह एक सर्वसम्मत परंपरा बन रही है। पर्यावरण, प्रदूषण, कानूनों का उल्लंघन, भ्रष्टाचार, अपराध, उच्छृंखलता जो हो इसके लिए हम छूटते ही समाज को जिम्मेदार ठहरा देते हैं।
दूसरे सामूहिकता के साथ सशक्तिकरण जुड़ा हुआ है। लेकिन सशक्तिकरण से आँखें चुराने वाले भी कम नहीं हैं। ऐसे समूह चाहिए जो पेड़ लगा दें, बाग की सफाई कर दें, जनजागरुकता में जुट जाएं। लेकिन अगर वे अधिकारों, सामाजिक मुद्दों की बात करेंगे तो सिस्टम असहज हो जाएगा।
हमारे यहां कुएं खोदने, तालाब बनाने, बाग, जंगल रोपने, पहाड़ हटाने, सफाई, आपदा, संकट सब में समुदाय की भागीदारी के हजारों उदाहरण हैं। लेकिन इनके बाद भी हमारा भरोसा कैसे कम हो रहा है। स्वसहायता के मॉडल को सफल नहीं मानने वालों की बड़ी संख्या हो सकती है, लेकिन एक बहुत बड़ी आबादी सफलता की गाथाओं से भरी है। ऐसे नेता भी हैं जिनके आह्वान पर लोग घर से बाहर न झाकें, लेकिन वो नेता हैं।
समाज के आगे आने की शुरुआत नेतृत्व से होती रही है। निरर्थक जल्दबाजी के दौर में जमीनी नेतृत्व का मूल्य, भरोसा और रसूख घट गया। अब इसका खामियाजा समूचे समाज को इस रूप में देखना है कि जो काम समाज के सहारे संभव हो सकते हैं, वे भी किसी की कृपादृष्टि की आस में सालों पड़े होते हैं। अब कोई मसीहा चमत्कारी, और भरोसेमंद छबि के साथ आए और इस भ्रम को तोड़े।
एक बार फिर समाज को खंगालने की जरूरत है, लाखों लोग हैं जो कुछ सकारात्मक करना चाहते हैं। उनको आगे लाकर भरोसा दिलाने वाला चाहिए। फिर चाहे वो कोई हो..

जय जय..
संजीव परसाई

#Sanjeev Persai 

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