लाज से नत नयन की मधुमय कथा है
स्वप्न के मधु चुम्बनों की याद में भर
कल्पना में झूमता जब साथ सागर
नयन को प्रेयसी छिपना ही वृथा है
लाज से नत नयन की मधुमय कथा है
बंक भू के प्रश्न मांगेंगे ह्रदय जब
नख विवशता में कुरेदेंगे धारा तब
प्रीत में हाँ की यही तो बस प्रथा है
लाज से नत नयन की मधुमय कथा है
चार लोचन प्राण होंगे एक निश्चय
दो छडों में दूर क्रीडा दूर संशय
अश्रु पलकों में दबाओ मत व्यथा है
लाज से नत नयन की मधुमय कथा है
डा। दया कृष्ण विजयवर्गीय "विजय"
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