Saturday, December 27, 2008

पाकिस्तान समस्या सोच के दायरे

जबसे भारत पर हमला हुआ है हमारे लोग ही दो खेमों में बनते नजर आ रहे है दिल से सोचने वाला वर्ग पूरा न्याय और स्थाई इलाज मांग रहा है दिमाग से सोचने वाला वर्ग स्थितियों के पोस्टमार्टम में लगा है। इससे बुनियादी सवाल सुरक्षा का वही का वही खड़ा नजर आ रहा है। अब इस परिस्थिति में आकर भी हम यदि यही रवैया रखें तो ये बात ठीक नही है। बुद्धिजीवियों के इस रवैये पर सख्त आपत्ति है जब भी पकिस्तान से विवाद की नौबत आती है वे भारत में भी उससे ज्यादे मुसलमान होने की दुहाई देते है। हम ये साफ़ क्यों नही समझ लेते की ये हिंदू मुसलमान का सवाल नही है ये भारत और पकिस्तान का सवाल है। दरअसल इस तरह के सोच कर हम कही न कही बार बार ये कोशिश करते हैं की हम तटस्थ नजर आयें। इसको सीधा समझना चाहिए की - हमारे घर पर हमला हुआ है, हमारे लोगों को निर्दयता से मारा गया है, हमने जांबाज अधिकारीयों और जवानों को खोया है, ये सब हमारे देश में आए दिन होते ही रहता है और इसका स्रोत पाकिस्तान में है, बस सिर्फ़ इतना ही, हमारे निर्णय का आधार होना चाहिए। हम बार बार वहां की सरकार की हताशा और मासूम जनता का हवाला देते रहते हैं की उनकी क्या गलती हैमें भारत का ही हवाला दूंगा अगर ऐसी स्थिति भारत में होती तो हम क्या करते ऐसी सरकार को ख़तम कर देते इस तरह की सोच रखने वाले नेताओं को सरेराह जूते मारते, सोचिये क्या वहां की जनता के पास कोई विकल्प नही है इस स्थिति से निपटने के लिए लेकिन वो चुप हैं,अतः पूरी जिम्मेदारी उनकी भी है । दरअसल उनकी इस स्थिति और पिछडेपन के लिए वे ही जिम्मेदार हैं, अब पकिस्तान कोई नया देश नही है आज पकिस्तान और पकिस्तान की जनता को अस्तित्व में आए हुए तक़रीबन उतने ही साल हो गए हैं जितने की हमें, अब पकिस्तान की जनता को ही ये तय करना होगा की वो क्या चाहती है क्या वो चाहती है की उनके हालात चंद अपने लोगों की घटिया सोच की वजह से बद से बदतर हों या की वो भी दुनिया में बराबरी से आगे बढे। फ़ैसला उनका, जिम्मेदारी भी उनकी अब हमें तैयार रहना चाहिए की हमारी समस्याओं का हल हम ही तलाशेंगे, वो भी स्थाई । आज अमेरिका के सुरक्षा सम्बन्धी निर्णयों और सोच की पूरी दुनिया में मुखालफत हो रही है लेकिन ये सोचना चाहिए की उनकी सुरक्षा की अपने अलग परिभाषा है जो उनके लिहाज से ग़लत नही है। अब हम भी एक पूर्ण परिपक्व लोकतंत्र हैं सो हमारी भी सोच कुछ उसी तरह की होना चाहिए की अगर हम पर कोई टेढी नजर रखता है तो वो भुलावे में न रहे ये संदेश साफ़ जाना चाहिए ।
इराक में बुश पर जूता फेंकने की घटना को कुछ लोग उनकी इस गलती से जोड़ कर देख रहे है। शायद वे ये कहना चाहते हैं की अमेरिका की सुरक्षा और हितों को सर्वोपरि रखकर यदि उसने अफगानिस्तान और इराक को तबाह कर दिया तो पूरे दुनिया में उसके ख़िलाफ़ दुश्मनी का माहौल हो गया। अगर जूता फेंकने का ये कारण हो तो बुश सही हैं हम ऐसा मान सकते हैं ।
सार ये है की अब तटस्थ होने का समय गया , पक्का निर्णय लेने का समय आ गया है । हिन्दुस्तानियों को किसी भी परिस्थिति के लिए तैयार हो जाना चाहिए।

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