Total Pageviews

Thursday, July 8, 2010

मैं मेरे प्यार में पागल...

पिछले दिनों दैनिक भास्कर में चेतन भगत का एक आलेख पढ़ा था, ईर्ष्या और ऐश्वर्या, यह आलेख चेतन को एक लेखक के तौर पर समझने के लिए पर्याप्त था, वैसे लिंक भी दे रहा हूँ लेकिन चर्चा के लिए कुछ अंश भी देखें -

"यदि हमें अपने सामंती समाज की बेड़ियों को तोड़कर एक ऐसा समाज बनाना है, जिसमें काबिल लोगों की कद्र हो तो हमें इससे जूझना ही होगा। ईष्र्या एक तरह की खीझ है। यह तब उपजती है, जब हम किसी व्यक्ति में कोई ऐसी खूबी पाते हैं, जो हममें नहीं है।"

"हमें इसमें कुछ भी अस्वाभाविक नहीं लगता कि ऊंचे खानदान के बच्चे दुनिया को अपनी जागीर समझते हैं। सितारों, राजनेताओं, कारोबारियों के बच्चों को समाज में खास हैसियत हासिल होती है, जबकि आम आदमी के बच्चों को नाकाबिल समझा जाता है और उन्हें जिंदगी में अपना मुकाम हासिल करने के लिए कई रुकावटों का सामना करना पड़ता है। अमेरिका में एक आम लड़की ब्रिटनी स्पियर्स महज अपनी काबिलियत के दम पर छोटी उम्र में कामयाबी की बुलंदियों को छू लेती है। भारत में ऐसा होना तकरीबन नामुमकिन है। हम प्रतिभा को स्वीकार नहीं कर सकते।"

"हमें प्रतिभाओं का सम्मान करना और उनके साथ सहज होना नहीं आता। सदियों से चली आ रही जाति और वर्ग आधारित शोषक शासन व्यवस्था ने हमें ऐसा बना दिया है। अपनी जगह पर बने रहें, समय-समय पर आगे बढ़ते रहें, लेकिन कभी लंबी छलांग न लगाएं। यही सामंती व्यवस्था है।"
अपने पूरे आलेख में इस चेतन ने ये साबित करने की कोशिश की की हमारे तंत्र में किसी भी काबिल आदमी से सिर्फ जलन ही रखी जाती है, और हमारा पूरा सामाजिक तानाबाना इसी सामंती व्यवस्था का ही है, उफ़ ....
दरअसल चेतन जिस सोच का शिकार है वो है आत्म मुग्धता, अपने आप को इतना चाहो की अपना गलत भी सही लगने लगे और फिर लग जाओ उसे सही साबित करने के लिए. चेतन को ये बताने की जरूरत नहीं की हमारा समाज इस आधार पर तो टिका ही नहीं है, वे तोहमत लगा रहे हैं की हमें प्रतिभाओं का सम्मान करना नहीं आता, ऐसी कोई प्रतिभा बताइए जिसे भारतीय समाज ने सर पर नहीं उठाया है शाहरुख़ खान, अमिताभ बच्चन ये दो ऐसे उदहारण हैं जिन्हें लोगों ने टूट कर चाहा है, कारण नहीं जानना चाहेंगे क्योंकि ये एक सफल इंसान होने के साथ एक बेहतरीन और आला दर्जे के इंसान भी हैं, लब्बो कुआब ये है की कोई भी ऐरा गैरा, सफलता की चार सीढियां चढ़ने के बाद ये सोचने लगे की लोग उसे सर पर लेकर घूमें तो मेरे भाई ये तो मुमकिन नहीं है, इस पूरे आलेख में चेतन ने उन लोगों को भी कोसा है जो इनकी बड़ाई नहीं करते, हम ये भी जानते हैं की इस आलेख में चेतन ने ऐश्वर्या और मणिरत्नम के पीछे खड़े होकर अपनी स्वयं की स्थिति को बयान किया है, उसके लिए मेरे दिमाग में एक पञ्च लाइन आ रही है - मैं मेरे प्यार में पागल.....
आलेख पढ़कर प्रतिक्रिया जरूर दीजियेगा
वैसे इस आलेख को पढने के बाद चेतन के लिए एक लेखक के तौर पर जो सम्मान था उसको ठेस पहुँचती है।

1 comment:

संजीव शर्मा/Sanjeev Sharma said...

कोई भी ऐरा गैरा, सफलता की चार सीढियां चढ़ने के बाद ये सोचने लगे की लोग उसे सर पर लेकर घूमें तो मेरे भाई ये तो मुमकिन नहीं है......बिलकुल सही फ़रमाया है आपने परसाई जी ,वैसे चेतन भगत की कलई तो 'थ्री इडियट्स' के विवाद के दौरान ही खुल गयी थी.