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Saturday, September 8, 2018

साहित्य रत्न और मैं अधम

(संजीव परसाई) यार मेरी तड़प का कोई अंदाजा लगाओ, मैं मरा जा रहा हूँ,साहित्य के एक अदद पुरुस्कार के लिए। मैने पुरुस्कार सभा में देने के लिए एक संक्षिप्त सा बड़ा भाषण भी तैयार कर के पहले से ही रख लिया है। अब पुरुस्कार न जाने कब मिलेगा, कहीं मेरे भाषण को दीमक ही न चाट जाए सो आपके सामने ही पेल रहा हूँ -

सम्माननीय मुख्य अतिथि, चयनकर्ताओं और सभा में बैठे अपना समय जाया कर रहे दर्शकों । आज मेरे बचपन की कई आस एक झटके में पूरी हो गईं। मैं सोचता था कि ऊंचे मंच पर चढ़कर दुनिया कैसे दिखती होगी। मेरे एक दोस्त ने जिसे चौथी में डिस्टिंक्शन आई थी, तब वो स्टेज पर चढ़ा था, उसने बताया था कि मंच से सब कुछ काला काला नजर आता है। इंसान कम बालों की दुकान ज्यादा दिखाई देतीं हैं। दूसरे ओर फुरसतियों का हुजूम फुरसत में देखना हो तो ये सबसे सुनहरा मौका है। आज यहां खड़े होकर मुझे मेरा वो दोस्त याद आ रहा है, मुझे पक्का भरोसा है कि वो जरूर कहीं भाड़ झोंक रहा होगा। क्योंकि वो आजतक फेसबुक पर भी नहीं है, बताओ वो कितना पीछे हो गया होगा।
आठ-दस साल पहले में आयोजनकर्ता श्रीमान बंटवारे लाल जी के पास गया था, कि मैं लिखता हूँ मुझे भी व्यंग्य श्रेणी में नामांकित करो तो बंटवारे लाल कहने लगे, व्यंग्य तुम जो लिखते हो उसे व्यंग्य नहीं भड़ास कहते है। व्यंग्य तो मेरा भतीजा लिखता है। तुम चाहो तो तुम्हें जनसंपर्क श्रेणी का पुरुस्कार दे देते हैं, उस श्रेणी में कोई ढंग का चमचा मिल नहीं रहा है। तब मैंने उनके पैर छूते हुए कहा था कि तुम्हारा सत्यानाश हो। उसने सुन लिया और मुझे धमकी दी कि तुम्हारा छपना बंद करवा दूँगा। फिर में साहित्य अकादमी के मुखिया के पास भी गया, उनसे कहा अखबारों में विज्ञापनों के लिये मारे मारे फिरने वालों तक को आपने पुरुस्कार बांट दिए, वाकई लिखने वालों से क्या दुश्मनी है आपकी। कहने लगे आप आवेदन कर दो देखेंगे।  आज उन दोनों को कोढ़ हो गया है जिसे वे खाज कहते हैं। साहित्य जगत से उनकी स्मृतियां तक खत्म करवा चुके हैं और में पुरुस्कार ले रहा हूँ।

कुछ मेरे स्थाई विरोधी हैं, वो मेरे मरने के अलावा हर तरह के नुकसान होने की कामना करते हैं। उनको मेरे लिखने पढ़ने पर आपत्ति है, उनकी नजरों में में ढपोरशंख हूं, उनकी राय है कि मैं अंग्रेजी के व्यंग्यों को ट्रांसलेट करके ठेलता रहता हूँ। वो मुझे सत्ता पक्ष का विरोधी कहते हैं, वो मुझे वामपंथी कभी समाजवादी कहते हैं। कभी कांग्रेसी कभी भाजपाई कहते हैं। लेकिन अंततः इस मंच पर आकर मैं उनकी गढ़ी छवियों से निजात पा लूंगा, और उनको भी निजात मिलेगी। क्योंकि अब आप, बसपा और दलित चिंतक के रास्ते पाकिस्तानी होना ही रह गया है।

अपनी किताब छपवाने के लिए कई प्रकाशकों के पास गया। कइयों ने आश्वासन दिया। लेकिन उनकी बुद्धि का प्रकाश मुझतक पहुंच नहीं पाया। वो समझते थे मै थोड़ा कड़वा लिखता, हो सकता है कोई उनकी क़िताबों की फैक्टरी पर कोई घात लगाकर हमला कर दे। उनकी किताबों का बायकाट ही न कर दे। कोई सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ जहर न थूंकने लगे। या उनके यहां इनकम टैक्स का छापा ही पड़ जाए। वो मुझसे टमाटर की सब्जी और उसके देशी उपचार पर टीकाएँ लिखने की अपेक्षा कर रहे थे। वो मुझसे आउट ऑफ बॉक्स आइडिया चाहते थे, जैसे में कद्दू की सफल खेती पर व्यंग्य लिखूं। ऐसा नहीं कि मैंने कोशिश नहीं कि मैं टमाटर के बारे में लिखता तो उसमें टमाटर किसानों की बर्बादी दिखाई देने लगती और उपचार पर लिखता तो स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाल व्यवस्थाएं सामने आ जाती । उससे टमाटर का खूबसूरत चटख लाल रंग जख्मों से रिसते लहुँ जैसा हो जाता। युवाओं पर लिखता तो उनकी बेरोजगारी और बेचारगी सामने आ जाती। लेकिन अब मैं खुश हूँ, की उनकी परेशानी टल गयी और मुझे मान्यता मिल गयी।
इस पुरुस्कार के लिए मैं  ज्यूरी को साधुवाद देना चाहता हूं कि उन्होंने साहित्य के अथाह सागर में गोते लगाकर मुझ जैसे हीरे को खोज निकाला। मैं बचपन से ही प्रतिभाशाली था, कभी कभी तो मेरे गुरु मेरे बारे में सोचते कि इस महान बालक को क्या पढ़ाना, सो वे मुझे दूसरे फालतू कामों में लगा देते, वहां मैं उन कामों में उलझा, यहाँ तीस-चालीस बच्चों का भविष्य संभल गया। वैसे उन्होंने आजतक कोई तीर नहीं मारा, पर उनके ऊपर मेरा अहसान तो हो ही गया। आज मुझे इस मंच से पुरुस्कार लेते हुए देख वे ये जरूर ये सोच रहे होंगे, कि इस भोंदू का जीवन संवर गया। अब आज से साहित्यिक जगत में व्यंग्य के एक धूमकेतु का उदय हुआ है। जो कई दशकों तक चमकता रहेगा। अब मैं पेड़, पत्थर, आकाश, पानी, दानी, नेतागिरी, चमचागिरी सब पर व्यंग्य ठेलूँगा। इस दौर में लिखना एक बड़ी चुनोती है, लेकिन मैं पुरुस्कारों के लिए लिखूंगा। मेरे व्यंग्य पढ़ने के लिए कभी भी आधार पंजीयन की जरूरत नहीं पड़ेगी। बस आपको बुराई करने या कमी निकालने का कोई अधिकार नहीं होगा। अगर आप ऐसा करते पाए गए तो मेरी सोशल मीडिया टीम के लौंडे आपको तरह तरह से नवाजेंगे।
और हाँ, अगले किसी पुरुस्कार के लिए अगर मुझे नामांकित करने का अगर कोई सोच रहे हों, तो मुझसे फिर से शॉल श्रीफल लेकर आने की अपेक्षा न रखें। भारत माता की जय

आगे आप सोचिये, मैं तो चला सब्जी लेने....जय जय

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