(संजीव परसाई) प्रेम से
बोलिए मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की जय, मंदिर के पुजारी द्वारा के शब्द आज भी कानों में गूंजते हैं। इन शब्दों के सहारे श्रीराम
हमारे कानों और फिर दिल में उतर कर स्थाई निवासी हो गए। दिन बदले, समय बदल गया, सो राजनीति और देश भी बदल गया। इसी धारा में आठ जन्म सुधारने
वाले राम भरमाने, भटकाने, सत्ता पाने से लेकर लोगों को चिढ़ाने का माध्यम कब बन गए, पता ही नहीं चला। वाकई देश बदल रहा है, अब प्रेम से
और शांत मन से मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की जय बोलने के बजाए आंखों में
खून उतारकर, भवें तानकर, एक हाथ में तलवार लेकर, माथे पर लाल पट्टी बांधकर फुल वाल्यूम में
जय जय श्री राम का जयघोष करने का समय आ गया है, बच्चों को भी अब यही देखना दिखाना है।
एक ठाकुर साहब थे, ये वैसे तो साइकल का धंधा करते थे। पर उनकी
पसंद में कद्दू शामिल था, ये बात पूरे मोहल्ले को पता थी। मोहल्ले के छिछोरों
ने एक-दो बार उनको उसके लिए ताना दिया, सो वे चिढ़ गए, स्वाभाविक था
उनकी मर्जी है कि वो क्या खाते हैं। लेकिन इस तरह छिछोरों को एक काम मिल गया, और वे यहां वहां उनको कद्दू कहकर चिढ़ाने
लगे। ठाकुर साहब चिढ़ते लेकिन धीरे धीरे ये व्याधि मोहल्ले में फैलते गई, और कालांतर में कद्दू खाने वालों को ठाकुर साहब, कद्दू को ठाकुर फल और उसके बाद कद्दू खाना मजाक और शर्म का विषय माना जाने लगा। ये एक
काल्पनिक चित्रण है लेकिन इसका क्रम और प्रतिफल बिल्कुल उचित है। एक प्रदेश की मुख्यमंत्री को जय श्री राम का नारा लगा कर चिढ़ाया गया, सोशल मीडिया
और समाचार चैनलों ने इसे खूब बघार लगाकर परोसा । इस राजनीतिक शातिराना कार्यवाही को ये कहकर समर्थन किया गया कि वे राम का नाम सुनकर नाराज हुई। अब संसद में मुस्लिम सांसद को जय जय श्री राम चिल्लाकर चिढाया जा रहा है। हालांकि चिढाने वाले और चिढने वालो दोनों का
रिकार्ड कोई खास नहीं है, पर हमारे राम तो टेंशन में हैं । हर भक्त कि पुकार पर भागकर आने वाले राम इन नारों से कन्फ्यूज तो जरुर हो रहे
होंगे कि जो बंदा बांग लगा रहा है वो वाकई कष्ट में है या वैसे ही किसी के मजे ले
रहा है । चैनलों पर रामनाम का धंधा अब दोगुना
हो चला है । पहले सिर्फ बाबा पेड पैकेज लेकर धर्म बेचते थे, अब पत्रकार भी इस लाइन में लग
गए हैं वो भी बाबाओं से एक कदम ज्यादा । बाबा राम कथा का धंधा करते हैं और पत्रकार
राम कि ख़बरों का । कोई चैनल खबर के नाम पर राम के पैरों के निशान खोज रहा है, तो कोई श्रीलंका
में जाकर राम-रावण युद्ध के निशान । मीडिया राम को मर्यादा पुरुषोत्तम के बजाए उग्र और शक्तिशाली भारत के प्रतीक के रुप में स्थापित करने को आमादा है, यूँ भी हमें बरास्ते शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, गरीबी हमें
शक्तिशाली देश होने में सदियों लग जाएँगी, सो तत्काल धाक ज़माने के लिए ये आसान
रास्ता है। वो दिन जल्द आएगा जब घरों में सहज, सौम्य, सरल राम दरबार के बजाय
आग के बैकग्राउण्ड से निकलते, हाथ में खड़ग, और तीर कमान, दमकते चेहरे पर आक्रामकता, और बलिष्ठ भुजाओं वाले राम के चित्र लगाए जाएंगे। बहरहाल अब जमाना 'राम जी भली करेंगे' से राम जी दो
लट्ठ देंगे और 'मर्यादा पुरुषोत्तम' राम जी को दृढ़ दबंग बनाकर दिखाने का है।
राम आदिकाल से जग का सहारा बनते आये हैं, लेकिन सहारा लेने वाले रामभक्त उनका सुविधानुसार उपयोग करने लगे हैं । रामभक्त, अपने असली राम मर्यादा पुरुषोत्तम को तलाश रहे हैं, दूसरी और राम भी असली रामभक्त को तलाश रहे हैं । बाकी जो है सो तो है ही।
राम आदिकाल से जग का सहारा बनते आये हैं, लेकिन सहारा लेने वाले रामभक्त उनका सुविधानुसार उपयोग करने लगे हैं । रामभक्त, अपने असली राम मर्यादा पुरुषोत्तम को तलाश रहे हैं, दूसरी और राम भी असली रामभक्त को तलाश रहे हैं । बाकी जो है सो तो है ही।
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