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Saturday, June 8, 2019

चिड़ियों का आना-जाना

(संजीव परसाई) बात कुछ ऐसी है कि जब देश में राजनीति और मौसम दोनों की गर्मी चरम पर है, हम अपने घरों के बाहर सकोरों में चिड़ियों के लिए पानी और दाना रख रहे थे, तभी बहशियों ने एक और फूल मसल दिया। हालांकि ऐसा नहीं कि ये पहली बार हुआ है, ऐसा पहले से होता आया है। इसके बाद आता है कुछ और दिन का उबाल, फिर सब कुछ सरकारों और कोर्ट के निर्णय पर छोड़कर अपने मौज मजे में लगे... हम लोग।
वो निर्भया के कातिलों का क्या हुआ, वो कठुआ के आरोपियों का क्या हुआ, यहां वहां देशभर के दरिंदों का क्या हुआ, अब अलीगढ़ के शैतानों का क्या होगा। असल में ये सरकारों की नाकामी है, जो सीधा संदेश देने में असफल हैं। ऐसा नहीं कि उन्हें सीधा संदेश देना आता नहीं है, दरअसल वे देना ही नहीं चाहते हैं, अब तक के अनुभव बताते हैं कि वे अधिक सख्त होने से बचते हैं। अपने काम को न्यायपालिका के सिर पर डाल कर निश्चिंत होना इनके व्यवहार में शामिल हो गया है। जिस सख्ती, शिद्दत के साथ राजनीतिक संदेश दिए और क्रियान्वित किए जाते हैं, इस तरह के मामलों में वो सख्ती कहाँ हवा हो जाती है।
सोशल मीडिया पर आंखें तरेर रहे युवा और एक्टिविस्ट जरा सोचें कि क्या वे कभी उस अभियान में शामिल हुए है जिसमें महिलाओं के सशक्तिकरण की चर्चा होती हो, उनके अधिकारों की बात होती हो या उनकी निर्णायक भूमिका की बात होती हो। ये कैसा आक्रोश है जो बाहर निकलने के लिए अवसर की मांग करता है।
अब एक नई चर्चा हो रही है, वो जो कठुआ का मामला मुस्लिम बालिका के साथ था, तब एक वर्ग ने अधिक सवाल उठाए थे, आज जिस बालिका की बात हो रही है वो हिन्दू है इसीलिए कम सवाल हो रहे हैं। ये किस मानसिकता के लोग हैं कहने की जरूरत नहीं है, लेकिन अपनी बेटियों को पहले इसी सोच के लोगों से बचाइए। जो हत्या, दुष्कर्म और बलात्कार को धार्मिक नजरिये से तौलते देखते हैं। ऐसे लोग दोनों ओर हैं। जो अपराध पर तालियाँ बजाते हैं, क्योंकि पीड़ित किसी दूसरे धर्म का है। राजनीतिक दलों से कुछ खास उम्मीद मत कीजिये, नपुंसकता के चरम पर पहुंच चुकी जो राजनीतिक व्यवस्था अपने बीच से हत्यारों और बलात्कारियों को नहीं हटा सकी है, वो बच्चियों पर होते हमलों के लिए कितनी संवेदनशील होगी सोचा ही जा सकता है। सोशल मीडिया की जानकारी के आधार पर अपनी राय बनाने वाले ये जान लें कि ये भुगतान आधारित व्यवस्था है, जिसमें जिम्मेदारी शून्य है। सबसे बड़े न्यूज चैनल का दावा करने वाले एंकर खुद गलत जानकारियां ट्वीट करके लोगों को ठगने पर आमादा हैं।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की भूमिका वैसे भी संदेहास्पद हो चुकी है, भरोसा खो चुका टीवी मीडिया अब सिवाय उछलकूद के और कुछ गंभीरता नहीं परोस रहा है। साफ है कि वो जनता के एजेंडे से हटकर किसी और एजेंडे पर शिफ्ट हो चुका है। ये सरकारों की नाकामी को ढंकने के लिए फालतू मुद्दों का टाट डालने का काम जिम्मेदारी से करते हैं।
अब समय आ गया है कि अपने मासूमों की रक्षा की जिम्मेदारी खुद ही लें। हर व्यक्ति पर नजर रखें, खासकर वंचित तबके के माता-पिता को खासा जिम्मेदार बनाने की जरूरत है। आदतन अपराधियों पर पुलिसिया नजर रखे जाने की जरूरत है, साथ ही एक नागरिक के रूप में भी उनकी संदिग्ध गतिविधियों की सूचना पुलिस को देना भी जरूरी है। बहरहाल जरूरत जागरूक होने और निरंतर नजर रखने की है। अपने और आसपास के सारे बच्चों पर नजर रखिए, हो सकता है कोई गुड़िया आपके सतर्क रहने से ही बच जाए।

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