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Tuesday, December 7, 2010

मरता पत्रकार मांगे मोर

पत्रकार मर रहा है, अब तो लगता है कि मर जाना ही श्रेयस्कर है। कई युगों के बाद ये शुभ घडी आयी थी कि हम भी अपने मरणासन्न उसूलों को किसी को भेंट दे दें, पर ये मौका भी हाथ से जाता रहा। दरअसल दुनिया के सच को बेधड़क होकर कहते हम बुरी तरह से बोर हो चुके हैं, अब तो गली के कुत्ते भी हमारी बेलाग दुत्कार को गीदड भभकी मानने लगे है. आगे...

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