Sunday, June 2, 2019

चुनावी हलुआ....

(संजीव परसाई)
व्यंग्यों का चुनाव और चुनाव के व्यंग्य पढ़िए और मुस्कुराइए....
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2019 के चुनावों में बम्पर जीत इस बात का प्रमाण है कि हर बड़ा काम पढ़े लिखों की सहमति और सहयोग से ही हो ये जरूरी नहीं है।

मोदी जी की जीत पर भक्तों ने लड्डू बांटे, हमने भी खाए। भगत पूछने लगे अब तो बता दो भैया किसके साथ हो, हो हमने कहा हम लड्डू के साथ हैं। लड्डू और पकौड़े के आपसी सहसंबंध के आधार पर हम प्रधानमंत्री के साथ हैं।

पुलवामा हमले से भले ही ये पता न चला हो कि सुरक्षा में चूक का जिम्मेदार कौन था, पर चुनाव खत्म होते ही ये जरूर पता चला कि हबड़ दबड़ में हमारी वायुसेना ने अपने ही एक चॉपर को मार गिराया था।

चुनाव के दौरान सत्ता पक्ष से रोजगार और जीडीपी पर पूछो तो हत्थे से उखड़ जाते थे। चुनाव के बाद अब खुद कह रहे हैं कि बड्डे अर्थव्यवस्था और रोजगार के काम लगे पड़े हैं। गनीमत है कि इसके लिए ये पिछली सरकार को दोषी नहीं ठहरा रहे।

चुनाव में देश की सुरक्षा के लिए वोट मांगा गया, और पब्लिक ने भर भर के वोट दिया। समझ में नहीं आता न तो पाकिस्तान ने कभी हमें हराया, न उसकी औकात है पर हमें पाकिस्तान से डर क्यों लगता है। बहरहाल पाकिस्तानी शेखी बघार रहे हैं कि देखो भारत में अपना कितना टैरर है।

राहुल को मुट्ठी भर सीट लाने पर भी कांग्रेस उन्हें ही अध्यक्ष रखना चाहती है। ये ऐसा है जैसे माखन की मटकी फोड़ने पर भी कान्हा को मां दुलार ही देती है।

लोग उस सर्जीकल स्ट्राइक पर खुश हैं, जिसकी सिर्फ कहानी ही सुनाई जा सकती है। लोगों ने वोट भी दे दिए जैसे कि पब्जी में जीतने वाले बच्चे को मम्मी ने खुश होकर पिज़्ज़ा बुला दिया हो।

पाजी के परिवार का पीने, पिलाने से गहरा नाता है। पाजी खुद कुत्तों का खून पीते थे, अम्मा पीने कब पानी की मशीन बेचती हैं और अम्मा के बराबर के सन्नी हैण्डपम्प उखाड़ते हैं। ये भी माँ-बेटे का बिजिनेस मॉडल है जिसमें बेटा हैण्डपम्प उखाड़ता और अम्मा पानी की मशीन बेचने पहुंच जाती है।

2019 की असली लड़ाई तो मोदी और ममता के बीच थी। एक अपनी सत्ता बचाने के लिए लड़ रही थी दूसरा अपनी सत्ता काबिज करने के लिए। मजे की बात तो ये है कि दोनों के आगे-पीछे कोई नहीं है।

चुनाव परिणामों के एक दिन पहले मायावती जिद करने लगीं कि मुझे प्रधानमंत्री बनना है। अब अखिलेश के साथ गर्मी की छुट्टी में प्रधानमंत्री प्रधानमंत्री खेल रहीं हैं। इस खेल में अखिलेश सीढ़ी से नीचे जाते हैं और मायावती सांप काटने से ऊपर।

मोदी के खिलाफ राहुल के अलावा अगर कोई सक्रिय था तो वो चंद्रबाबू और केजरीवाल थे। इन दोनों के सिर्फ एक एक सांसद जीते हैं। इनका तो खर्चा भी नहीं निकला। इसीलिए जहाज में कहा जाता है, दूसरों की मदद करने के पहले अपना सुरक्षा मास्क जरूर पहन लें।

मायावती सोच रहीं है कि अब प्रधानमंत्री बनने का सपना तो तभी पूरा होगा जब कोई छोटा मोटा देश उनको, पार्टी और अखिलेश सहित गोद ले ले।

राजनीति के खेल में अखिलेश और माया में हुआ समझौता सुनके आप पेट पकड़कर हंसोगे । इस समझौते के अनुसार मायावती पीएम बनेंगी और अखिलेश सीएम। अब मायावती अखिलेश से कह रहीं हैं कि बैट मेरा, बॉल भी मेरी, अब मैं सीएम बनूँगी। तुम 2030 में पीएम बनना।

अरनव, अंजना, सुधीर जैसे तोते अब एक जैसा काम करते हुए उकता गए हैं । अब वो प्रोपर्टी, और स्टॉक मार्केट में इनवेस्ट करके, पत्रकारिता से पीछा छुड़ाकर समाज की सेवा सकते हैं।

कांग्रेसियों द्वारा राहुल को प्रधानमंत्री बनाने की मुहिम इस बार फुस्स हो गई। कई निठल्ले नेताओं ने तो मंत्री बनाए जाने की आस में सूट भी सिल्वा लिए थे। उनको कांग्रेस के हारने से ज्यादा इस बात का दुख है कि उनके सूट बेकार चले गए।

भसड़, भ्रम, भूल और भोलेपन के दौर में सबसे अधिक नुकसान में संबित पात्रा और विवेक ओबेरॉय रहे। संबित ने नाक इतनी ऊंची कर ली कि हवा की रेंज से ही बाहर निकल गया।
दूसरा अपने कैरियर के बदतर दौर में अतिउत्साह में सलमान खान, बच्चन परिवार से पंगा ले बैठा।

द्वार पर खड़ी गऊ माता पूछ रही हैं, कि क्या इस बार भी सरकार चलाने में हमारी जरूरत है या हम पन्नी खाने जाएं।


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