Thursday, June 30, 2011

सरकार की जय हो....सरकार की जय हो.....


बारिश मंत्री ने अपने विभाग के प्रमुख सचिवों के साथ बैठक की. बैठक में पिछले साल के बारिश प्रभावों की समीक्षा के साथ ही इस सीजन में बारिश के होने और उसके वितरण सम्बन्धी निर्णय लिए गए. आदेशित किया गया की क्षेत्रों में बारिश की उपयोगिता की समीक्षा करके रिपोर्ट एक सप्ताह के अंदर प्रस्तुत करें ताकि बारिश का अलाटमेंट किया जा सके.

जैसे ही ये खबर विभाग से बाहर आयी, प्रशासनिक हलकों में हलचल मच गयी. सब कोई इस अवसर का भरपूर लाभ लेने के लिए लालायित था. दूसरी तरफ मीडिया अलग सक्रिय हो गया. पल पल की ख़बरों का प्रसारण होने लगा. बारिश के बंटवारे की तैयारियां शुरू की सरकार ने, उधर मंत्री और प्रशासनिक प्रमुख मीडिया को वक्तव्य पर वक्तव्य जारी करने लगे. और मीडिया लगा खोदने. इस बार का क्या बजट है, कितने डूबेंगे, कितनी बस्तियों को डूबाने का लक्ष्य रखा है, क्या पिछड़े और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के लिए कोई अलग से प्रावधान किया गया है, क्या गीले और सूखे का कोई अनुपात फिक्स किया गया है. बारिश पर रोमांस से लेकर सनसनीखेज खुलासों की बाढ़ आ गयी.

आवश्यकता के आकलन के लिए तत्काल आदेश जारी कर दिए गए . फैक्स या मेल से दूर दराज तक आदेश पहुँचाने का काम होने लगा. सारे नेता और जिम्मेदार लग गए अपने अपनों को इस बारिश का लाभ दिलाने. इसके साथ ही लगने लगे बारिश के भाव, नेताओं और रसूखदारों के दरवाजों पर भीड़ लगने लगी. हर कोई इस बार की बारिश से अधिक से अधिक लाभ उठाना चाहता था. बारिश के नाम से ही जगह जगह नोटों की फसल लहलहाने लगी. विपक्ष की रूचि बारिश के बाद आने वाली बाढ़, बाढ़ राहत और सरकार की हो सकने वाली किरकिरी पर टिकी थी.

जमीनी प्रस्ताव आने लगे और मंत्रालय में बंटवारे का आधार तैयार किया जाने लगा. सर्वोच्च प्राथमिकता वाले वे क्षेत्र जिनमें सरकार की स्वयं की रूचि थी, उनमें पार्टी के प्रभाव वाले क्षेत्र, रसूखदारों और पहुन्घ वालों की गलियां, मोहल्ले, खेत और फार्महाउस, इनके साथ ही वे लोग जिनका बयाना आ चुका था आदि. दूसरे स्तर पर आये वे क्षेत्र जिन्हें सत्ताधारी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने सुझाया था आखिर उन्हें किनारे नहीं किया जा सकता उनके ही दम पर तो चुनाव लड़ना है और तीसरी स्तर पर वे क्षेत्र जिनमें धनाढ्य, उद्योगपति और बड़े किसान जो देश के कृषि विकास में अपना बहुमूल्य योगदान दे रहे थे.

अधिया-बटिया किसान संघ ने भी अपनी गुहार सरकार से लगा कर बारिश की भीख मांगी. उनकी मांग थी की पिछली दो साल से बारिश नहीं आयी है और इस साल भी हमें इससे वंचित रखा जा रहा है. संवेदनशील सरकार बोली - चिंता क्यों करते हो, दो साल से बारिश नहीं आयी, इस साल भी नहीं आएगी तो अगले साल इस क्षेत्र को असिंचित सूखा क्षेत्र घोषित कर देंगे और फिर इस जमीन का अधिग्रहण, फिर देखना तुम सब कैसे लखपति बनते हो, फिर तुम्हारी जमीन पर लगेगा बड़ा सा कारखाना, राष्ट्रीय राजमार्ग और बड़े बड़े शापिंग माल आदि .. हम तो तुम्हें लखपति बनाने का विचार रखते है और तुम हो की.......

चलो छोडो, कहो किसी कही.. सरकार बोली.

क्या कहें माई बाप – खूब कही.....और इसी के साथ दूर तक नारा गूँज उठा सरकार की जय हो.... सरकार की जय हो......

अब यह नारा सरकार के जीवन काल में और किसानों की पीढियों तक यूँ ही गूंजेगा...

*संजीव परसाई, भोपाल

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